विरोध का सामना कैसे करें?
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गंगा के तट पर एक संत अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे, तभी एक शिष्य ने पुछा, “ गुरू जी, यदि हम कुछ नया… कुछ अच्छा करना चाहते हैं पर समाज उसका विरोध करता है तो हमें क्या करना चाहिए?”
गुरु जी ने कुछ सोचा और बोले ,” इस प्रश्न का उत्तर मैं कल दूंगा।”
अगले दिन जब सभी शिष्य नदी के तट पर एकत्रित हुए तो गुरु जी बोले, “ आज हम एक प्रयोग करेंगे… इन तीन मछली पकड़ने वाली डंडियों को देखो, ये एक ही लकड़ी से बनी हैं और बिलकुल एक समान हैं।”
उसके बाद गुरु जी ने उस शिष्य को आगे बुलाया जिसने कल प्रश्न किया था।
गुरु जी ने निर्देश दिया - “ पुत्र, ये लो इस डंडी से मछली पकड़ो।”
शिष्य ने डंडी से बंधे कांटे में आंटा लगाया और पानी में डाल दिया। फ़ौरन ही एक बड़ी मछली कांटे में आ फंसी…
गुरु जी बोले-” जल्दी…पूरी ताकत से बाहर की ओर खींचो।“
शिष्य ने ऐसा ही किया ,उधर मछली ने भी पूरी ताकत से भागने की कोशिश की…फलतः डंडी टूट गयी।
गुरु जी बोले- “कोई बात नहीं; ये दूसरी डंडी लो और पुनः प्रयास करो…।”
शिष्य ने फिर से मछली पकड़ने के लिए काँटा पानी में डाला।
इस बार जैसे ही मछली फंसी, गुरु जी बोले, “आराम से… एकदम हल्के हाथ से डंडी को खींचो।”
शिष्य ने ऐसा ही किया, पर मछली ने इतनी जोर से झटका दिया कि डंडी हाथ से छूट गयी।
गुरु जी ने कहा, “ओह्हो, लगता है मछली बच निकली, चलो इस आखिरी डंडी से एक बार फिर से प्रयत्न करो।”
शिष्य ने फिर वही किया।
पर इस बार जैसे ही मछली फंसी गुरु जी बोले, “
सावधान! इस बार न अधिक जोर लगाओ न कम.. बस जितनी शक्ति से मछली खुद को अंदर की ओर खींचे उतनी ही शक्ति से तुम डंडी को बाहर की ओर खींचो.. कुछ ही देर में मछली थक जायेगी और तब तुम आसानी से उसे बाहर निकाल सकते हो”
शिष्य ने ऐसा ही किया और इस बार मछली पकड़ में आ गयी।
“ क्या समझे आप लोग?”
गुरु जी ने बोलना शुरू किया…” ये मछलियाँ उस समाज के समान हैं जो आपके कुछ करने पर आपका विरोध करता है।
यदि आप इनके खिलाफ अधिक शक्ति का प्रयोग करेंगे तो आप टूट जायेंगे, यदि आप कम शक्ति का प्रयोग करेंगे तो भी वे आपको या आपकी योजनाओं को नष्ट कर देंगे…
लेकिन यदि आप उतने ही बल का प्रयोग करेंगे जितने बल से वे आपका विरोध करते हैं तो धीरे-धीरे वे थक जाएंगे…
हार मान लेंगे…
और तब आप जीत जायेंगे…
इसलिए कुछ उचित करने में जब ये समाज आपका विरोध करे तो समान बल प्रयोग का सिद्धांत अपनाइये और अपने लक्ष्य को प्राप्त कीजिये।”
जय श्री राधे कृष्णा
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गंगा के तट पर एक संत अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे, तभी एक शिष्य ने पुछा, “ गुरू जी, यदि हम कुछ नया… कुछ अच्छा करना चाहते हैं पर समाज उसका विरोध करता है तो हमें क्या करना चाहिए?”
गुरु जी ने कुछ सोचा और बोले ,” इस प्रश्न का उत्तर मैं कल दूंगा।”
अगले दिन जब सभी शिष्य नदी के तट पर एकत्रित हुए तो गुरु जी बोले, “ आज हम एक प्रयोग करेंगे… इन तीन मछली पकड़ने वाली डंडियों को देखो, ये एक ही लकड़ी से बनी हैं और बिलकुल एक समान हैं।”
उसके बाद गुरु जी ने उस शिष्य को आगे बुलाया जिसने कल प्रश्न किया था।
गुरु जी ने निर्देश दिया - “ पुत्र, ये लो इस डंडी से मछली पकड़ो।”
शिष्य ने डंडी से बंधे कांटे में आंटा लगाया और पानी में डाल दिया। फ़ौरन ही एक बड़ी मछली कांटे में आ फंसी…
गुरु जी बोले-” जल्दी…पूरी ताकत से बाहर की ओर खींचो।“
शिष्य ने ऐसा ही किया ,उधर मछली ने भी पूरी ताकत से भागने की कोशिश की…फलतः डंडी टूट गयी।
गुरु जी बोले- “कोई बात नहीं; ये दूसरी डंडी लो और पुनः प्रयास करो…।”
शिष्य ने फिर से मछली पकड़ने के लिए काँटा पानी में डाला।
इस बार जैसे ही मछली फंसी, गुरु जी बोले, “आराम से… एकदम हल्के हाथ से डंडी को खींचो।”
शिष्य ने ऐसा ही किया, पर मछली ने इतनी जोर से झटका दिया कि डंडी हाथ से छूट गयी।
गुरु जी ने कहा, “ओह्हो, लगता है मछली बच निकली, चलो इस आखिरी डंडी से एक बार फिर से प्रयत्न करो।”
शिष्य ने फिर वही किया।
पर इस बार जैसे ही मछली फंसी गुरु जी बोले, “
सावधान! इस बार न अधिक जोर लगाओ न कम.. बस जितनी शक्ति से मछली खुद को अंदर की ओर खींचे उतनी ही शक्ति से तुम डंडी को बाहर की ओर खींचो.. कुछ ही देर में मछली थक जायेगी और तब तुम आसानी से उसे बाहर निकाल सकते हो”
शिष्य ने ऐसा ही किया और इस बार मछली पकड़ में आ गयी।
“ क्या समझे आप लोग?”
गुरु जी ने बोलना शुरू किया…” ये मछलियाँ उस समाज के समान हैं जो आपके कुछ करने पर आपका विरोध करता है।
यदि आप इनके खिलाफ अधिक शक्ति का प्रयोग करेंगे तो आप टूट जायेंगे, यदि आप कम शक्ति का प्रयोग करेंगे तो भी वे आपको या आपकी योजनाओं को नष्ट कर देंगे…
लेकिन यदि आप उतने ही बल का प्रयोग करेंगे जितने बल से वे आपका विरोध करते हैं तो धीरे-धीरे वे थक जाएंगे…
हार मान लेंगे…
और तब आप जीत जायेंगे…
इसलिए कुछ उचित करने में जब ये समाज आपका विरोध करे तो समान बल प्रयोग का सिद्धांत अपनाइये और अपने लक्ष्य को प्राप्त कीजिये।”
जय श्री राधे कृष्णा
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