हाल
ही में अमरीकी बाह्याकाश संस्थान NASA ने मंगल ग्रह पर पानी होने के
साक्ष्य के बारे में पुष्टी की थी। नासा के मंगल ग्रह के अन्वेषण के दौरान
वैज्ञानिकों को ग्रह के ऊपर मीलों तक फैली बर्फ की चादर दिखायी दी है। इससे
अंतरिक्ष की दुनिया में एक बड़ी सफलता प्राप्त हुई है। लेकिन मंगल ग्रह पर
पानी होने की पुष्टी आज से 1500 साल पहले ही भारतीय ऋषि वराह मिहिर ने की
थी!
1500 साल पहले लिखी गई अपनी पुस्तक में उज्जैन के भारतीय खगोलविद, गणितज्ञ और महान ज्योतिषी, वराह मिहिर ने अंतरिक्ष और ब्रह्मांड के बारे में इतनी सारी अंतर्दृष्टि का उल्लेख किया था, जो आज के वैज्ञानिकों के लिए मार्गदर्शी बन रहा है। भारत के प्राचीन खगोल विज्ञान से संबंधित अनेक पुस्तकों को विदेशी प्रवासियों ने हज़ारों साल पहले ही अपनी भाषा में अनुवाद किया था।
इबन बतूता और अलबरूनी जैसे विदेशी पर्यटक जिन्हें खगोल विज्ञान में विशॆष रुची थी उन्होंने भारतीय खगोल विज्ञान से जुडे अनेक किताबों का अनुवाद किया था। इन दोनों के लेख को पढ़कर ही जर्मनी के लॊग भी भारतीय खगोल शास्त्र के प्रति आकर्षित हुए थे और भारत की ऒर खींचे चले आये थे। इसमें कॊई दो राह नहीं है कि भारतीय अनुसंधानों के आधार पर ही पश्चिमी जगत ने तकनीक के क्षेत्र में सफलता पाई है।
वराह मिहिर, आर्यभट और ब्रह्मगुप्त तीनों समकालीन थे। लेकिन जो उपलब्धी वराह मिहिर को प्राप्त हुई है वह अन्य दोनों महात्माओं को प्राप्त नहीं हुई है। कहते हैं कि वराह मिहिर जब छॊटे थे तब उनकी भेट आर्यभट से हुई थी और उनसे ही प्रेरित होकर वराह मिहिर गणित और खगोल विज्ञान के प्रति आकर्षित हुए थे। पृथ्वी पर “गुरुत्वाकर्षण” बल की खॊज करने वाले भारतीय विज्ञानी वराह मिहिर ही थे।
वराह मिहिर के लिखित पुस्तकों को ‘पंच सिद्धांतिका’ का कहा जाता है
सूर्य सिद्धांत, रोमाका सिद्धांत, पॉलिसा सिद्धांत, वशिष्ठ सिद्धांत और पैतामा सिद्धांत वे पांच सिद्धांत है जिन्हें वराह मिहिर ने लिखा है।
550 ईस्वी में वराह मिहिर ने ‘बृहत संहिता’ में बड़ी संख्या में धूमकेतु का वर्णन किया है। उनके अनुसार ब्रह्मांड में साठ जोड़े से अधिक धूमकेतू हैं।
अपनी किताब सूर्य सिद्धांत में वराह मिहिर ने ग्रहों और नक्षत्रों के बारे में बहुत सारे खॊज किये हैं। आश्चर्य की बात यह है कि वराह मिहिर के पास आधुनिक तकनीक से जुडॆ दूरबीन या अन्य उपकराण नहीं थे। केवल धरती के ऊपर से ही उन्होंने ब्रह्मांड के सारे ग्रह नक्षत्रों का वर्णन किया था! कैसे? हम नहीं जानते….
सूर्य सिद्धांत में वराह मिहिर ने मंगल ग्रह के व्यास का उल्लेख किया है (जिस में 3,772 मील की गणना की गई थी, जिसमें 4,218 मील के वर्तमान स्वीकृत व्यास के 11% के भीतर त्रुटि है)। इस पुस्तक में वराह मिहिर ने मंगल ग्रह के बारे में विस्त्रुत जानकारी भी दिया है। उन्होंने मंगल ग्रह पर पानी और लोहे की उपस्थिती के बारे में भविष्यवाणी की थी। आज NASA और ISRO भी इस बात की पुष्टी कर रही है कि मंगल ग्रह पर पानी का स्रॊत है!
1500 वर्ष पूर्व जब कॊई तकनीक मौजूद नहीं था, ना उपग्रह या दूरबीन था, बावजूद इसके वराह मिहिर ने ब्रह्मांड के ग्रहों और नक्षत्रों के बारे में इतना स्पष्ट उल्लेख कैसे किया होगा? आश्चर्य और अचंबित करने वाली यह बातें जिसका उत्तर किसी के पास भी नहीं है।
वराह मिहिर अपने ग्रथों के प्रति नम्रता पूर्वक कहते हैं ” “ज्योतिष का विज्ञान एक विशाल महासागर है और हर किसी के लिए इसे पार करना आसान नहीं है। मेरे ग्रंथ एक सुरक्षित नाव प्रदान करते हैं।” सच ही है जोतिष्य के महासागर को हमारे ऋषि-मुनियों ने कैसे पार किया यह तो हम नहीं जानते लेकिन उनके ग्रंथ वास्तव में एक नाव है जिसमें हम यात्रा कर रहें है
1500 साल पहले लिखी गई अपनी पुस्तक में उज्जैन के भारतीय खगोलविद, गणितज्ञ और महान ज्योतिषी, वराह मिहिर ने अंतरिक्ष और ब्रह्मांड के बारे में इतनी सारी अंतर्दृष्टि का उल्लेख किया था, जो आज के वैज्ञानिकों के लिए मार्गदर्शी बन रहा है। भारत के प्राचीन खगोल विज्ञान से संबंधित अनेक पुस्तकों को विदेशी प्रवासियों ने हज़ारों साल पहले ही अपनी भाषा में अनुवाद किया था।
इबन बतूता और अलबरूनी जैसे विदेशी पर्यटक जिन्हें खगोल विज्ञान में विशॆष रुची थी उन्होंने भारतीय खगोल विज्ञान से जुडे अनेक किताबों का अनुवाद किया था। इन दोनों के लेख को पढ़कर ही जर्मनी के लॊग भी भारतीय खगोल शास्त्र के प्रति आकर्षित हुए थे और भारत की ऒर खींचे चले आये थे। इसमें कॊई दो राह नहीं है कि भारतीय अनुसंधानों के आधार पर ही पश्चिमी जगत ने तकनीक के क्षेत्र में सफलता पाई है।
वराह मिहिर, आर्यभट और ब्रह्मगुप्त तीनों समकालीन थे। लेकिन जो उपलब्धी वराह मिहिर को प्राप्त हुई है वह अन्य दोनों महात्माओं को प्राप्त नहीं हुई है। कहते हैं कि वराह मिहिर जब छॊटे थे तब उनकी भेट आर्यभट से हुई थी और उनसे ही प्रेरित होकर वराह मिहिर गणित और खगोल विज्ञान के प्रति आकर्षित हुए थे। पृथ्वी पर “गुरुत्वाकर्षण” बल की खॊज करने वाले भारतीय विज्ञानी वराह मिहिर ही थे।
वराह मिहिर के लिखित पुस्तकों को ‘पंच सिद्धांतिका’ का कहा जाता है
सूर्य सिद्धांत, रोमाका सिद्धांत, पॉलिसा सिद्धांत, वशिष्ठ सिद्धांत और पैतामा सिद्धांत वे पांच सिद्धांत है जिन्हें वराह मिहिर ने लिखा है।
550 ईस्वी में वराह मिहिर ने ‘बृहत संहिता’ में बड़ी संख्या में धूमकेतु का वर्णन किया है। उनके अनुसार ब्रह्मांड में साठ जोड़े से अधिक धूमकेतू हैं।
अपनी किताब सूर्य सिद्धांत में वराह मिहिर ने ग्रहों और नक्षत्रों के बारे में बहुत सारे खॊज किये हैं। आश्चर्य की बात यह है कि वराह मिहिर के पास आधुनिक तकनीक से जुडॆ दूरबीन या अन्य उपकराण नहीं थे। केवल धरती के ऊपर से ही उन्होंने ब्रह्मांड के सारे ग्रह नक्षत्रों का वर्णन किया था! कैसे? हम नहीं जानते….
सूर्य सिद्धांत में वराह मिहिर ने मंगल ग्रह के व्यास का उल्लेख किया है (जिस में 3,772 मील की गणना की गई थी, जिसमें 4,218 मील के वर्तमान स्वीकृत व्यास के 11% के भीतर त्रुटि है)। इस पुस्तक में वराह मिहिर ने मंगल ग्रह के बारे में विस्त्रुत जानकारी भी दिया है। उन्होंने मंगल ग्रह पर पानी और लोहे की उपस्थिती के बारे में भविष्यवाणी की थी। आज NASA और ISRO भी इस बात की पुष्टी कर रही है कि मंगल ग्रह पर पानी का स्रॊत है!
1500 वर्ष पूर्व जब कॊई तकनीक मौजूद नहीं था, ना उपग्रह या दूरबीन था, बावजूद इसके वराह मिहिर ने ब्रह्मांड के ग्रहों और नक्षत्रों के बारे में इतना स्पष्ट उल्लेख कैसे किया होगा? आश्चर्य और अचंबित करने वाली यह बातें जिसका उत्तर किसी के पास भी नहीं है।
वराह मिहिर अपने ग्रथों के प्रति नम्रता पूर्वक कहते हैं ” “ज्योतिष का विज्ञान एक विशाल महासागर है और हर किसी के लिए इसे पार करना आसान नहीं है। मेरे ग्रंथ एक सुरक्षित नाव प्रदान करते हैं।” सच ही है जोतिष्य के महासागर को हमारे ऋषि-मुनियों ने कैसे पार किया यह तो हम नहीं जानते लेकिन उनके ग्रंथ वास्तव में एक नाव है जिसमें हम यात्रा कर रहें है
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