सिंधुताई... भीख मांग कर किया अनाथ बच्चों की परवरिश....

सिंधुताई...
भीख मांग कर किया अनाथ बच्चों की परवरिश.....
महाराष्ट्र के वर्धा में 1948 में एक बच्ची का जन्म होता है, जिसकी माँ तुरन्त दुनिया छोड़ कर चली जाती हैं। सौतेली माँ ठीक से पालन-पोषण नहीं करती तथा दुर्भाग्यशाली बच्ची का नाम सब 'चिन्दी' रख देते हैं यानी कपड़े का चिथड़ा..!!

ग़रीब पिता बच्ची को चौथी तक पढ़ा पाते हैं और फिर महज़ दस साल की बच्ची की शादी उससे बीस साल बड़े युवक से कर देते हैं। पति बड़ा क्रूर निकलता है। शादी के दस साल बाद यह बच्ची जो अब बीस साल की युवती हो चुकी होती है, जब नौ महीने की गर्भवती होती है तो उसका पति उसे घर से भगा देता है..!!
दुर्भाग्यशाली युवती घर के बाहर गौशाले में अपनी अबोध बच्ची को जन्म देती है और ख़ुद ही वहाँ पड़े पत्थर से अपने और बच्ची के बीच कड़ी रूप में बंधी नार को काटती है..😢
फिर वह बच्ची को लिए वहाँ से कुछ किलोमीटर दूर अपनी सौतेली माँ के पास पहुँचती है, जो उसे उस हालत में भी घर में पनाह नहीं देती..!!
युवती अत्यंत अवसाद में आकर आत्महत्या का सोचती है, पर अपनी दुधमुंही बच्ची को देख कर अपना विचार बदल लेती है।
अपना और अपनी बच्ची का पेट पालने के लिए युवती दर-दर की ठोकर खाकर भीख माँगने लगती है क्योंकि उस कमज़ोर अवस्था में वह कुछ नहीं कर सकती थी।
इसी दौरान उसे जीवन की और भी अत्यधिक तल्ख़ सच्चाइयों से भेंट होती है, जब वह अपने इर्दगिर्द भीख माँगते अनाथ बच्चे-बच्चियों को देखती है। उन सभी से इस युवती को एक अपनापन-सा हो जाता है।
यह युवती उन सभी अनाथ बच्चे-बच्चियों को एक-एक कर जोड़ने लगती है। और फिर एक सीरीज़ शुरू हो जाती है अनाथाश्रम सरीखी..ये सब एक परिवार की तरह जुड़ जाते हैं और सबकी माँ बन जाती हैं यही युवती 'सिंधुताई सपकल'..जो आज लगभग 70 वर्ष की हो चुकी हैं..
आज सिंधुताई के अधीन छह संस्थाएँ हैं जो लगभग 1400 अनाथ बच्चों की देखभाल करती हैं। इनकी मदद से आज इनके ये बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, वक़ील इत्यादि बन गए। इनके परिवार में अब 200 से ऊपर दामाद, 35 से अधिक बहुएं व एक हज़ार से ऊपर नाती-नातिन व पौत्र-पौत्री हैं..!!
इनके पति जब माफ़ी माँग कर इनके पास आये तो सिंधुताई ने उन्हें अपना सबसे बड़ा पुत्र ही मान लिया क्योंकि अब वह सबकी माँ थी ममत्व वाली..बाकी कोई रिश्ता इन्होंने रखा ही नहीं।
सिंधुताई को 500 से ऊपर अवॉर्ड मिल चुके हैं, जिनसे जो भी पैसा इन्हें मिला, उससे यह तमाम अनाथ बच्चों-बच्चियों के लिए घर बनवाती हैं। आज सिंधुताई इन अनाथ बच्चों की खुशियों के लिए काम करती हैं, नतीज़ा आज वे सभी बच्चे-बच्चियाँ इनके लिए एक पैर पर खड़े रहते हैं, जो क्या कोई आज के युग में बुजुर्ग होते माता-पिता के लिए उनके अपने भी सगी संतान खड़े होते होंगे..!!
जीवन में निज-स्वार्थ वाली महत्वाकांक्षा से प्रेरित खुशियों को खोजने के पीछे न भागें। बस इसी तरह जीवन का आनन्द लेना सीख जाएँ, खुशियाँ ख़ुद आपके पीछे-पीछे भागने लगेंगी....
कहाई टेरेसा और कहाँ #सिंधुताई....
लोग धर्मान्तरण वाली टेरेसा को देवी का दर्जा दे दिए और निस्वार्थ सेवा वाली सिंधुताई को अभी तक पूरा देश जानता तक नही हैं....यही हमारी दोहरी मनासिकता है.....!!

नमन सिंधुताई को🙏

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