" बुजुर्ग हमारी धरोहर " बुजुर्ग आखिर गए कहाँ !!

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*" बुजुर्ग हमारी धरोहर "
आज अधिकांश परिवारों में बुजुर्गों को भगवान् तो
क्या इंसान का भी दर्जा नहीं दिया जा रहा है ..!

किसी जमाने में जिनकी आज्ञा के वगैर घर का कोई कार्य और निर्णय नहीं होता था, आज उनसे सलाह तक नहीं मांगते हैं लोग.....

" मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः---
इस पंक्ति को बोलते हुए हमारा शीश श्रद्धा से झुक
है और सीना गर्व से तन जाता था ।
यह पंक्ति सच भी है, जिस प्रकार ईश्वर अदृश्य रह कर
हमारे माता - पिता की भूमिका निभाता है, उसी प्रकार
माता - पिता दृश्य साक्षात् ईश्वर होते हैं...

इस लिए तो भगवान गणेश ने ब्रम्हांड की परिक्रमा के
बजाय अपने माता- पिता ( शिव पार्वती ) की
परिक्रमा करके प्रथम पूज्य होने का अधिकार हासिल
कर लिया....

किन्तु आज के भौतिकवाद ( कलयुग) में बढ़ते
एकल परिवार के सिद्धांत तथा आने वाली पीढ़ी की
सोच में परिवर्तन के चलते ऐसा देखने
की मिल रहा है ।

कुछ संस्कारी परिवारों को छोड़ दें तो
आज अधिकांश परिवारों में यही है...

अंत में सच ये है जिस घर में माता -पिता व् अन्य
बुजुर्गों का सम्मान नहीं होता , वहाँ घर कभी पनपता
नहीं है, और वहाँ कभी बरक्कत नही होती है....
जिनके घरों में बुजुर्ग हैं वे
सच में " धनवान एवं खुशनसीब हैं....

वैसे तो कलयुग है, कुछ कहा नहीं जा सकता है...
फिर भी बुजुर्गों का मान करें सम्मान करें ,
समय रहते सम्भल जाएं.....

वर्ना फिर यही होगा के
अब पछताए होत का
जब चिड़िया चुग गयी खेत....*
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