अबला नहीं मैं नारी हूँ

अबला नहीं मैं नारी हूँ
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अबला नहीं मैं नारी हूँ।
दुनिया को अवतारी हूँ।

ममता का भंडार हूँ मैं,
कोख लिए संसार हूँ मैं।

जीवन को आकार दिया,
सपनों को साकार किया।।

जीवन की तैयारी हूँ,
अबला नहीं मैं नारी हूँ।

वसुधा हूँ प्रकृति हूँ,
जीवन का संस्कृति हूँ।

सरस सुधा की सिंधु हूँ,
जीवन का मैं बिन्दू हूँ।।

वासना नहीं मैं पुजारी हूँ,
अबला नहीं मैं नारी हूँ।

दुनिया का अधार गढ़ा,
निरंतर उद्गम विस्तार गढ़ा।

भामिनी भगनी माँ रूप लिये,
युगदृष्टा का महास्वरूप लिये।।

अपना सब कुछ वारी हूँ,
अबला नहीं मैं नारी हूँ।

सुचिता तन में चित्र लिए,
बंधन मन में चरित्र लिए।

पुरोधा और परिधि दिया,
धरोहर और निधि दिया।

अंत नहीं मैं जारी हूँ,
अबला नहीं मैं नारी हूँ।

भक्ति और भगवान गढ़ा,
श्रद्धा सुमन उनवान गढ़ा।

योग ऋषि की जननी हूँ,
तपस्या तप का संगनी हूँ।।

मैं जीवन का अधिकारी हूँ,
अबला नहीं मैं नारी हूँ।

रिश्तों का मैंने आंगन दिया,
जग को अनुठा बंधन दिया।

परिष्कृत हूँ मैं परिभाषा में,
नहीं लिया कुछ अभिलाषा में।।

मैं कभी न हिम्मत हारी हूँ,
अबला नहीं मैं नारी हूँ।

मैंने आँचल की छांव दिया,
मैंने सींच लहू को पंाव दिया।

कभी पांडव की पांचाली बनी,
कभी पौरूष की खुशहाली बनी।

मैं कर्मभूमि की जिम्मेदारी हूँ,
अबला नहीं मैं नारी हूँ।

मेरे हाथ में कंगन चुडि़याँ है,
मेरे उदर पले गुड्डा गुडि़या है।

मेरे माथे चांद सा बिंदिया है,
मेरे गोदी में लोरी निंदिया है।।

मैं ममता की किलकारी हँ,
अबला नहीं मैं नारी हूँ।

सावित्री का सत्य अगाध लिए,
श्रद्धा का अटल प्रासाद लिए।

चार दीवारी की मैं चादर नहीं,
निरवता का कोई गागर नहीं।।

मैं हर युग को निहारी हूँ,
अबला नहीं मैं नारी हूँ।

दया क्षमा उपकार हूँ मैं,
शाश्वत शक्ति का भण्डार हूँ।

मौत को मैंने दिया चुनौती,
हर युग में लिया अवतार हूँ।।

भूखे पेटों को भोजन से भरे,
मैं अन्नपूर्णा अवतारी हूँ,
अबला नहीं मैं नारी हूँ।*
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