❤...जिंदगी दुल्हन है एक रात की...❤


...जिंदगी दुल्हन है
एक रात की...

जिंदगी दुल्हन है
एक रात की
कोई नहीं मंजिल है
जिसके अहिवात की ,

मांग भरी शाम को
बहारों ने
सेज सजी रात
चांद—तारों ने
भोर हुई मेंहदी छुटी
हाथ की
जिंदगी दुल्हन है
एक रात की ,

नैहर है दूर,
पता पिया का न गांव ,
कहीं न पड़ाव कोई
कहीं नहीं छांव ,
जाए किधर डोली
बारात की
जिंदगी दुल्हन है
एक रात की ,

बिना तेल बाती
जले उम्र का दिया ,
बीच धार छोड़ गया
निर्दयी पिया ,
आंख बनी बदली
बरसात की
जिंदगी दुल्हन है
एक रात की....!

पर इस
एक रात के लिए
हम बड़ा जंजाल
फैला लेते हैं !

इस एक
रात के लिए हम
बड़ा संसार
निर्मित कर लेते हैं ।

जो क्षणभंगुर है ,

उसके लिए हम
शाश्वत को
गंवा देते हैं ।
जो असार है ,
उसके लिए सार को
खो देते हैं ।

इधर
कंकड़ —पत्थर
बीनते रहते हैं ,
वहां जीवन के
हीरे रिक्त होते
चले जाते हैं ।

जोड़ लेते हैं
कूड़ा — करकट
मरते —मरते तक ,

लेकिन
जीवन गंवा देते हैं ।

कहा है जीसस ने ,
तू सारी पृथ्वी भी
जीत ले और
अगर अपने को
गंवा दिया , तो
इस पाने का
सार क्या है.....

!! ओशो !!

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