**समय की माँग..


**समय की माँग..

अच्छों के प्रति अच्छा बनों,
बुरों के प्रति बुरा,

यही इन्सानियत का है असूल,
इसे सीख लो ज़रा,

कोई कहता मैं मर्द हूँ,
कोई कहता मैं हूँ औरत,

कोई कहता मैं किसी से कम नहीं,
कोई कहता तुझमें कोई दम नहीं,

मर्द नहीं बेचारा,
औरत बेचारी नहीं,

औरत को मर्द बननें की
जरूरत नहीं,

मर्द को किसी के आगे,
झुकनें की जरूरत नहीं,

हर कोई अपनीं जगह है ठीक,
किसी को बिकनें की जरूरत नहीं,

औरत स्वयं अपनीं हिफ़ाजत है कर सकती,
उसे सहारे की जरूरत नहीं,

बेटा-बेटी क्या करते हो,
बेटी को बेटा कहके,

उसे कमजोर क्यों करते हो,
बेटियाँ , बेटियाँ रहके हीं नाम कमातीं,

उनमें से कोई झाँसी की रानी,
तो कोई भारत कोकिला हैं बन जातीं,

नारी को नारी रहनें दो,
नर को नर,

यही समय है हरवक्त माँगता,
यही है उन्नति का स्वर*
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