रक्षा बंधन ,,,,
रक्षा बंधन का त्यौहार बहन और भाई के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयो को राखी बांधती है। तिलक लगाती है और साथ में मिठाई खिलाती है।यह विश्वास प्रतीक रूप में भले ही रेशम की कच्ची डोर से बँधा होता है परंतु दोनों के मन की भावनाएँ प्रेम की एक पक्की डोर से बँधी रहती है, जो रिश्तों की हर डोर से मजबूत डोर होती है।
यही प्रेम रक्षाबंधन के दिन भाई को अपनी लाड़ली बहन के पास खीच लाता है। राखी बाँधने के साथ ये वचन लेती है की भाई , जीवन भर मेरी रक्षा करना। फलस्वरूप, भाई भी अपनी प्यारी बहन को वचन देता है की में तेरी रक्षा करुगा।
जब तुझे जरुरत होगी मैं तेरे साथ रहुगा। और साथ में बहन को उपहार देता है। रुपैये, चॉक्लेट, घडी और ड्रेस इत्यादि! राखी का त्योहार हिंदू कैलेंडर की श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन (श्रावण पूर्णिमा) पड़ता है।
रक्षा बंधन हमारे देश में कई कारणों से मनाया जाता है। इसके संदर्भ में कई आध्यात्मिक, सामाजिक पौराणिक, धार्मिक तथा ऐतिहासिक कथाये मिलती है।
द्रोपती ने भगवान श्री कृष्ण को राखी बाँधी थी। भगवान कृष्ण ने शिशुपाल को मारा था। युद्ध के बीच में भगवान की बांये ऊँगली से रक्त बहन रहा था। और जब वो रथ में घोड़ो की रास पकड़ रहे थे तब खून और तेज बहनें लगा।
जब द्रोपती को पता चल की मेरे प्रभु के हाथ से खून बह रहा है। एक पल के लिए भी नही सोचा। झट अपनी साडी का टुकड़ा चीरकर श्री कृष्ण की ऊँगली में बाँध दिया। और खून बहना बंद हो गया। तब भगवान ने वचन दिया की द्रोपती में तेरी आजीवन लाज बचाऊगा।यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।
और आप सभी जानते है की जब पांडव जुए में हार गए थे। दुर्योधन ने दुःशाशन को द्रोपती के चीर हरण के लिए कहा। और दुःशाशन द्रोपती को बालो से खीच कर चीर हरण करने के लिए लाया था। द्रोपती ने सभी को पुकारा।
युधिस्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव , भीष्म , धृतराष्ट्र और गुरु द्रोणाचार्ये। लेकिन कोई भी द्रोपती की रक्षा नही कर पाया। अंत में द्रोपती ने भगवान श्री कृष्ण को याद किया। भगवान ने एक पल नही लगाया। और द्रोपती की लाज बचाइए।
सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवदान दिया।
ऐतिहासिक युग में भी सिंकदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर को मारने के लिए हाथ उठाया तो तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रूक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया।
राजा बलि और माँ लक्ष्मी रक्षा बंधन !!!!!!
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया तो राजा बलि के द्वार पर गए और 3 पग धरती मांगी थी। राजा बलि ने 3 पग धरती दान दी तो भगवान वामन ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गईं। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
इंद्र इन्द्राणी और रक्षा बंधन कहानी !!!!!
एक बार देवताओ और देत्यो के बीच में युद्ध हुआ। देत्ये विजय की और बढ़ रहे थे। ये देख इंद्र बहुत चिंतित थे। अपने पति को दिन-परेशान देख कर इंद्राणी(शशिकला) ने भगवान की पूजा की। भगवान पूजा से खुश हुए और एक मंत्रसिद्ध धागा दिया। इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इस प्रकार इंद्राणी ने पति को विजयी कराने में मदद की। इस धागे को रक्षासूत्र का नाम दिया गया और बाद में यही रक्षा सूत्र रक्षाबंधन हो गया।
चंद्रशेखर आज़ाद और रक्षा बंधन कहानी!!!!
एक बार चंद्रशेखर आज़ाद अंग्रेजो से बचते हुए एक घर में घुसे। घर में एक विधवा और उसकी बेटी थी। उस विधवा औरत ने सोचा की ये कोई चोर या डाकू है। लेकिन बाद में पता चला क्रांतिकारी आज़ाद है।
वो विधवा गरीब थी। आज़ाद को पता चला की इस विधवा को अपनी बेटी की शादी में दिकत आ रही है। तब आज़ाद ने कहा आप मुझे अंग्रेजो को पकड़वा दीजिये और मुझ पर 5000 रुपैये का इनाम है आप वो रख लेना। इससे आपकी बेटी की शादी हो जाएगी।
वो माँ रो पड़ी और बोली,”भैया, तुम देश की आजादी हेतु अपनी जान हथेली पर रखे घूमते हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती।” चाहे मेरी बेटी की शादी हो या न हो। ये बात कहते कहते उसने आज़ाद की कलाई पर रक्षा सूत्र(राखी) बाँध दी। और देश सेवा का वचन भी ले लिया। रात जैसे तैसे बीत गई और आज़ाद चले गए। सुबह जब विधवा की आँखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे 5000 रूपये पड़े थे। उसके साथ एक पर्ची पर लिखा था- “अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट- आज़ाद
बात उस समय की है जब चंद्रशेखर आज़ाद झांसी में थे। आज़ाद की कोठरी के पास रामदयाल नाम का एक अन्य ड्राइवर सपरिवार रहता था। वैसे तो अच्छा आदमी था लेकिन रोज रात को शराब पीके हंगामा किया करता और अपनी पत्नी से मार पीट। इससे पूरा महोल्ला परेशान था। लेकिन कोई कुछ बोलता नहीं था।
आज़ाद ने अपना नाम बदलकर हरी शंकर रख लिए था आज़ाद जब कारखाने जा रहे थे तो रामदयाल ने पूछा आजकल आप बहुत रात जागकर कुछ ठोंका–पीटी किया करते हैं। आपकी ठुक–ठुक से हमारी नींद हराम हो जाती है। इस बात में एक व्यंग्य था। आज़ाद ने उत्तर देना उचित समझा।
“रामदयाल भाई! मैं तो कल–पुरज़ों की ही ठोंका–पीटी करता हूँ, पर तुम तो शराब के नशे में अपनी गऊ जैसी पत्नी की ही ठोंका–पीटी करके मोहल्ले भर की नींद हराम करते रहते हो।”
रामदयाल को गुस्सा आ गया और बोला,”साले तू हम पति-पत्नी के बीच बोलने वाला होता कोन है?मैं उसे मारूँगा और खूब मारूँगा। देखता हूँ कौन साला बचाएगा।
आज़ाद ने शांत भाव से जवाब दिया-
आज़ाद ने शान्त भाव से उसे उत्तर दिया –
“जब तुमने मुझे साला कहा है, तो तुमने यह स्वीकार कर ही लिया है कि मैं तुम्हारी पत्नी का भाई हूँ।
एक भाई अपनी बहन को पिटते हुए नहीं देख सकता है। अब कभी शराब के नशे में रात को मारा तो ठीक नहीं होगा।”
रामदयाल अपने गुस्से को काबू में नही कर सका। दौड़कर अपने मकान में गया और अपनी पत्नी को बालों से खींचकर भर ले आया।और मारने के लिए हाथ उठाया।
जैसे ही उसने हाथ उठाया तभी आज़ाद ने एकदम से उसका हाथ पकड़ लिया और झटका देकर अपनी और खींचा। उसकी पत्नी इस झटके के कारण उसके हाथ से पत्नी के बाल छूट गए और वह मुक्त हो गई। तब आज़ाद ने एक जोरदार चांटा जड़ दिया रामदयाल के गाल पर।
तमाचा इतना तेज था की उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया। और वह अपने दोनों हाथों से अपना सिर थामकर बैठ गया। इतने में पडोसी लोग वहां आ गए और आज़ाद को साइड में ले गए। इस घटना के बाद कुछ दिन तक आज़ाद और रामदयाल की बोलचाल बन्द हो गई, पर आज़ाद ने स्वयं ही पहल करके उससे अपने सम्बन्ध मधुर बना लिए तथा अब उसे “जीजा जी” कहकर पुकारने लगे।
रामदयाल ने अपनी पत्नी को फिर कभी नहीं पीटा। आज़ाद की धाक पूरे मोहल्ले में जम गई। इसी से मिलती–जुलती एक अन्य घटना भी थोड़े ही अन्तराल से हो गई। जिसने पूरे झाँसी में आज़ाद की धाक जमा दी।
रक्षा बंधन का त्यौहार बहन और भाई के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयो को राखी बांधती है। तिलक लगाती है और साथ में मिठाई खिलाती है।यह विश्वास प्रतीक रूप में भले ही रेशम की कच्ची डोर से बँधा होता है परंतु दोनों के मन की भावनाएँ प्रेम की एक पक्की डोर से बँधी रहती है, जो रिश्तों की हर डोर से मजबूत डोर होती है।
यही प्रेम रक्षाबंधन के दिन भाई को अपनी लाड़ली बहन के पास खीच लाता है। राखी बाँधने के साथ ये वचन लेती है की भाई , जीवन भर मेरी रक्षा करना। फलस्वरूप, भाई भी अपनी प्यारी बहन को वचन देता है की में तेरी रक्षा करुगा।
जब तुझे जरुरत होगी मैं तेरे साथ रहुगा। और साथ में बहन को उपहार देता है। रुपैये, चॉक्लेट, घडी और ड्रेस इत्यादि! राखी का त्योहार हिंदू कैलेंडर की श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन (श्रावण पूर्णिमा) पड़ता है।
रक्षा बंधन हमारे देश में कई कारणों से मनाया जाता है। इसके संदर्भ में कई आध्यात्मिक, सामाजिक पौराणिक, धार्मिक तथा ऐतिहासिक कथाये मिलती है।
द्रोपती ने भगवान श्री कृष्ण को राखी बाँधी थी। भगवान कृष्ण ने शिशुपाल को मारा था। युद्ध के बीच में भगवान की बांये ऊँगली से रक्त बहन रहा था। और जब वो रथ में घोड़ो की रास पकड़ रहे थे तब खून और तेज बहनें लगा।
जब द्रोपती को पता चल की मेरे प्रभु के हाथ से खून बह रहा है। एक पल के लिए भी नही सोचा। झट अपनी साडी का टुकड़ा चीरकर श्री कृष्ण की ऊँगली में बाँध दिया। और खून बहना बंद हो गया। तब भगवान ने वचन दिया की द्रोपती में तेरी आजीवन लाज बचाऊगा।यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।
और आप सभी जानते है की जब पांडव जुए में हार गए थे। दुर्योधन ने दुःशाशन को द्रोपती के चीर हरण के लिए कहा। और दुःशाशन द्रोपती को बालो से खीच कर चीर हरण करने के लिए लाया था। द्रोपती ने सभी को पुकारा।
युधिस्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव , भीष्म , धृतराष्ट्र और गुरु द्रोणाचार्ये। लेकिन कोई भी द्रोपती की रक्षा नही कर पाया। अंत में द्रोपती ने भगवान श्री कृष्ण को याद किया। भगवान ने एक पल नही लगाया। और द्रोपती की लाज बचाइए।
सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवदान दिया।
ऐतिहासिक युग में भी सिंकदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर को मारने के लिए हाथ उठाया तो तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रूक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया।
राजा बलि और माँ लक्ष्मी रक्षा बंधन !!!!!!
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया तो राजा बलि के द्वार पर गए और 3 पग धरती मांगी थी। राजा बलि ने 3 पग धरती दान दी तो भगवान वामन ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गईं। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
इंद्र इन्द्राणी और रक्षा बंधन कहानी !!!!!
एक बार देवताओ और देत्यो के बीच में युद्ध हुआ। देत्ये विजय की और बढ़ रहे थे। ये देख इंद्र बहुत चिंतित थे। अपने पति को दिन-परेशान देख कर इंद्राणी(शशिकला) ने भगवान की पूजा की। भगवान पूजा से खुश हुए और एक मंत्रसिद्ध धागा दिया। इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इस प्रकार इंद्राणी ने पति को विजयी कराने में मदद की। इस धागे को रक्षासूत्र का नाम दिया गया और बाद में यही रक्षा सूत्र रक्षाबंधन हो गया।
चंद्रशेखर आज़ाद और रक्षा बंधन कहानी!!!!
एक बार चंद्रशेखर आज़ाद अंग्रेजो से बचते हुए एक घर में घुसे। घर में एक विधवा और उसकी बेटी थी। उस विधवा औरत ने सोचा की ये कोई चोर या डाकू है। लेकिन बाद में पता चला क्रांतिकारी आज़ाद है।
वो विधवा गरीब थी। आज़ाद को पता चला की इस विधवा को अपनी बेटी की शादी में दिकत आ रही है। तब आज़ाद ने कहा आप मुझे अंग्रेजो को पकड़वा दीजिये और मुझ पर 5000 रुपैये का इनाम है आप वो रख लेना। इससे आपकी बेटी की शादी हो जाएगी।
वो माँ रो पड़ी और बोली,”भैया, तुम देश की आजादी हेतु अपनी जान हथेली पर रखे घूमते हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती।” चाहे मेरी बेटी की शादी हो या न हो। ये बात कहते कहते उसने आज़ाद की कलाई पर रक्षा सूत्र(राखी) बाँध दी। और देश सेवा का वचन भी ले लिया। रात जैसे तैसे बीत गई और आज़ाद चले गए। सुबह जब विधवा की आँखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे 5000 रूपये पड़े थे। उसके साथ एक पर्ची पर लिखा था- “अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट- आज़ाद
बात उस समय की है जब चंद्रशेखर आज़ाद झांसी में थे। आज़ाद की कोठरी के पास रामदयाल नाम का एक अन्य ड्राइवर सपरिवार रहता था। वैसे तो अच्छा आदमी था लेकिन रोज रात को शराब पीके हंगामा किया करता और अपनी पत्नी से मार पीट। इससे पूरा महोल्ला परेशान था। लेकिन कोई कुछ बोलता नहीं था।
आज़ाद ने अपना नाम बदलकर हरी शंकर रख लिए था आज़ाद जब कारखाने जा रहे थे तो रामदयाल ने पूछा आजकल आप बहुत रात जागकर कुछ ठोंका–पीटी किया करते हैं। आपकी ठुक–ठुक से हमारी नींद हराम हो जाती है। इस बात में एक व्यंग्य था। आज़ाद ने उत्तर देना उचित समझा।
“रामदयाल भाई! मैं तो कल–पुरज़ों की ही ठोंका–पीटी करता हूँ, पर तुम तो शराब के नशे में अपनी गऊ जैसी पत्नी की ही ठोंका–पीटी करके मोहल्ले भर की नींद हराम करते रहते हो।”
रामदयाल को गुस्सा आ गया और बोला,”साले तू हम पति-पत्नी के बीच बोलने वाला होता कोन है?मैं उसे मारूँगा और खूब मारूँगा। देखता हूँ कौन साला बचाएगा।
आज़ाद ने शांत भाव से जवाब दिया-
आज़ाद ने शान्त भाव से उसे उत्तर दिया –
“जब तुमने मुझे साला कहा है, तो तुमने यह स्वीकार कर ही लिया है कि मैं तुम्हारी पत्नी का भाई हूँ।
एक भाई अपनी बहन को पिटते हुए नहीं देख सकता है। अब कभी शराब के नशे में रात को मारा तो ठीक नहीं होगा।”
रामदयाल अपने गुस्से को काबू में नही कर सका। दौड़कर अपने मकान में गया और अपनी पत्नी को बालों से खींचकर भर ले आया।और मारने के लिए हाथ उठाया।
जैसे ही उसने हाथ उठाया तभी आज़ाद ने एकदम से उसका हाथ पकड़ लिया और झटका देकर अपनी और खींचा। उसकी पत्नी इस झटके के कारण उसके हाथ से पत्नी के बाल छूट गए और वह मुक्त हो गई। तब आज़ाद ने एक जोरदार चांटा जड़ दिया रामदयाल के गाल पर।
तमाचा इतना तेज था की उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया। और वह अपने दोनों हाथों से अपना सिर थामकर बैठ गया। इतने में पडोसी लोग वहां आ गए और आज़ाद को साइड में ले गए। इस घटना के बाद कुछ दिन तक आज़ाद और रामदयाल की बोलचाल बन्द हो गई, पर आज़ाद ने स्वयं ही पहल करके उससे अपने सम्बन्ध मधुर बना लिए तथा अब उसे “जीजा जी” कहकर पुकारने लगे।
रामदयाल ने अपनी पत्नी को फिर कभी नहीं पीटा। आज़ाद की धाक पूरे मोहल्ले में जम गई। इसी से मिलती–जुलती एक अन्य घटना भी थोड़े ही अन्तराल से हो गई। जिसने पूरे झाँसी में आज़ाद की धाक जमा दी।
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