गुंजाइश



🎍 गुंजाइश 🎍
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कहानी कुछ नया नहीं
वादे वह तोड़ दि बरना
अौर कुछ बात नहीं, कुछ भी तो नहीं।
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वो मुरिद थी मेरा भुलाकर रकीब को कहीं
वो ज़ज्बा अब रहा नहीं बरना
अौर कुछ बात नहीं,कुछ भी तो नहीं।
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बोझ दिल की वो करती थी
अपनी मुस्कुराहटों से हल्का
उसकी मोहब्बत में थी जो दम
अब वह भी तो रहा नही,
अौर कुछ बात नहीं , कुछ भी तो नहीं।
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निशानी प्यार की लौटाने को
वो तो कहा ही नहीं
मगर कहा कि मुझे भुलाया करो
अब तो सही,
अौर कुछ बात नहीं ,कुछ भी तो नहीं।
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सुना था कि रोज़ लिखती थी वो
हाथो पर शौक से नाम मेरा
अब लिखने को है आमादा
किसी अौर के नाम वहीं
अौर कुछ बात नहीं , कुछ भी तो नहीं।
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संवारती थी वो लहराते खुले गेंसू
सामने आकर मेरे
अब वो जुड़े मे सजाने
लगी है फूल यूंही
अौर कुछ बात नहीं ,कुछ भी तो नहीं।
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लेके हाथों से मेरे फूल
छुपाया करती थी किताबों में कहीं
आज देखा वो किताबों की राख़
बिखरी पडी है राह मे कहीं
अौर कुछ बात नहीं ,कुछ भी तो नहीं।
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गुनगुनाती थी वो जो नगमा
मेरे लिखे हुए बारहा सामने आकर
वह नगमा क्योंकर
आज तो फिर से मैंने सुना ही नहीं,
अौर कुछ बात नहीं, कुछ भी तो नहीं।
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