त्याग के कई उदाहरण


त्याग के कई उदाहरण और किस्से कहानियाँ सुनते पढ़ते मैं केवल इतना ही जान पाया हूँ कि पत्नी, परिवार, धन, दौलत, गाड़ी कोठी त्याग कर किसी दूसरे भोगी को दे दो और स्वयं लंगोट डालकर कहीं किसी पेड़ के नीचे धूनी रमा कर बैठ जाओ | बस इससे अधिक नहीं समझ पाया त्याग को |
अक्सर लोग उदाहरण देते हैं कि फलाने ने अपनी सारी संपत्ति मंदिर को दान कर दी या किसी ट्रस्ट को दान कर दी और खुद वृद्धआश्रम में रहने चले गये | कई बार लोग मेरे पास आते हैं बड़े गर्व से यह कहने कि मैंने बीस वर्ष पहले ही सबकुछ त्याग दिया था, बहुत सुंदर पत्नी थी, छोटे छोटे प्यारे बच्चे थे, गाड़ी-कोठी, नौकर चाकर… सब कुछ था…लेकिन मैंने त्याग दिया और संन्यास ले लिया… उनके हाथ में महंगा मोबाइल फ़ोन होता है, कई सेवक शिष्य होते हैं साथ में, गाडी भी होती है | वह सारा आडम्बर होता है जिसे वे त्याग कर संन्यासी साधू बने थे, केवल पत्नी व बच्चे ही नहीं होते | और लोग उनको त्यागी कहते है..| कई त्यागी हैं जिनके पास करोड़ों की संपत्ति है, सत्ता है, बाहुबल है, घृणा व द्वेष की खेती व कारोबार करते हैं, समाज को धर्म व जाति के नाम पर आपस में लड़वाते हैं…. और लोग ऐसे त्यागियों की जय जयकार करते हैं, उन्हें सत्ता सौंपते हैं अपना मालिक नियुक्त करते हैं |
वास्तव ये लोग त्यागी नहीं हैं, देखा जाए तो कोई भी त्यागी नहीं है, बस सबका स्वार्थ भिन्न-भिन्न है और उस स्वार्थ की पूर्ति के लिए हर कोई कुछ न कुछ त्याग करता ही है, जैसे मधुमेह का रोगी, मीठी चीजों का त्याग कर देता है | तो ये सब त्यागी नहीं, ढोंगी हैं | त्याग का उद्देश्य केवल इतना है कि आप ऊपर उठ सकें, आपका चित शांत हो सके, मन प्रसन्न रह सके, पारिवारिक सुख समृद्ध का आनंद ले सकें | इसलिए त्याग उसका करना चाहिए, जो आपके जीवन में आगे बढ़ने में बाधा हो | उनका त्याग होना चाहिए जो लोग आपको पीछे घसीटते हैं, जो आपको आपके मौलिक गुण व नवीनता को रोकते हैं | जो आपको किताबों में बांधे रखना चाहते हैं…. अधिकांश व्यक्ति अपने जीवन में उन लोगों से घिरा रहता है, जिनका उसके जीवन में कोई योगदान नहीं होता | बल्कि वे लोग केवल हतोत्साहित ही करते रहते हैं, आलोचनाएँ ही करते रहते हैं, टांग पकड़े ही बैठे रहते हैं, दिशा भ्रमित ही करते हैं, जो आप कर रहे हैं, उससे बिलकुल उल्टा करने को कहते हैं | त्याग करना है तो ऐसे लोगों का करना चाहिए, हतोत्साहित करने वाले विचारों का करना चाहिए, उन अवगुणों का करना चाहिए, जो आपको अकर्मण्य, निराशावादी बनाता है |

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