यह
कहानी एक कल्पना मात्र नहीं है। यह एक ऐसी लड़की की सच्चाई है, जिसने जीवन
भर संघर्ष ही किया। जिसने अपनी जिंदगी को सफल बनाने के लिए अपने आप से
समाज से झगड़ा किया।
जबलपुर!!! वह शहर है, जहां पर उस लड़की का जन्म हुआ था। उसका नाम बड़े प्यार से रखा गया था, पूजा पर कोई नहीं जानता था वह लड़की अपनी किस्मत में क्या लेकर आई है। जब वह 2 साल की हुई तो कोई भी बात को समझा नहीं करती थी।
उसकी मां हर दिन उस लड़की में परिवर्तन देखा करती थी। वह छोटी सी बच्ची के मुंह से मां शब्द सुनने के लिए तरसा करती थी। पर उसकी मां को यह नहीं पता था, कि उसकी लड़की में कुछ कमी है। एक दिन अचानक से उस लड़की को दौरे पड़े, और वह जमीन में लोटने लगी। यह देखकर उसकी मां घबरा गई और भागकर डॉक्टर के पास ले गई।
डॉक्टर ने चेक किया पर उस लड़की की परेशानी को समझ नहीं पाया और दूसरे डॉक्टर के पास भेज दिया। इसी तरह उसकी मां ने कई डॉक्टर के पास जाकर अपनी बेटी का इलाज कराने की कोशिश की। सभी डॉक्टर यह बात समझ नहीं पाए कि बेटी को क्या हुआ है। वह लड़की बोल नहीं पाती थी, ना कुछ समझ पाती थी।
मां बड़ी परेशान हो गई थी, बेचारी घर घर में बर्तन मांज कर और इडली की दुकान लगाकर अपने बेटी का इलाज कराया करती थी। क्योंकि उसका पति निकम्मा था। कोई काम काज नहीं किया करता था। माँ ने हिम्मत नहीं हारी और फिर डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर बोला- "आप की लड़की पागल है!! इसे पागलखाने में भेज दो!
मां गुस्सा कर बोली- "डॉक्टर साहब मेरी लड़की पागल नहीं है" और फिर वह वहां से घर चली आई। लड़की 4 साल की हुई उसके स्कूल जाने का समय आ गया था। लेकिन उस लड़की को दौरे पड़ना कभी बंद नहीं हुए। उसे स्कूल में भी दौरे पड जाया करते थे। वह जमीन भी लोटने लगती थी। कभी-कभी जब वह अपने दिमाग पर काबू नहीं कर पाती थी। उसे अंदर से कई प्रकार की तकलीफ होती थी।
उसे स्कूल के बच्चे हमेशा परेशान करते थे। सीधी साधी भोली भाली सी लड़की! उसे क्या पता था कि उसके दिमाग में परेशानी है। हम तो तब हो गई जब 1 दिन स्कूल की टीचर ने उसकी मां को बुलाई बोली _"आपकी लड़की तो पागलों जैसी हरकतें करती है "! उसकी मां बोली- "टीचर जी! मेरी बेटी पागल नहीं है।
वह बस बीमार है, पर स्कूल की टीचर कहां मानने वाली थी, उस लड़की को स्कूल से निकाल दिया गया।
मां परेशान रहने लगी फिर दूसरी स्कूल में दाखिला कराया गया। वहां एक टीचर थी, बहुत अच्छी टीचर! उसने उस लड़की को पढ़ाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। कुछ समय बाद मां को एक नामी डॉक्टर का पता चला वह अपनी बच्ची को उस डॉक्टर के पास ले गई।
डॉक्टर ने चेक किया और बताया कि-- "आप की लड़की पागल" नहीं है, नाम बताओ जिसने इस लड़की को पागल कहा है मैं इसे ठीक करूंगा। बस इसके पेट में एक पटार है जो धीरे-धीरे इसके दिमाग में चढ़ने की कोशिश कर रही है। जिसकी वजह से इसको दौरे आते हैं। मैं इस पटार को निकालकर नए तरीके से इलाज करूंगा"!
डॉक्टर की मेहनत सफल हुई, वह लड़की ठीक हो गई। लेकिन डॉक्टर ने बताया-- "यह लड़की अपने दिमाग से और अपनी उम्र से दो-तीन साल पीछे चलेगी, पर यह जरूर पढेंगी और लिखेगी और बोलेगी भी"! फिर स्कूल में टीचर की मेहनत रंग लाई धीरे-धीरे वह लड़की पढ़ने लिखने लगी। इस तरह उस लड़की ने अपने जीवन के कई उतार-चढ़ाव देखें और बीए पास कर ली।
लेकिन लड़की के भाई बहन उसके ठीक हो जाने पर भी उसे पागल बनाना नहीं छोड़ते थे। आसपास के मोहल्ले के कई लोग उसे पागल पागल कह कर बुलाया करते थे। वह लड़की हिम्मत नहीं हारी। जब वह पूरी तरह ठीक हो गई तो उसके बड़े भाई ने उसके ऊपर पहरा लगाना शुरु कर दिया। उसे बाहर छज्जे में खड़े होने नहीं देते थे और उसकी पढ़ाई लिखाई पर मैं भी पाबंदी लगा दी गई।
वह लड़की पढ़ना लिखना चाहती थी और आईपीएस अफसर बनना चाहती थी, परंतु उसकी मां और भाई ने उसकी कोई इच्छा पूरी नहीं की और उसकी शादी कर दी। शादी होने के बाद भी उसके ससुराल में उसके सास-ससुर ने उसे आगे पढ़ने लिखने नहीं दिया। घर की जिम्मेदारियों का बोझ उस पर डाल दिए। वह लड़की अपनी इच्छाओं को मारकर अंदर ही अंदर घुटती चली गई।
उस समय टेलीफोन का जमाना था, इसलिए वो चाहकर भी इंटरनेट में पढ़ाई नहीं कर पाती थी, और जब मोबाइल का जमाना आया तब तक उसकी पढ़ने-लिखने की उम्र निकल चुकी थी। फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। फिर आया फेसबुक! उसने उस के माध्यम से अपनी पहचान बनाने की ठानी। उसे कविता, शायरी, लेख लिखने का काफी शौक था। ग्यारह और बारह क्लास में स्कूल की पत्रिका में अक्सर उसकी कविताएं और लेख छपा करते थे।
इसी में वह खुश हो जाया करती थी। लेकिन शादी के बाद उसकी इच्छा दफन हो कर रह गई थी। फेसबुक के माध्यम से उसने अपनी कविताओं और अपने विचारों को लोगो के सामने रखा, जिसमें उसको बड़ा मान-सम्मान मिलने लगा था। अब मैं आप लोगों से सवाल करती हूं!! ना जाने उसके जैसे कितनी हजारों लड़कियां हैं, जो अपनी इच्छाओं को पारिवारिक मजबूरी या आर्थिक मजबूरी के कारण दबा दिया करती हैं।
क्या? लड़कियों की इच्छाओं का कोई वजूद नहीं होता है! क्या? लड़की की इच्छा का इस तरह अंत किया जाना ठीक है? अब मैं आपको यह बताना चाहती हूं कि वह विक्षिप्त लड़की कौन थी। वह और कोई नहीं थी वह मैं थी, जी हां!! " मेरी पडोसी पूजा गुप्ता थी"!! (वो पागल लड़की)
जबलपुर!!! वह शहर है, जहां पर उस लड़की का जन्म हुआ था। उसका नाम बड़े प्यार से रखा गया था, पूजा पर कोई नहीं जानता था वह लड़की अपनी किस्मत में क्या लेकर आई है। जब वह 2 साल की हुई तो कोई भी बात को समझा नहीं करती थी।
उसकी मां हर दिन उस लड़की में परिवर्तन देखा करती थी। वह छोटी सी बच्ची के मुंह से मां शब्द सुनने के लिए तरसा करती थी। पर उसकी मां को यह नहीं पता था, कि उसकी लड़की में कुछ कमी है। एक दिन अचानक से उस लड़की को दौरे पड़े, और वह जमीन में लोटने लगी। यह देखकर उसकी मां घबरा गई और भागकर डॉक्टर के पास ले गई।
डॉक्टर ने चेक किया पर उस लड़की की परेशानी को समझ नहीं पाया और दूसरे डॉक्टर के पास भेज दिया। इसी तरह उसकी मां ने कई डॉक्टर के पास जाकर अपनी बेटी का इलाज कराने की कोशिश की। सभी डॉक्टर यह बात समझ नहीं पाए कि बेटी को क्या हुआ है। वह लड़की बोल नहीं पाती थी, ना कुछ समझ पाती थी।
मां बड़ी परेशान हो गई थी, बेचारी घर घर में बर्तन मांज कर और इडली की दुकान लगाकर अपने बेटी का इलाज कराया करती थी। क्योंकि उसका पति निकम्मा था। कोई काम काज नहीं किया करता था। माँ ने हिम्मत नहीं हारी और फिर डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर बोला- "आप की लड़की पागल है!! इसे पागलखाने में भेज दो!
मां गुस्सा कर बोली- "डॉक्टर साहब मेरी लड़की पागल नहीं है" और फिर वह वहां से घर चली आई। लड़की 4 साल की हुई उसके स्कूल जाने का समय आ गया था। लेकिन उस लड़की को दौरे पड़ना कभी बंद नहीं हुए। उसे स्कूल में भी दौरे पड जाया करते थे। वह जमीन भी लोटने लगती थी। कभी-कभी जब वह अपने दिमाग पर काबू नहीं कर पाती थी। उसे अंदर से कई प्रकार की तकलीफ होती थी।
उसे स्कूल के बच्चे हमेशा परेशान करते थे। सीधी साधी भोली भाली सी लड़की! उसे क्या पता था कि उसके दिमाग में परेशानी है। हम तो तब हो गई जब 1 दिन स्कूल की टीचर ने उसकी मां को बुलाई बोली _"आपकी लड़की तो पागलों जैसी हरकतें करती है "! उसकी मां बोली- "टीचर जी! मेरी बेटी पागल नहीं है।
वह बस बीमार है, पर स्कूल की टीचर कहां मानने वाली थी, उस लड़की को स्कूल से निकाल दिया गया।
मां परेशान रहने लगी फिर दूसरी स्कूल में दाखिला कराया गया। वहां एक टीचर थी, बहुत अच्छी टीचर! उसने उस लड़की को पढ़ाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। कुछ समय बाद मां को एक नामी डॉक्टर का पता चला वह अपनी बच्ची को उस डॉक्टर के पास ले गई।
डॉक्टर ने चेक किया और बताया कि-- "आप की लड़की पागल" नहीं है, नाम बताओ जिसने इस लड़की को पागल कहा है मैं इसे ठीक करूंगा। बस इसके पेट में एक पटार है जो धीरे-धीरे इसके दिमाग में चढ़ने की कोशिश कर रही है। जिसकी वजह से इसको दौरे आते हैं। मैं इस पटार को निकालकर नए तरीके से इलाज करूंगा"!
डॉक्टर की मेहनत सफल हुई, वह लड़की ठीक हो गई। लेकिन डॉक्टर ने बताया-- "यह लड़की अपने दिमाग से और अपनी उम्र से दो-तीन साल पीछे चलेगी, पर यह जरूर पढेंगी और लिखेगी और बोलेगी भी"! फिर स्कूल में टीचर की मेहनत रंग लाई धीरे-धीरे वह लड़की पढ़ने लिखने लगी। इस तरह उस लड़की ने अपने जीवन के कई उतार-चढ़ाव देखें और बीए पास कर ली।
लेकिन लड़की के भाई बहन उसके ठीक हो जाने पर भी उसे पागल बनाना नहीं छोड़ते थे। आसपास के मोहल्ले के कई लोग उसे पागल पागल कह कर बुलाया करते थे। वह लड़की हिम्मत नहीं हारी। जब वह पूरी तरह ठीक हो गई तो उसके बड़े भाई ने उसके ऊपर पहरा लगाना शुरु कर दिया। उसे बाहर छज्जे में खड़े होने नहीं देते थे और उसकी पढ़ाई लिखाई पर मैं भी पाबंदी लगा दी गई।
वह लड़की पढ़ना लिखना चाहती थी और आईपीएस अफसर बनना चाहती थी, परंतु उसकी मां और भाई ने उसकी कोई इच्छा पूरी नहीं की और उसकी शादी कर दी। शादी होने के बाद भी उसके ससुराल में उसके सास-ससुर ने उसे आगे पढ़ने लिखने नहीं दिया। घर की जिम्मेदारियों का बोझ उस पर डाल दिए। वह लड़की अपनी इच्छाओं को मारकर अंदर ही अंदर घुटती चली गई।
उस समय टेलीफोन का जमाना था, इसलिए वो चाहकर भी इंटरनेट में पढ़ाई नहीं कर पाती थी, और जब मोबाइल का जमाना आया तब तक उसकी पढ़ने-लिखने की उम्र निकल चुकी थी। फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। फिर आया फेसबुक! उसने उस के माध्यम से अपनी पहचान बनाने की ठानी। उसे कविता, शायरी, लेख लिखने का काफी शौक था। ग्यारह और बारह क्लास में स्कूल की पत्रिका में अक्सर उसकी कविताएं और लेख छपा करते थे।
इसी में वह खुश हो जाया करती थी। लेकिन शादी के बाद उसकी इच्छा दफन हो कर रह गई थी। फेसबुक के माध्यम से उसने अपनी कविताओं और अपने विचारों को लोगो के सामने रखा, जिसमें उसको बड़ा मान-सम्मान मिलने लगा था। अब मैं आप लोगों से सवाल करती हूं!! ना जाने उसके जैसे कितनी हजारों लड़कियां हैं, जो अपनी इच्छाओं को पारिवारिक मजबूरी या आर्थिक मजबूरी के कारण दबा दिया करती हैं।
क्या? लड़कियों की इच्छाओं का कोई वजूद नहीं होता है! क्या? लड़की की इच्छा का इस तरह अंत किया जाना ठीक है? अब मैं आपको यह बताना चाहती हूं कि वह विक्षिप्त लड़की कौन थी। वह और कोई नहीं थी वह मैं थी, जी हां!! " मेरी पडोसी पूजा गुप्ता थी"!! (वो पागल लड़की)
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