पत्नी का सम्मान(कहानी)

पत्नी का सम्मान(कहानी)

ग्रामीण बैंक में मैनेजर की पोस्टिंग होने के बाद पहली बार विजय किराए के नए घर में शिफ्ट हुआ था पर आज ही सीढ़ियों से फिसलने के कारण रागिनी के पैरों में जबरदस्त मोच आ गयी थी।डॉक्टर ने घर पर आकर पट्टियाँ तो बाँध दी साथ ही साथ सख्त हिदायत दे दीं की चलना फिरना बिल्कुल मना है।एक सप्ताह पहले आये नए घर के आस पास कोई जान पहचान के लोग भी नहीं थे।ये तो बहुत अच्छी बात रही कि पिछले कुछ दिनों में रागिनी ने किचन के साथ साथ पूरे घर को व्यवस्थित कर लिया था।
चार साल पहले विजय और रागिनी की परिवारवालों की सहमति से अर्रेंज मैरेज हुई थी।रागिनी खुद भी पढ़ने में काफी तेज थी और पढ़ लिख कर जीवन मे कुछ बनना चाहती थी लेकिन पापा को कैंसर का पता चला और उसी वक़्त विजय के यहाँ से रिश्ता आया तो मजबूरी के चलते शादी करनी पड़ी।शादी के बाद रागिनी पूरी तरह से ससुरालवालों की खुशियों के लिए खुद को न्योछावर कर दी ।वो पूरी तरह से आदर्श बहु बन गयी।
ससुराल में सब उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे।उसके व्यवहार ,कार्यकुशलता से सभी प्रभावित थे ।कुछ ही दिनों में उसने अपने ससुराल की काया बदल कर रख दी थी। पहले हर चीज जैसे तैसे होती थी अब हर चीज साफ सुथरी और व्यवस्थित रहने लगी ।खाना भी वो बड़े जतन से बनाती थी हर लोग उसके बनाये लजीज खाने की खूब तारीफ करते सिवाय उसके पति विजय के।
विजय को जरा भी खाने में नमक कम या ज्यादा लगता या मसाला कम होता तो वो एक कोर खाना खाकर छोड़ देता था ।परसों खीर में थोड़ी चीनी कम क्या हुई रागिनी के लाख मिन्नतों के बाद भी उसने खाने को दुबारा हाथ तक नहीं लगाया।सबसे ज्यादा विजय को मटर पनीर पसंद थी कुछ दिनों पहले जब मटर पनीर बनी और मटर थोड़ी गल गयी तो भी विजय ने खाना नहीं खाया जबकि घर के सभी सदस्यों ने खूब मजे से खाये।रागिनी के लाख मिन्नतें करने और मनाने के बाद भी विजय खाना नहीं खाता था और विजय जब भूखा सो जाता तो रागिनी भी भूखी सो जाती थी ।महीने में कई बार ऐसा होता था।अब पहली बार विजय नौकरी के लिए घर से दूर आया था।
रागिनी को पलँग पर अच्छे से सुलाकर विजय आज ज़िंदगी मे पहली बार खाना बनाने के ख्याल से घुसा।किचन में हर चीज रागिनी ने व्यवस्थित रखा था।विजय ने एक तरफ थोड़ा सा चावल गैस चूल्हे पर चढ़ा दियाऔर दूसरी तरफ थोड़ी सी दाल एक पतीले में चढ़ा दी।फिर वो थोड़े आलू प्याज लेकर भुजिया काटने लगा। काफी मेहनत के बाद बहुत ही बेतरतीब ढंग से आलू और प्याज कटे।उसे आभास होने लगा था खाना बनाने में बहुत मेहनत लगती है।दो घंटे की मेहनत के बाद उसने किसी तरह खाना बनाने में सफलता पाई।
एक थाली में भात और कटोरी में दाल और प्लेट में भुजिया लेकर वो पलँग पर रागिनी को अपने हाथों से खाना खिलाने लगा।वो कोर कोर रागिनी को खाना खिलाता जाता था और रागिनी बड़े आराम से खुशी खुशी खाना खाती जाती थी ।खाना ख़त्म होने के बाद विजय ने रागिनी से पूछा कैसा लगा खाना? रागिनी ने कहा बहुत अच्छा।मैं कितनी खुशनसीब हूँ आज ज़िन्दगी में पहली बार पति के हाथों बना गरमागरम खाना खाने को मिला।विजय से सुनकर बहुत खुश हुआ आखिर दो घंटे कड़ी मेहनत करके उसने खाना बनाया था ।खाने की तारीफ सुनकर वह फूला न समाया उसे लगा उसकी मेहनत सफल रही।
रागिनी को खाना खिलाने के बाद वो खुद खाना खाने बैठा उसे जोरों की भूख लगी थी।दाल भात मिलाकर थोड़ी भुजिया का कोर बनाकर जैसे ही मुँह में डालकर विजय ने चबाना शुरू किया तेजी से बेसिन की तरफ दौड़ा और मुँह का सारा खाना बेसिन में उगल दिया।चावल अधपका था।दाल में नमक बहुत ज्यादा था।भुजिया भी कच्चा था।ऐसा घटिया खाना रागिनी ने बिना कोई शिकवा शिकायत के खा लिया सिर्फ इसलिए कि मैंने इतनी मेहनत से बनाया था।छोटी छोटी बात पर पिछले सारे खाना न खाने वाले वक़्त की उसे याद आने लगी।उसके दोनों आँखों से आँसू निकल पड़े।अपने बनाये जिस जिस खाने को वो एक कोर भी न खा सका रागिनी ने बिना कुछ कहे पूरे खाने को खा लिए।
विजय रागिनी जे सामने सर झुकाए हाथ जोड़े धीरे से बोला"पिछले चार सालों में कई बार खाना न खाकर मैंने तुम्हारा जो अपमान किया आज खाना खाकर तुमने मेरा कितना बड़ा सम्मान किया मुझे माफ़ कर दो।
रागिनी ने मुस्कुराते हुए
कहा ।दूध गर्म कर चूड़ा के साथ आज खा लीजिए एक दो दिनों में मैं ठीक हो जाऊँगी फिर आपको कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।

इसके बाद कोई भी ऐसा वक़्त नहीं आया जब रागिनी का बनाया खाना विजय ने खुशी खुशी न खाया हो।एक बार खाना बनाने में लगी मेहनत ने विजय पत्नी का सम्मान करना सीख गया था ।

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