जापान में एक फकीर था बोकोजू।

जापान में एक फकीर था बोकोजू।
वह लोगों को वृक्षों पर चढ़ने की कला सिखाता था।
और वह यह कहता था कि वृक्षों पर चढ़ने की कला
के साथ ही मैं जागने की कला भी सिखाता हूं।

अब फकीर को वृक्षों पर चढ़ने की कला सिखाने से
कोई प्रयोजन भी नहीं है। लेकिन उस फकीर ने
बड़ी समझ की बात खोजी थी कि जागना
और वृक्ष पर चढ़ना एक साथ सिखाना आसान था।

जापान का एक राजकुमार उस फकीर के पास वृक्ष
पर चढ़ना सीखने गया।
कोई डेढ़ सौ फीट ऊंचे सीधे वृक्ष पर उस फकीर ने
कहा कि तुम चढ़ो। और वह फकीर नीचे बैठ गया।

राजकुमार जैसे-जैसे ऊपर जाने लगा,
उसने नीचे लौट कर देखा, वैसे-वैसे फकीर ने
आंख बंद कर ली।
राजकुमार डेढ़ सौ फीट ऊपर चढ़ गया,
जहां से जरा भी चूक जाए तो प्राणों का खतरा है।
तेज हवाएं हैं, वृक्ष कंपता है,

आखिरी शिखर तक जाकर उसे वापस लौटना है।
श्वास लेने तक में डर लगता है।
और वह फकीर कुछ भी नहीं बोलता,
चुपचाप नीचे बैठा है, न बताता है कैसे चढ़ो,
न कहता है कि क्या करो।

फिर वह वापस लौटना शुरू हुआ।
जब कोई पंद्रह फीट ऊपर रह गया,
तब वह फकीर छलांग लगा कर खड़ा हो गया
और उसने कहा, सावधानी से उतरना! होश से उतरना!

राजकुमार बहुत हैरान हुआ कि कैसा पागल है!
जब मैं डेढ़ सौ फीट ऊपर था, तब चुपचाप बैठा रहा।
और अब जब मैं पंद्रह फीट कुल ऊंचाई पर रह गया हूं,

जहां से गिर भी जाऊं तो अब बहुत खतरा नहीं है,
वहां इन सज्जन को होश आया है, चिल्ला रहे हैं
कि सावधान! होशियारी से उतरना!
बोधपूर्वक उतरना! गिर मत जाना!

नीचे उतरा, और उसने कहा, मैं बहुत हैरान हूं!
जब मैं डेढ़ सौ फीट ऊपर था, तब तुमने सावधानी
के लिए नहीं कहा। और जब पंद्रह फीट,
नीचे से केवल पंद्रह फीट रह गया, तब तुम चिल्लाने लगे।

उस फकीर ने कहा, जब तुम डेढ़ सौ फीट ऊपर थे,
तब तुम खुद ही सावधान थे।
मुझे कुछ कहने की जरूरत न थी।
खतरा इतना ज्यादा था कि तुम खुद ही जागे हुए रहे होगे।

लेकिन जैसे-जैसे तुम जमीन के करीब आने लगे,
मैंने देखा कि नींद ने पकड़ना तुम्हें शुरू कर दिया है,
तुम्हारा होश खो रहा है।

उस फकीर ने कहा, जिंदगी भर का मेरा अनुभव है,
लोग जमीन के पास आकर गिर जाते हैं,
ऊपर से कभी कोई नहीं गिरता।
ऊपर इतना खतरा होता है कि आदमी जागा होता है।

और उस राजकुमार से उसने कहा कि तुम सोचो:
जब तुम डेढ़ सौ फीट ऊपर थे,
हवाएं जोर की थीं और वृक्ष कंपता था,
तब तुम्हारे मन में कितने विचार चलते थे?

उसने कहा, विचार? एक विचार नहीं चलता था!
बस एकमात्र होश था कि जरा चूक न जाऊं!
मैं उस वक्त पूरी तरह जागा हुआ था।

तो उस फकीर ने पूछा,
उस जागरण में तुम्हें कोई विचार नहीं थे!
मन अशांत था, दुखी था, परेशान था,
स्मृतियां आती थीं, भविष्य की कल्पना आती थी?

उसने कहा, कुछ भी नहीं आता था! बस मैं था,
डेढ़ सौ फीट की ऊंचाई थी, प्राण खतरे में थे!
वहां कुछ भी न अतीत था, न भविष्य था।
बस वर्तमान था! वही क्षण था और कंपती हुई हवाएं थीं,
और प्राण का खतरा था, और मैं था,
और मैं पूरी तरह जागा हुआ था!

उस फकीर ने कहा, तो तुम समझ लो,
अगर इस तरह तुम चौबीस घंटे जागे रहने लगो,
तो तुम उसे जान लोगे जो आत्मा है।
इसके अतिरिक्त तुम नहीं जान सकते हो।

यह जान कर हैरानी होगी कि
बहुत बार खतरों में आदमी को
आत्मा का साक्षात्कार हो जाता है।

और यह भी जान कर हैरानी होगी कि
खतरे का जो हमारे भीतर आकर्षण है,
वह आत्मा को पाने का ही आकर्षण है।
खतरे का भी एक आकर्षण है,
डेंजर का भी एक आकर्षण है हर एक के भीतर।

और जब तक आदमी में थोड़ा बल होता है,
खतरे का एक मोह होता है,
खतरे को स्वीकार करने की एक इच्छा होती है।

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