वाराणसी के जिलाधिकारी सुरेन्द्र सिंह
अपने जीवन में तीन-तीन गुरुओ से प्रभावित है उनके पहले गुरु उनके पिता श्री हरी सिंह
जी है जिन्होंने उनका स्कूल में दाखिला होने से पहले 40 तक का पहाडा याद करा दिया
था | पिता जी के बाद बड़े भाई जीतेन्द्र सिंह के योगदान को वह कभी नहीं भूल सकते |
हिंदी व अंग्रेजी के स्वरों और व्यंजनों का लिखना – पढ़ना उन्होंने सिखाया था |
सुरेन्द्र सिंह जी जब 7 वर्ष के हुए तो मथुरा के सैदपुर ( कासिमपुर )गाँव की
प्राथमिक पाठशाला में उनका प्रवेश हुआ | स्कूल का पहला दिन था | शिक्षक श्याम
सुन्दर पाण्डेय सभी बच्चो से तरह – तरह के सवाल पूछ रहे थे | श्री श्याम सुन्दर
पाण्डेय जी ने सुरेन्द्र सिंह जी से जितने भी सवाल किए, उनका सही जवाब वह देते गए
| करीब एक दर्जन सवालों के सही उत्तर पाने के बाद उनके शिक्षक ने पूछा की तुम क्या
बनना चाहते हो | बालक सुरेन्द्र सिंह जी ने कहाँ,”मै बड़ा होकर कलेक्टर बनना चाहता
हूँ | उस दिन शिक्षक श्याम सुंदर पाण्डेय जी ने कहा की आज मै भविष्यवाणी कर रहा हूँ,
इसे याद रखना | एक दिन तुम जरुर कलेक्टर बनोगे | समय गुजरता गया | बेसिक से उच्च
शिक्षा की ओर वह सफलता पूर्वक बढ़ाते रहे | वह दिन भी आया जब भविष्यवाणी सच हुयी |
पहली बार कलेक्टर की जिम्मेदारी संभालने के बाद सुरेन्द्र सिंह जी ने अपने गुरु की
खोज शुरू की | रिटायर हो चुके अपने गुरु को खोज निकाला और सार्वजनिक मंच पर उनका
सम्मान किया |
नोट : इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की अगर घर के गार्जियन अपने बच्चो को बचपन में उनके दिमाग में जैसा बीज बोयेंगे बच्चा बड़ा होकर वैसा ही बनता है इसलिए बचपन में आप बच्चे के साथ जितना मेहनत प्यार के साथ करोगे बड़ा होने बच्चो को उतना ही कम मेहनत करना पड़ेगा पढ़ाई के लिए और वह अपने लक्ष्य या आपके लक्ष्य को जरुर पा सकेंगे |
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