#ट्रू_लव_स्टोरी...
ट्रेन चल पड़ी।
उस मुकाम की ओर जिसे मैं आठ साल पहले छोड़ आया था।
उस मंजिल की और जिसे पाने की खातिर मैने खुद को भुला दिया था। आठ साल की अथक और जी तोड़ मेहनत रंग लाई थी और मेरा सलेक्शन भारतीय प्रशासनिक सेवा में हो गया था।
मैं आई. ए. एस. बन गया था। अपनी मोहब्बत को पाने के लिए ये सफर बड़ा ही दर्दनाक और थका देने वाला था।
परसों ही रिजल्ट आया था। जो पुराने दोस्त आठ साल से मुझे भुलाए बैठे थे एक एक कर सबका फोन आ गया।
बधाइयों का तांता लग गया था
एक दोस्त जो मेरा कुछ ज्यादा ही अजीज था
उससे मैंने पूछा:-" प्रेरणा कैसी है?
वो बिदक गया बोला:-"अभी तक भुला नही उसको? अरे जिसके कारण तुझे गाँव छोड़ना पड़ा। जिसके कारण तू पूरे गांव में आवारा कहलाने लगा उसका भूत तेरे दिमाग से निकला नही। अब तू आई ए एस बन गया है। ऊपर की रैंक आई है । पक्का कलेक्टर बनेगा। कहाँ वो अनपढ़ गवाँर प्रेरणा और कहाँ तू?
छोड़ उसकी चर्चा। तेरी शादी करोड़ पति की बेटी से करवाऊंगा। एक दम हीरोइन लगती है। सुंदर इतनी है जैसे परखनली से निकाली गई हो।"
मैं बीच मे बोल पड़ा:- "तू सिर्फ ये बता प्रेरणा कैसी है?"
वो रूखे स्वर में बोला:-" ठीक है " हर समय घर मे ही रहती है शादी नही की। जबरदस्ती शादी करने की कोशिश की तो तालाब में कूद गई। किसी ने देख लिया इस कारण बच गई।
इतना सुनकर मैंने फोन काट दिया था। दर्द सा उठा था दिल मे। जानकर की उसने आत्महत्या करने की कोशिश की। जबकि उसने वादा किया था...... हाँ वादा...
ट्रेन अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी। यादों के पंछी अपने घोंसले से निकल कर चहचहाने लगे थे। कि किस तरह उसके भाइयों ने मुझे पीट कर अधमरा कर दिया था।
मेरा गांव में रहना मुश्किल नही नामुमकिन कर दिया था।
आखिर मैंने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया था।
जिस दिन स्टेशन पहुंचा। न जाने उसे कैसे पता चल गया।छुपकर आ पहुंची थी।
रोते रोते उसने पूछा था:-" जा रहे हो?"
"हाँ"
"लौट कर कब आओगे?"
"कभी नही"
"बस इतना ही प्यार था क्या?"
"तू भी साथ चल"
"नही चल सकती, वो तुझे मार देगें"
"तो क्या हुआ? दोनो मरेगें साथ।"
"नही हमे मरना नही, जीना है"
"तो हम कैसे मिलेंगे?"
"तू बड़ा आदमी बनकर लौट मेरे लिए"
"तब तक तेरी शादी हो गई तो?"
'" नही होगी"
"हो गई तो?"
"बोला न,, नही होगी,, बस तू जल्दी लौटना।"
ट्रेन चल पड़ी थी।वो साथ साथ दौड़ने लगी।
तू मेरा इंतजार करना, मैं लौट के आऊंगा"
वो जोर लगा कर बोली, "मैं इंतजार करूंगी" मैं इंतजार करूंगी" ,,,मैं इंतजार,,, उसके बाकी के शब्द ट्रेन की आवाज में खो गए थे।
मग़र पिछले आठ वर्षों में उनकी प्रतिध्वनि मेरे कानों में हर पल हर लम्हा गूंजती रही थी,,,
धीरे धीरे वही शब्द मेरी ताकत बन गए। मैं एक सामान्य बुद्धि और नकारा सा लड़का उसकी मोहब्बत के दम पे बड़ा आदमी बन गया था।
मेरे माँ-बाप तो बचपन मे ही गुजर गए थे। भाई भाभियों को मुझसे कोई मतलब नही था। इस दुनिया मे प्रेरणा के सिवा मेरा था ही कौन??
आज मैं जो भी था उसकी बदौलत था।
जब गाड़ी स्टेशन पर रुकी तो पूरा गाँव मेरे स्वागत में खड़ा था।
अजीब बात थी मैंने एक दोस्त को आने की खबर दी थी। मगर गाँव भर के लोग मेरे स्वागत में खड़े थे।
मेरा परिवार भी था। मगर न प्रेरणा थी न उसके घर के लोग।
रास्तेभर मैं उसकी दो आंखों को तलाशता रहा।
जब उसके घर के आगे से निकले तो मुझसे रहा नही गया।
मैं सीधा उसके घर मे घुस गया।
उसके भाई-भाभी, माँ-बाप सब मुझे आश्चर्य से देखने लगे।
फिर उसका बड़ा भाई खूंखार चेहरे वाला आगे बढ़ा और मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोला:-" शाबाश, तुझसे अच्छा लडका हम नही खोज सकते अपनी बहन के लिए। जा वो अंदर बैठी है। आठ साल से तेरा ही इंतजार कर रही है।"
पंख लग गए थे कमबख्त मेरे।
मैं तेज दौड़ा।
वो टूटे-फूटे कमरे में दुबकी सी बैठी थी।
बहुत दुबली हो गई थी।
जैसे वर्षो से बीमार हो।
मुझे देख कर दो शब्द निकले उसके मुख से :-"तुम आ गए"
मेरे लब्ज खो गए थे। कुछ मुह से निकला ही नही। हाँ आंखे जरूर भीग गई थी।
वो मेरे तरफ तेजी से लपकी तो लड़खड़ा गई थी । गिरने को हुई तो मेरी बांहों ने उसे थाम लिया। हमेशा के लिए।
ट्रेन चल पड़ी।
उस मुकाम की ओर जिसे मैं आठ साल पहले छोड़ आया था।
उस मंजिल की और जिसे पाने की खातिर मैने खुद को भुला दिया था। आठ साल की अथक और जी तोड़ मेहनत रंग लाई थी और मेरा सलेक्शन भारतीय प्रशासनिक सेवा में हो गया था।
मैं आई. ए. एस. बन गया था। अपनी मोहब्बत को पाने के लिए ये सफर बड़ा ही दर्दनाक और थका देने वाला था।
परसों ही रिजल्ट आया था। जो पुराने दोस्त आठ साल से मुझे भुलाए बैठे थे एक एक कर सबका फोन आ गया।
बधाइयों का तांता लग गया था
एक दोस्त जो मेरा कुछ ज्यादा ही अजीज था
उससे मैंने पूछा:-" प्रेरणा कैसी है?
वो बिदक गया बोला:-"अभी तक भुला नही उसको? अरे जिसके कारण तुझे गाँव छोड़ना पड़ा। जिसके कारण तू पूरे गांव में आवारा कहलाने लगा उसका भूत तेरे दिमाग से निकला नही। अब तू आई ए एस बन गया है। ऊपर की रैंक आई है । पक्का कलेक्टर बनेगा। कहाँ वो अनपढ़ गवाँर प्रेरणा और कहाँ तू?
छोड़ उसकी चर्चा। तेरी शादी करोड़ पति की बेटी से करवाऊंगा। एक दम हीरोइन लगती है। सुंदर इतनी है जैसे परखनली से निकाली गई हो।"
मैं बीच मे बोल पड़ा:- "तू सिर्फ ये बता प्रेरणा कैसी है?"
वो रूखे स्वर में बोला:-" ठीक है " हर समय घर मे ही रहती है शादी नही की। जबरदस्ती शादी करने की कोशिश की तो तालाब में कूद गई। किसी ने देख लिया इस कारण बच गई।
इतना सुनकर मैंने फोन काट दिया था। दर्द सा उठा था दिल मे। जानकर की उसने आत्महत्या करने की कोशिश की। जबकि उसने वादा किया था...... हाँ वादा...
ट्रेन अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी। यादों के पंछी अपने घोंसले से निकल कर चहचहाने लगे थे। कि किस तरह उसके भाइयों ने मुझे पीट कर अधमरा कर दिया था।
मेरा गांव में रहना मुश्किल नही नामुमकिन कर दिया था।
आखिर मैंने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया था।
जिस दिन स्टेशन पहुंचा। न जाने उसे कैसे पता चल गया।छुपकर आ पहुंची थी।
रोते रोते उसने पूछा था:-" जा रहे हो?"
"हाँ"
"लौट कर कब आओगे?"
"कभी नही"
"बस इतना ही प्यार था क्या?"
"तू भी साथ चल"
"नही चल सकती, वो तुझे मार देगें"
"तो क्या हुआ? दोनो मरेगें साथ।"
"नही हमे मरना नही, जीना है"
"तो हम कैसे मिलेंगे?"
"तू बड़ा आदमी बनकर लौट मेरे लिए"
"तब तक तेरी शादी हो गई तो?"
'" नही होगी"
"हो गई तो?"
"बोला न,, नही होगी,, बस तू जल्दी लौटना।"
ट्रेन चल पड़ी थी।वो साथ साथ दौड़ने लगी।
तू मेरा इंतजार करना, मैं लौट के आऊंगा"
वो जोर लगा कर बोली, "मैं इंतजार करूंगी" मैं इंतजार करूंगी" ,,,मैं इंतजार,,, उसके बाकी के शब्द ट्रेन की आवाज में खो गए थे।
मग़र पिछले आठ वर्षों में उनकी प्रतिध्वनि मेरे कानों में हर पल हर लम्हा गूंजती रही थी,,,
धीरे धीरे वही शब्द मेरी ताकत बन गए। मैं एक सामान्य बुद्धि और नकारा सा लड़का उसकी मोहब्बत के दम पे बड़ा आदमी बन गया था।
मेरे माँ-बाप तो बचपन मे ही गुजर गए थे। भाई भाभियों को मुझसे कोई मतलब नही था। इस दुनिया मे प्रेरणा के सिवा मेरा था ही कौन??
आज मैं जो भी था उसकी बदौलत था।
जब गाड़ी स्टेशन पर रुकी तो पूरा गाँव मेरे स्वागत में खड़ा था।
अजीब बात थी मैंने एक दोस्त को आने की खबर दी थी। मगर गाँव भर के लोग मेरे स्वागत में खड़े थे।
मेरा परिवार भी था। मगर न प्रेरणा थी न उसके घर के लोग।
रास्तेभर मैं उसकी दो आंखों को तलाशता रहा।
जब उसके घर के आगे से निकले तो मुझसे रहा नही गया।
मैं सीधा उसके घर मे घुस गया।
उसके भाई-भाभी, माँ-बाप सब मुझे आश्चर्य से देखने लगे।
फिर उसका बड़ा भाई खूंखार चेहरे वाला आगे बढ़ा और मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोला:-" शाबाश, तुझसे अच्छा लडका हम नही खोज सकते अपनी बहन के लिए। जा वो अंदर बैठी है। आठ साल से तेरा ही इंतजार कर रही है।"
पंख लग गए थे कमबख्त मेरे।
मैं तेज दौड़ा।
वो टूटे-फूटे कमरे में दुबकी सी बैठी थी।
बहुत दुबली हो गई थी।
जैसे वर्षो से बीमार हो।
मुझे देख कर दो शब्द निकले उसके मुख से :-"तुम आ गए"
मेरे लब्ज खो गए थे। कुछ मुह से निकला ही नही। हाँ आंखे जरूर भीग गई थी।
वो मेरे तरफ तेजी से लपकी तो लड़खड़ा गई थी । गिरने को हुई तो मेरी बांहों ने उसे थाम लिया। हमेशा के लिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें