शब्द अपने अर्थ के बोधक होते हैं जैसे समुद्र, बारिश, कछुआ, तितली कहते ही आपके सामने उनके चित्र आ जाते हैं।
लेकिन अंत्येष्टि कहते ही एक अर्थी के पीछे चलते सैकड़ो लोग, राम नाम सत्य है कि आवाजें या जलती हुई चिता ही दिमाग में आती है क्यों ?
क्योंकि इसका वास्तविक अर्थ हम भूल गए हैं। इष्टि का अर्थ होता है यज्ञ, याग, होम, हवन जैसे दीपावली को शारदीय नवशसयेष्टि कहते हैं या पूर्णिमा और अमावस्या को किए गए यज्ञ को पक्षेष्टि कहते हैं वैसे ही अंत्येष्टि यानी अंतिम यज्ञ।
पंचभौतिको देह :- सांख्यदर्शन, महर्षि कपिल कहते हैं कि हमारा शरीर पाँच भूतों से बना है। फिर पूरा जीवन हम उन्हें गन्दा ही करते हैं। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदुषण आदि। पूरा जीवन ऑक्सिजन लेते हैं कार्बन छोड़ते हैं। तो उस परिस्थिति को संतुलन करने के लिए यज्ञों कि व्यवस्था ऋषियों द्वारा निर्धारित की गई। अंत्येष्टि उनमें अंतिम यज्ञ है।
भस्मानतं शरीरम -यजुर्वेद-४०-१५,
अर्थात - शरीर का संस्कार भस्म करने पर्यंत है।
इसमें मुख्य बात ये है कि जितना शरीर का भार हो उतना 'गाय का घी' लेना चाहिए और शरीर वजन से दोगुनी सामग्री लेनी चाहिए। कोई भिखारी या महादरिद्र है तो भी राजा या गाँव वालों को चाहिए कि कम से कम 20 किलो घी देना चाहिए और 50 किलो सामग्री।
आजकल कोई मरता है तो जैसा व्यक्ति का रसूख है उतने लोग श्मशान घाट तक पीछे पीछे जाते हैं लेकिन अधिकतर खाली हाथ या गाँव में हैं तो लकड़ी या उपला लेकर।
जबकि ऋषियों ने यह परंपरा इसलिए शुरू करवाई थी ताकि कोई ऐसा मर जाए जिसका सामर्थ्य न हो, तो पीछे जाने वाले लोग पचास से सौ ग्राम घी लेकर जाएं ताकि शमशान घाट में पर्याप्त घी इक्कठा हो जाए।
फिर चारों वेदों के कुल 121 मन्त्र हैं, जिनको बोलकर आहुति देनी है। चिता के चारों तरफ चार व्यक्ति लम्बी लकड़ियों में चमचे बांधकर खड़े हो जाएं और मंत्रो के साथ स्वाहा बोलने पर आहुति देते जाएं। बाकी परिजन या गाँव वाले सामग्री की आहुति देते जाएं। फिर आप अनुभूत करेंगे की मरने वाला सच में स्वर्ग ही गया होगा, वातावरण में घी और सामग्री की कई किलोमीटर तक सुगंध होगी। लगेगा सच में अंतिम यज्ञ हुआ है, यानी अंत्येष्टि।
अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर वो अंत्येष्टि नहीं निधन माना जाएगा, पूरा जीवन कचरा किया, प्रदूषण फैलाया, जाते समय भी मांस और चमड़े के जलने की दुर्गंध छोड़कर जाएंगे। कम से कम मनुष्यों को तो ये शोभा नहीं देता।
जाते समय सुगंध और आनंद छोड़कर जाएं, दुःख और दुर्गन्ध नहीं।
हरि ॐ
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