दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पांच उपदेश जो जीवन के हर मोड़ पर आएंगी हर किसी के काम!!!!!




दैत्य गुरु शुक्राचार्य बहुत चतुर और गुणी थे। उन्होंने ऐसी नीतियों की रचना की जो इंसान को व्यवहारिक जीवन में काम आएं।

देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं तो दैत्यों के शुक्राचार्य। दोनों ही भगवान ब्रह्मा के वंशज हैं। वैसे तो दैत्यों की कोई बात अच्छी नहीं थी लेकिन दैत्यगुरु शुक्राचार्य एक बेहतरीन मैनेजमेंट गुरु थे। उन्होंने एक नीति ग्रंथ की रचना भी की थी जिसे शुक्र नीति के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कम शब्दों में बहुत काम की बातें कही हैं। शुक्राचार्य ने अपनी नीतियों में जो बताया है वो आज भी हमारे जीवन पर वैसा ही लागू होता है। ये हैं दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पांच नीतियां जिनसे हमें बेहतर जीवन की सीख मिलती है।

1. कल की सोचें, लेकिन कल पर न टालें नीति -
दीर्घदर्शी सदा च स्यात्, चिरकारी भवेन्न हि।

अर्थात - मनुष्य को अपना हर काम आज के साथ ही कल को भी ध्यान में रखकर करना चाहिए, लेकिन आज का काम कल पर टालना नहीं चाहिए। हर काम को वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की दृष्टी से भी सोचकर करें, लेकिन किसी भी काम को आलय के कारण कल पर न टालें। दूरदर्शी बने लेकिन दीर्घसूत्री (आलसी, काम टालने वाला) नहीं।

2. बिना सोचे-समझे किसी को मित्र न बनाएं
यो हि मित्रमविज्ञाय याथातथ्येन मन्दधीः।

मित्रार्थो योजयत्येनं तस्य सोर्थोवसीदति।। अर्थात - मनुष्य को किसी को भी मित्र बनाने से पहले कुछ बातों पर ध्यान देना बहुत ही जरूरी होता है। बिना सोचे-समझे या विचार किए किसी से भी मित्रता करना आपके लिए नुकसानदायक हो सकता हैं। मित्र के गुण-अवगुण, उसकी आदतें सभी हम पर भी बराबर प्रभाव डालती हैं। इसलिए, बुरे विचारों वाले या गलत आदतों वाले लोगों से मित्रता करने से बचें।

3. किसी पर भी हद से ज्यादा विश्वास न करें नीति - नात्यन्तं विश्र्वसेत् कच्चिद् विश्र्वस्तमपि सर्वदा।

अर्थात - आर्चाय शुक्रचार्य के अनुसार, चाहे किसी पर हमें कितना ही विश्वास हो, लेकिन उस भरोसे की कोई सीमा होनी चाहिए। किसी भी मनुष्य पर आंखें बंद करके या हद से ज्यादा विश्वास करना आपके लिए घातक साबित हो सकता है।

कई लोग आपके विश्वास का गलत फायदा उठाकर नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। इसलिए, इस बात का ध्यान रखें कि अपने विश्वसनियों पर विश्वास जरूर करें लेकिन साथ में अपनी भी आंखें खुली रखें।

4. न करें अन्न का अपमान नीति - अन्नं न निन्घात्।। अर्थात - अन्न को देवता के समान माना जाता है। अन्न हर मनुष्य के जीवन का आधार होता है, इसलिए धर्म ग्रंथों में अन्न का अपमान न करने की बात कही गई है। कई लोग अपना मनपसंद खाना न बनने पर अन्न का अपमान कर देते हैं, यह बहुत ही गलत माना जाता है। जिसके दुष्परिणाम स्वरूप कई तरह के दुखों का सामना भी करना पड़ सकता है। इसलिए ध्यान रहे कि किसी भी परिस्थिति में अन्न का अपमान न करें।

5. धर्म ही मनुष्य को सम्मान दिलाता है नीति- धर्मनीतिपरो राजा चिरं कीर्ति स चाश्नुते। अर्थात- हर किसी को अपने जीवन में धर्म और धर्म ग्रंथों का सम्मान करना चाहिए। जो मनुष्य अपनी दिनचर्या का थोड़ा सा समय देव-पूजा और धर्म-दान के कामों को देता है, उसे जीवन में सभी कामों में सफलता मिलती है।

धर्म का सम्मान करने वाले मनुष्य को समाज और परिवार में बहुत सम्मान मिलता है। इसलिए भूलकर भी धर्म का अपमान न करें, न ही ऐसा पाप-कर्म करने वाले मनुष्यों की संगति करें।

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