#बहू


#बहू
समधन को अचानक घर में आए देख बहू के परिवार के लोग बड़े हैरान हो गये थे। उन्हें घर में घुसते ही अच्छे से बैठाया गया। खातिर की जाने लगी।
"कैसे आना हुआ जी? सब कुशल तो है?"
"मैं हफ्तेभर घर से क्या चली गई कि बेटी को आपने बुला लिया। मैं वापिस लेने आई हूँ उसे।"
"पर ये तो कह रही है कि पूछकर आई है घर में।"
"आपकी याद आ रही थी सो बच्ची ने झूठ कह दिया होगा। आप बुलाइए जरा उसे।"
बहू ने आकर नमस्ते किया और एक ओर खड़ी हो गई।
"बेटी! तुमसे मुझे ये उम्मीद नहीं थी। तुम्हारे पापा कितना याद कर रहे हैं तुम्हें। वो उल्लू मुँह सुजाये बैठा है। क्या तुम्हें अपने घर का जरा भी ख्याल नहीं?"
"वो मैं ..."
"मालूम है मुझे। मेरे साथ चलना है तैयार हो जाओ।" बहू अंदर चली गई और अपना सामान लाकर वो लोग गाडी में बैठ गये।
"बेटी ! एक बात याद रखो, परेशानी से लड़ना सीखो जो लड़किया मैदान छोड़कर चली जाती हैं उस आँगन में कोई और नाचने लगती है और जीवन में तांडव शुरू हो जाता है। औरत घर की मालकिन और चौकीदार दोनों होती है। पहली गलती है इस् लिए समझा रही हूँ। दूसरी बार न मैं आउंगी और न समझाऊँगी। मुझसे कोई तकलीफ है तो अलग रह सकती हो पर याद रखना अपने घर को सम्हालना तुम्हारा ही काम है। कल को मैं न रही तो कौन आएगा तुम्हें ले जाने? ये झगडे तो जीवन के उतार चढ़ाव हैं और इनसे घबराने वाले अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच पाते। ये तलाक इसी का परिणाम होते हैं।"
"पर मेरी ...."
"जानती हूँ तुम्हारी गलती नहीं है। मगर तुमने घर छोड़कर उसे खुला छोड़ दिया। ये तुम्हारे प्यार की कमी है। औरत को कभी हारना नहीं चाहिए औरत घर का केन्द्र बिंदु होती है, जब भी केन्द्र कमजोर होता है घर बिखर जाता है। मैं इस् घर का भार तुम पर छोड़ के गई और तुम जिम्मेदारी से भाग लीं !"
"माफ कर दो माँ मुझे। मैं तो घर से दूर ही पढ़ी हूँ। मुझे सब सिखाया ही नहीं गया, मैं सिर्फ़ पढ़ी, पर घर के गुण मुझमें आ ही न सके। आकाश से प्रेम हुआ और शादी। मैं तो अब भी उसे बदल नहीं सकी।"

"हम्म्म्म ...जानती हूँ, लाड़ प्यार ने उसे जिद्दी बना दिया थोड़ा सा पर प्यार की गर्मी लोहे को भी मोड़ सकती है फिर आकाश तो सिर्फ़ तुम्हारा पति है।"
और माँ ने उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया। बहू का सिर अब माँ के कंधे पर था और कंधा गीला ।

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