रावण ने बनाई थी स्वर्ग तक की सीढ़ी, लेकिन क्यों वह असुरों को नहीं पहुंचा पाया वहां

रावण ने बनाई थी स्वर्ग तक की सीढ़ी, लेकिन क्यों वह असुरों को नहीं पहुंचा पाया वहां

रावण एक प्रकांड विद्वान्, उच्च कोटि का ज्योतिषशास्त्री था। वह भगवान शिव का परम भक्त था और कई बार शिवजी को प्रसन्न कर उसने सिद्धियां प्राप्त की थीं।

कहते हैं पहली बार जब उसके मन में अमर होने का खयाल आया था तो उसने भोलेनाथ को प्रसन्न कर अमरता प्राप्त करने के लिए हजार वर्षों तक तपस्या की।

उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए और वर मांगने को कहा। रावण ने वरदान में अमरता देने की प्रार्थना की।

भगवान शिव ने उसे तथास्तु कहा लेकिन इसके साथ ही यह शर्त रखी कि उसे अमरता तभी मिलेगी जब वह एक दिन में पांच पौड़ियों (स्वर्ग की सीढ़ियां) का निर्माण कराएगा। अगर वह ऐसा नहीं कर पाया तो भगवान शिव का यह वरदान भी निरस्त हो जाएगा।

रावण ने इसपर कोई आपत्ति नहीं जताई, उसे यह बहुत आसान लगा। इस तरह उसने अपनी अमरता पाने के लिए पौड़ियों का निर्माण करते हुए स्वर्ग तक की सीढ़ी बनानी शुरु की।

पहली पौड़ी उसने हरिद्वार में बनाई जो ‘हर की पौड़ी’ के नाम से जाना जाता है।

दूसरी पौड़ी उसने हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में नाहन से 9 किलोमीटर दूर बनाई जिसे आज पौड़ीवाला मंदिर के नाम से जानते हैं।

तीसरी चुड़ेशवर महादेव और

चौथी पौड़ी उसने किन्नर कैलाश में बनाई।

कहते हैं इन चार पौड़ियों का निर्माण होते-होते रात हो गई और रावण थकान दूर करने के मकसद से थोड़ी देर लेटा। लेकिन वह सो गया और जब उसकी नींद खुली तो सुबह हो चुकी थी।

इस तरह वह स्वर्ग तक की सीढ़ियों का निर्माण कार्य पूरा नहीं कर सका। यही कारण था कि वह ना तो अमरता प्राप्त कर सका और ना ही असुरों को पाप-पुण्य का लेखा-जोखा का सामना किए बिना ही स्वर्ग तक पहुंचा सका।

राम के हाथों बाण खाकर जीवन की अंतिम सांसे गिनते हुए रावण ने स्वयं यह बात बताई थी कि यह उस की गलती थी। बिना जरूरी काम पूरा किए बिना कभी भी आराम नहीं करना चाहिए और ऐसा करने वाला हमेशा ही गर्त में जाता है जो उसके साथ हुआ*

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