"सच्चे मित्र हो तो जीवन आसान है"
एक सुदंर से वन में चार मित्र रहते थे। चूहा, कौआ, हिरण और कछुआ। अलग-अलग प्रजाति के जीव होने के बाद भी उनमें बहुत घनिष्टता थी। चारों एक-दूसरे से इतना प्यार करते थे कि एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे। चारों साथ-साथ खेलते, साथ ही खाते, साथ ही घूमत। उसी वन में एक ख़ूबसूरत सा जल का सरोवर था, जिसमें वह कछुआ रहता था। सरोवर के तट के पास ही एक जामुन का बहुत बड़ा पेड़ था। उसी पेड़ पर घोंसले बनाकर कौवा रहता था। पेड़ के नीचे ज़मीन में बिल बनाकर चूहा रहता था और पास ही घनी झाड़ियों में हिरण का घर था। एक दिन शाम को घूमकर चूहा और कौवा तो लौट आए, लेकिन उनका मित्र हिरण नहीं लौटा। तीनों मित्र बैठकर उसका इंतज़ार करने लगे। बहुत देर तक जब हिरण नहीं लौटा, तो वो सब उदास हो गए। कछुआ बोला - “वह तो रोज़ तुम दोनों से भी पहले लौट आता था। आज क्या बात हो गई, जो अब तक नहीं आया। मेरा तो घबरा रहा है, कहीं वो किसी मुसीबत में तो नहीं है।” चूहे ने भी चिंतित स्वर में कहा - “बात बहुत गंभीर है। वह ज़रूर किसी मुसीबत में पड़ गया है। अब हम क्या करें?” कौवे ने कहा - “मित्रो, वह जहां चरने जाता है, मैं उधर उड़कर देखकर आता, लेकिन अंधेरा हो गया है, इसलिए नीचे कुछ नज़र नहीं आएगा। हमें सुबह तक प्रतीक्षा करनी होगी। सुबह होते ही मैं उसकी कुछ ख़बर ज़रूर लाऊंगा।” कछुए ने कहा- “रातभर नींद नहीं आएगी, तो मैं उस ओर अभी चल पड़ता हूं। मेरी चाल भी बहुत धीमी है। तुम दोनों सुबह आ जाना।” चूहा भी बोला - “मुझसे भी हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठा जाएगा। मैं भी कछुए भाई के साथ चला जाता हूं। कौए भाई, तुम सुबह होते ही आ जाना।”
यह कहकर कछुआ और चूहा चल दिए। कौवे को भी नींद नहीं आई और वो सुबह होने का इंतज़ार करने लगा। सुबह होते ही वो उड़ चला। वह उड़ते-उड़ते चारों ओर नज़र डालता जा रहा था कि आगे एक स्थान पर कछुआ और चूहा जाते उसे नज़र आए। कौवे ने कां कां करके उन्हें सूचना दी कि उसने उन्हें देख लिया है और वह खोज में आगे जा रहा है। अब कौवे ने हिरण को पुकारना भी शुरू किया, “मित्र हिरण, तुम कहां हो? आवाज़ दो दोस्त।” इतने में ही उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। स्वर उसके मित्र हिरण का लग रहा था। वह उस आवाज़ की दिशा में उड़कर सीधा उस जगह पहुंचा, जहां हिरण एक शिकारी के जाल में फंसा छटपटा रहा था।
हिरण ने रोते हुए बताया कि कैसे एक ज़ालिम शिकारी ने वहां जाल बिछा रखा था। दुर्भाग्यवश वह जाल नहीं देख पाया और फंस गया। हिरण ने रोते-रोते कहा - “वह शिकारी आता ही होगा। वह मुझे पकड़कर ले जाएगा। मित्र कौवे! तुम चूहे और कछुए को भी मेरा अंतिम नमस्कार कहना।”
कौआ बोला - “मित्र, तुम घबरा क्यों रहे हो। हम जान की बाज़ी लगाकर भी तुम्हें छुड़ा लेंगे।” हिरण ने हताशा से कहा - “लेकिन तुम ऐसा कैसे कर पाओगे? वह शिकारी बहुत ज़ालिम और शक्तिशाली है।”
कौवे ने अपने पंख फड़फड़ाए और अपनी योजना बताई, “सुनो - मैं चूहे को पीठ पर बिठाकर ले आता हू्ं। वह अपने पैने दांतों से जाल को आसानी से कुतर देगा।” हिरण को आशा की किरण दिखाई दी। उसकी आंखें ख़ुशी से चमक उठीं। कौआ तेज़ी से उड़ा और जल्दी से वहां पहुंचा, जहां कछुआ व चूहा आ पहुंचे थे। कौवे ने समय नष्ट किए बिना बताया - “मित्रो, हमारा दोस्त हिरण एक दुष्ट शिकारी के जाल में कैद है। जान की बाज़ी लगी है। अगर शिकारी के आने से पहले हमने उसे न छुड़ाया, तो वह मारा जाएगा।” कछुआ घबरा गया, उसने पूछा - “उसके लिए हमें क्या करना होगा? जल्दी बताओ?” चूहे के तेज़ दिमाग ने कौवे का इशारा समझ लिया था, इसलिए वो बिना समय गंवाए बोल उठा - “घबराओ मत, कौवे भाई, मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर हिरण के पास जल्द से जल्द ले चलो।” इतने में ही दोनों उड़ चले। चूहे को जाल कुतरकर हिरण को मुक्त करने में अधिक देर नहीं लगी।
मुक्त होते ही हिरण ने अपने मित्रों को गले लगा लिया और रुंधे गले से उन्हें धन्यवाद दिया। तभी कछुआ भी वहां आ पहुंचा और ख़ुशी में शामिल हो गया। हिरण बोला, “दोस्त, तुम भी आ गए। मैं भाग्यशाली हूं, जिसे ऐसे सच्चे मित्र मिले हैं।” चारों मित्र भाव विभोर होकर ख़ुशी से उछलने, कूदने व नाचने लगे। इतने में ही हिरण चौंका और उसने मित्रों को चेतावनी दी, “भाइयो, देखो वह ज़ालिम शिकारी आ रहा है, तुरंत छिप जाओ।” चूहा फौरन पास के एक बिल में घुस गया। कौआ उड़कर पेड़ की डाल पर जा बैठा। हिरण एक ही छलांग में पास की झाड़ी में जा घुसा, लेकिन कछुआ अपनी धीमी गति के कारण दो कदम भी न जा पाया था कि शिकारी आ धमका। उसने जाल को कटा देखकर अपना माथा पीटा कि आख़िर जाल में कौन-सा जानवर फंसा था और यह जाल किसने काटा? यह जानने के लिए वह पैरों के निशानों के सुराग ढूंढ़ने के लिए इधर-उधर देख ही रहा था कि उसकी नज़र रेंगते हुए कछुए पर पड़ी। उसकी आंखें चमक उठीं। वह सोचने लगा कि वाह! भागते चोर की लंगोटी ही सही। अब यही कछुआ मेरा शिकार बनेगा और मेरे परिवार का भोजन बनेगा। उसने कछुए को उठाकर अपने थैले में डाला और जाल समेटकर चल पड़ा। कौवे ने तुरंत हिरण व चूहे को बुलाकर कहा - “मित्रो, कछुए को शिकारी थैले में डालकर ले जा रहा है।” चूहा बोला - “हमें अपने मित्र की जान बचानी ही होगी और उसे उस शिकारी से छुड़ाना ही होगा, लेकिन कैसे?” इस बार हिरण ने समस्या का हल सुझाया - दोस्तो, हमें चाल चलनी होगी। मैं लंगड़ाता हुआ शिकारी के आगे से निकलुंगा। मुझे लंगड़ा समझकर वह मुझे पकड़ने के लिए कछुए वाला थैला छोड़कर मेरे पीछे जरूर भागेगा। लेकिन वो कितनी देर तक मेरा पीछा कर पाएगा। मैं उसे दूर ले जाकर चकमा दे दूंगा। इस बीच चूहा भाई थैले को कुतरकर कछुए को आज़ाद कर देगा।”
यह योजना सबको अच्छी लगी थी। योजना के अनुसार हिरण जानबूझकर शिकारी के रास्ते में आ गया और लंगड़ाकर चलते हिरण को देख शिकारी की बांछे खिल उठीं। वह थैला पटककर हिरण के पीछे दौड़ पड़ा। हिरण उसे लंगड़ाने का नाटक कर घने जंगल की ओर ले गया और फिर उसे चकमा देकर कहीं ओझल हो गया। इस बीच चूहे ने अपना काम कर दिया था और अपने दोस्त कछुए को झुड़ा लिया था। शिकारी ख़ुद से बहुत नाराज़ था कि आख़िर हिरण हाथ नहीं लगा। अब कछुए से ही काम चलाने का इरादा बनाकर जब वह लौटा, तो उसे थैला भी खाली मिला। उसमें छेद बना हुआ था। शिकारी मुंह लटकाकर खाली हाथ घर लौट गया।
सीख - सच्चे मित्र हों, तो जीवन में मुसीबतों का आसानी से सामना किया जा सकता है।
एक सुदंर से वन में चार मित्र रहते थे। चूहा, कौआ, हिरण और कछुआ। अलग-अलग प्रजाति के जीव होने के बाद भी उनमें बहुत घनिष्टता थी। चारों एक-दूसरे से इतना प्यार करते थे कि एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे। चारों साथ-साथ खेलते, साथ ही खाते, साथ ही घूमत। उसी वन में एक ख़ूबसूरत सा जल का सरोवर था, जिसमें वह कछुआ रहता था। सरोवर के तट के पास ही एक जामुन का बहुत बड़ा पेड़ था। उसी पेड़ पर घोंसले बनाकर कौवा रहता था। पेड़ के नीचे ज़मीन में बिल बनाकर चूहा रहता था और पास ही घनी झाड़ियों में हिरण का घर था। एक दिन शाम को घूमकर चूहा और कौवा तो लौट आए, लेकिन उनका मित्र हिरण नहीं लौटा। तीनों मित्र बैठकर उसका इंतज़ार करने लगे। बहुत देर तक जब हिरण नहीं लौटा, तो वो सब उदास हो गए। कछुआ बोला - “वह तो रोज़ तुम दोनों से भी पहले लौट आता था। आज क्या बात हो गई, जो अब तक नहीं आया। मेरा तो घबरा रहा है, कहीं वो किसी मुसीबत में तो नहीं है।” चूहे ने भी चिंतित स्वर में कहा - “बात बहुत गंभीर है। वह ज़रूर किसी मुसीबत में पड़ गया है। अब हम क्या करें?” कौवे ने कहा - “मित्रो, वह जहां चरने जाता है, मैं उधर उड़कर देखकर आता, लेकिन अंधेरा हो गया है, इसलिए नीचे कुछ नज़र नहीं आएगा। हमें सुबह तक प्रतीक्षा करनी होगी। सुबह होते ही मैं उसकी कुछ ख़बर ज़रूर लाऊंगा।” कछुए ने कहा- “रातभर नींद नहीं आएगी, तो मैं उस ओर अभी चल पड़ता हूं। मेरी चाल भी बहुत धीमी है। तुम दोनों सुबह आ जाना।” चूहा भी बोला - “मुझसे भी हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठा जाएगा। मैं भी कछुए भाई के साथ चला जाता हूं। कौए भाई, तुम सुबह होते ही आ जाना।”
यह कहकर कछुआ और चूहा चल दिए। कौवे को भी नींद नहीं आई और वो सुबह होने का इंतज़ार करने लगा। सुबह होते ही वो उड़ चला। वह उड़ते-उड़ते चारों ओर नज़र डालता जा रहा था कि आगे एक स्थान पर कछुआ और चूहा जाते उसे नज़र आए। कौवे ने कां कां करके उन्हें सूचना दी कि उसने उन्हें देख लिया है और वह खोज में आगे जा रहा है। अब कौवे ने हिरण को पुकारना भी शुरू किया, “मित्र हिरण, तुम कहां हो? आवाज़ दो दोस्त।” इतने में ही उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। स्वर उसके मित्र हिरण का लग रहा था। वह उस आवाज़ की दिशा में उड़कर सीधा उस जगह पहुंचा, जहां हिरण एक शिकारी के जाल में फंसा छटपटा रहा था।
हिरण ने रोते हुए बताया कि कैसे एक ज़ालिम शिकारी ने वहां जाल बिछा रखा था। दुर्भाग्यवश वह जाल नहीं देख पाया और फंस गया। हिरण ने रोते-रोते कहा - “वह शिकारी आता ही होगा। वह मुझे पकड़कर ले जाएगा। मित्र कौवे! तुम चूहे और कछुए को भी मेरा अंतिम नमस्कार कहना।”
कौआ बोला - “मित्र, तुम घबरा क्यों रहे हो। हम जान की बाज़ी लगाकर भी तुम्हें छुड़ा लेंगे।” हिरण ने हताशा से कहा - “लेकिन तुम ऐसा कैसे कर पाओगे? वह शिकारी बहुत ज़ालिम और शक्तिशाली है।”
कौवे ने अपने पंख फड़फड़ाए और अपनी योजना बताई, “सुनो - मैं चूहे को पीठ पर बिठाकर ले आता हू्ं। वह अपने पैने दांतों से जाल को आसानी से कुतर देगा।” हिरण को आशा की किरण दिखाई दी। उसकी आंखें ख़ुशी से चमक उठीं। कौआ तेज़ी से उड़ा और जल्दी से वहां पहुंचा, जहां कछुआ व चूहा आ पहुंचे थे। कौवे ने समय नष्ट किए बिना बताया - “मित्रो, हमारा दोस्त हिरण एक दुष्ट शिकारी के जाल में कैद है। जान की बाज़ी लगी है। अगर शिकारी के आने से पहले हमने उसे न छुड़ाया, तो वह मारा जाएगा।” कछुआ घबरा गया, उसने पूछा - “उसके लिए हमें क्या करना होगा? जल्दी बताओ?” चूहे के तेज़ दिमाग ने कौवे का इशारा समझ लिया था, इसलिए वो बिना समय गंवाए बोल उठा - “घबराओ मत, कौवे भाई, मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर हिरण के पास जल्द से जल्द ले चलो।” इतने में ही दोनों उड़ चले। चूहे को जाल कुतरकर हिरण को मुक्त करने में अधिक देर नहीं लगी।
मुक्त होते ही हिरण ने अपने मित्रों को गले लगा लिया और रुंधे गले से उन्हें धन्यवाद दिया। तभी कछुआ भी वहां आ पहुंचा और ख़ुशी में शामिल हो गया। हिरण बोला, “दोस्त, तुम भी आ गए। मैं भाग्यशाली हूं, जिसे ऐसे सच्चे मित्र मिले हैं।” चारों मित्र भाव विभोर होकर ख़ुशी से उछलने, कूदने व नाचने लगे। इतने में ही हिरण चौंका और उसने मित्रों को चेतावनी दी, “भाइयो, देखो वह ज़ालिम शिकारी आ रहा है, तुरंत छिप जाओ।” चूहा फौरन पास के एक बिल में घुस गया। कौआ उड़कर पेड़ की डाल पर जा बैठा। हिरण एक ही छलांग में पास की झाड़ी में जा घुसा, लेकिन कछुआ अपनी धीमी गति के कारण दो कदम भी न जा पाया था कि शिकारी आ धमका। उसने जाल को कटा देखकर अपना माथा पीटा कि आख़िर जाल में कौन-सा जानवर फंसा था और यह जाल किसने काटा? यह जानने के लिए वह पैरों के निशानों के सुराग ढूंढ़ने के लिए इधर-उधर देख ही रहा था कि उसकी नज़र रेंगते हुए कछुए पर पड़ी। उसकी आंखें चमक उठीं। वह सोचने लगा कि वाह! भागते चोर की लंगोटी ही सही। अब यही कछुआ मेरा शिकार बनेगा और मेरे परिवार का भोजन बनेगा। उसने कछुए को उठाकर अपने थैले में डाला और जाल समेटकर चल पड़ा। कौवे ने तुरंत हिरण व चूहे को बुलाकर कहा - “मित्रो, कछुए को शिकारी थैले में डालकर ले जा रहा है।” चूहा बोला - “हमें अपने मित्र की जान बचानी ही होगी और उसे उस शिकारी से छुड़ाना ही होगा, लेकिन कैसे?” इस बार हिरण ने समस्या का हल सुझाया - दोस्तो, हमें चाल चलनी होगी। मैं लंगड़ाता हुआ शिकारी के आगे से निकलुंगा। मुझे लंगड़ा समझकर वह मुझे पकड़ने के लिए कछुए वाला थैला छोड़कर मेरे पीछे जरूर भागेगा। लेकिन वो कितनी देर तक मेरा पीछा कर पाएगा। मैं उसे दूर ले जाकर चकमा दे दूंगा। इस बीच चूहा भाई थैले को कुतरकर कछुए को आज़ाद कर देगा।”
यह योजना सबको अच्छी लगी थी। योजना के अनुसार हिरण जानबूझकर शिकारी के रास्ते में आ गया और लंगड़ाकर चलते हिरण को देख शिकारी की बांछे खिल उठीं। वह थैला पटककर हिरण के पीछे दौड़ पड़ा। हिरण उसे लंगड़ाने का नाटक कर घने जंगल की ओर ले गया और फिर उसे चकमा देकर कहीं ओझल हो गया। इस बीच चूहे ने अपना काम कर दिया था और अपने दोस्त कछुए को झुड़ा लिया था। शिकारी ख़ुद से बहुत नाराज़ था कि आख़िर हिरण हाथ नहीं लगा। अब कछुए से ही काम चलाने का इरादा बनाकर जब वह लौटा, तो उसे थैला भी खाली मिला। उसमें छेद बना हुआ था। शिकारी मुंह लटकाकर खाली हाथ घर लौट गया।
सीख - सच्चे मित्र हों, तो जीवन में मुसीबतों का आसानी से सामना किया जा सकता है।
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