श्राद्ध कर्म, पितरों के प्रति कृतज्ञ भाव


श्राद्ध कर्म, पितरों के प्रति कृतज्ञ भाव
24 सितम्बर से

लखनऊ, सटीक ज्योतिष अनुसंधान केंद्र के संचालक पंडित श्रीधीरजी ने कहा कि प्रतिवर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन माह की अमावस्या तक श्राद्ध मनाए जाते हैं। माना जाता है कि अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का भाव रखने को ही श्राद्ध कहा जाता है। जिस हिन्दू तिथि के दिन पूर्वजों की मृत्यु होती है उसी तिथि के दिन ही उनका श्राद्ध किया जाता है।

👉 आश्विन मास कृष्ण पक्ष
15 दिनों तक पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए तर्पण से तृप्त होकर लौट जाते है। पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। पूर्वजों का तर्पण करने पर उनकी आत्मा का शांति मिलती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवता की पूजा करने से पहले व्यक्ति को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिये। पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं। जो व्यक्ति श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं करते है उन्हें पितृदोष लगता है। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृदोष से छुटकारा मिल जाता है। 24 सितंबर 2018 से पितृपक्ष शुरू हो रहा है जो 8 अक्टूबर तक रहेगा। आइए जानते हैं पितृपक्ष की पूरी तारीखें।

👉 देवकार्य से भी ज्यादा महत्त्व
देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्व होता है. वायु पुराण ,मत्स्य पुराण ,गरुण पुराण, विष्णु पुराण आदि पुराणों तथा अन्य शास्त्रों जैसे मनुस्मृति इत्यादि में भी श्राद्ध कर्म के महत्व के बारे में बताया गया है।

👉 नियम पालन
आचार्य श्रीधीरजी के अनुसार पूर्णिमा से लेकर अमावस्या के मध्य की अवधि अर्थात पूरे 16 दिनों तक पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कार्य किए जाते हैं। पूरे 16 दिन नियम पूर्वक कार्य करने से पितृ-ऋण से मुक्ति मिलती है। पितृ श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है. भोजन कराने के बाद यथाशक्ति दान-दक्षिणा दी जाती है। इससे स्वास्थ्य समृद्धि, आयु व सुख शांति रहती है। पितृ पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध को पार्णव श्राद्ध कहते हैं। इनको दोपहर बाद की मृत्यु तिथि में किया जाता है। यदि मृत्यु तिथि दोनों दिन अपराहन में व्याप्त न हो पहले दिन श्राद्ध किया जाता है । यदि दोनों दिन मृत्यु तिथि अपराहन के समय असमानता से हो अर्थात एक दिन अधिक और दूसरे दिन कम व्याप्त करे तो वहां अधिक वाले दिन श्राद्ध होता है।

👉 श्राद्ध की तिथियों का विवरण
श्राद्ध पक्ष- 24 सितंबर से 8 अक्टूबर 2018 तक

24 सितंबर 2018 सोमवार- पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर 2018 मंगलवार- प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर 2018 बुधवार- द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर 2018 गुरुवार- तृतीय श्राद्ध
28 सितंबर 2018 शुक्रवार- चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर 2018 शनिवार- पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर 2018 रविवार- षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2018 सोमवार -सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2018 मंगलवार -अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2018 बुधवार- नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2018 गुरुवार -दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2018 शुक्रवार- एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2018 शनिवार- द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2018 रविवार- त्रयोदशी श्राद्ध चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2018 सोमवार- सर्वपितृ अमावस्या

👉 संछिप्त, सरल एवं शुद्ध विधि विधान
आश्विन कृष्ण पक्ष में जिस दिन पूर्वजों की श्राद्ध तिथि आए उस दिन पितरों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध विधि-विधान से करना चाहिए। किंतु अगर आप किसी कारणवश शास्त्रोक्त विधानों से न कर पाएं तो यहां बताई श्राद्ध की सरल विधि को अपनाएं।
- सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपकर व गंगाजल से पवित्र करें।
- घर आंगन में रंगोली बनाएं।
- महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं।
- श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्यौता देकर बुलाएं।
- ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं।
- पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें। गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें।
- ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें।
- ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें एवं गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।

👉 पितृदोष एवं ज्योतिषीय उपाय
पितृदोष के साथ जन्मे जातक, वैचारिक अन्तर्द्वन्द वश विचार एवं कर्म हानि से ग्रस्त रहते हैं। मानसिक एवं भावनात्मक असंतुलन की स्तिथि बनी रहती है। किसी भी कर्म संपादन हेतु सहजता एवं एकाग्रचित मनोदशा का अभाव रहता है। दोष निवारण हेतु जानकार विद्वान द्वारा जन्म पत्रिका विश्लेषण प्राप्तकर शास्त्र सम्मत विधि पूर्वक श्राद्ध अभिकर्म सम्पादित जरुर कर सुख शांति की कामना करनी चाहिये

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