सबका सपना होता है की उनके घर आने वाली बहु संस्कारी और आदर्श हो और
लड़की के माँ बाप की भी यही चाहत होती है की उनकी लड़की ससुराल में जाकर सबका
दिल जीते और एक आदर्श बहु साबित हो।
1. एकदम फिल्मी अंदाज में सुबह-सुबह जिस बहू कि सुरीली प्रार्थना से सभी घरवालों की आँख न खुले, वह बहू भी कोई बहू है। उसको अादर्श बहू तो कहना तो दूर, सिंपल बहू कहने का भी कोई हक नहीं है।
2. कोई लड़की किसी दूसरे परिवार में ब्याही ही इसीलिए जाती है कि वो पूरी जिंदगी अपने ससुराल वालों को खाना पका-पकाकर खिलाती रहे और बदले में धन्यवाद ... अरे अपनों को भी भला कहीं थैंक्स बोला जाता है!
3. खाना पकाने के बाद बारी आती है धोबी बनने की । आदर्श बहू का एक खास गुण है पूरे घर के कपड़े (चादर और पर्दों से लेकर सबके अंत:वस्त्र और मोजों तक) को सर्फ एक्सल की चमक देना और फिर स्त्री करके उन चमकदार कपड़ों पर एक भी सिलवट का नामो-निशान तक मिटा देना । ख़राब कपड़े पहनकर बाहर निकले तो लोग तो यही कहेंगे न कि इनके घर में 'आदर्श बहू' नहीं है क्या!
4. अरे पति होता ही है साक्षात परमेश्वर का रूप, और परमेश्वर से भी कोई सवाल पूछता है क्या? अपने पति परमेश्वर से दुनियावी सवाल पूछकर इस जन्म के साथ-साथ अपने बाकी बचे सारे जन्म खराब थोड़े ही न करने हैं।
5. आपको पता है? आदर्श बहू की छवि दिखाती इस तस्वीर में भी एक कमी है। सिर पर घूँघट कौन रखेगा? क्या कलयुग आ गया है! सास-ससुर के सामने नंगे सिर घूमना आदर्श बहू के लक्षण नहीं होते।
6. जब ससुराल के सारे सदस्य (यहां तक मक्खी, मच्छर भी) पेट-पूजा कर चुके हों, तभी आदर्श बहू पहला निवाला अपने हलक से नीचे उतारती है। आखिर भगवान को भोग लगाकर ही तो भक्त खुद प्रसाद ग्रहण करता है। अब ससुराल वाले किसी भगवान से कम हैं क्या? आखिर पति परमेश्वर के परिवार वाले हैं, तो ईश्वर का ही रूप हुए न ।
7. शॉपिंग!!! घर की आदर्श बहू को पर्सनल शॉपिंग की क्या जरूरत? उसे दो जून की रोटी मिल रही है और पहनने के लिए दो जोड़ी कपड़े, बस इतना बहुत है। बाकी साज-संवार करके किसे दिखाना है? शादी तो हो गई न! और रहना तो घूंघट में ही है, फिर क्यों फालतू खर्चे करना।
10. आप क्या पति परमेश्वर की खजांची हैं, जो उनकी तनख्वाह का पूरा हिसाब-किताब आपके पास होना चाहिए? नहीं न! तो फिर अपने काम से काम रखिए, और यूं भी, औरतों का पति की तनख्वाह पर नजर रखना अच्छी बात नहीं होती। भला कोई भक्त अपने भगवान से उनकी आमदनी के बारे में पूछता है कभी?
11. आदर्श बहू के माता-पिता के लिए उनकी बेटी की शादी हो जाना किसी तोहफे से कम है क्या? उनके लिए तो यही जिंदगी भर का तोहफा है कि उनके कंधों का बोझ उतर गया (फिर भले ही इस तोहफे के लिए उन्हें अच्छी-खासी रकम क्यों न खर्च करनी पड़ी हो)। इस तोहफे के बाद किसी और तोहफे की इच्छा करना उनके लालच की निशानी है। हां, बेटी के ससुराल वालों को तोहफे भेजना तो उनका धर्म है।
1. एकदम फिल्मी अंदाज में सुबह-सुबह जिस बहू कि सुरीली प्रार्थना से सभी घरवालों की आँख न खुले, वह बहू भी कोई बहू है। उसको अादर्श बहू तो कहना तो दूर, सिंपल बहू कहने का भी कोई हक नहीं है।
2. कोई लड़की किसी दूसरे परिवार में ब्याही ही इसीलिए जाती है कि वो पूरी जिंदगी अपने ससुराल वालों को खाना पका-पकाकर खिलाती रहे और बदले में धन्यवाद ... अरे अपनों को भी भला कहीं थैंक्स बोला जाता है!
3. खाना पकाने के बाद बारी आती है धोबी बनने की । आदर्श बहू का एक खास गुण है पूरे घर के कपड़े (चादर और पर्दों से लेकर सबके अंत:वस्त्र और मोजों तक) को सर्फ एक्सल की चमक देना और फिर स्त्री करके उन चमकदार कपड़ों पर एक भी सिलवट का नामो-निशान तक मिटा देना । ख़राब कपड़े पहनकर बाहर निकले तो लोग तो यही कहेंगे न कि इनके घर में 'आदर्श बहू' नहीं है क्या!
4. अरे पति होता ही है साक्षात परमेश्वर का रूप, और परमेश्वर से भी कोई सवाल पूछता है क्या? अपने पति परमेश्वर से दुनियावी सवाल पूछकर इस जन्म के साथ-साथ अपने बाकी बचे सारे जन्म खराब थोड़े ही न करने हैं।
5. आपको पता है? आदर्श बहू की छवि दिखाती इस तस्वीर में भी एक कमी है। सिर पर घूँघट कौन रखेगा? क्या कलयुग आ गया है! सास-ससुर के सामने नंगे सिर घूमना आदर्श बहू के लक्षण नहीं होते।
6. जब ससुराल के सारे सदस्य (यहां तक मक्खी, मच्छर भी) पेट-पूजा कर चुके हों, तभी आदर्श बहू पहला निवाला अपने हलक से नीचे उतारती है। आखिर भगवान को भोग लगाकर ही तो भक्त खुद प्रसाद ग्रहण करता है। अब ससुराल वाले किसी भगवान से कम हैं क्या? आखिर पति परमेश्वर के परिवार वाले हैं, तो ईश्वर का ही रूप हुए न ।
7. शॉपिंग!!! घर की आदर्श बहू को पर्सनल शॉपिंग की क्या जरूरत? उसे दो जून की रोटी मिल रही है और पहनने के लिए दो जोड़ी कपड़े, बस इतना बहुत है। बाकी साज-संवार करके किसे दिखाना है? शादी तो हो गई न! और रहना तो घूंघट में ही है, फिर क्यों फालतू खर्चे करना।
8. लो, फिर वही गड़बड़ कर दी न! सिर से पल्लू सरका
दिया। और लग रहा है कि बहू ने नया हेयरकट भी लिया है। भई, ऐसे तो यह नहीं
बन पाएंगी आदर्श बहू। केवल सास-ससुर की सेवा करने से कुछ नहीं होगा, जब तक
सिर पर पल्लू रखकर सेवा नहीं करेगी, तब तक कोई बहू आदर्श बहू नहीं बन सकती।
9. दिन भर का थका-हारा पति जब घर आएगा तो उसके हाथ-पैर
दबाना भी तो आदर्श बहू का ही काम है। क्या कहा? बहू भी थकी हुई है! अरे
कमाल करते हैं आप! घर पर काम करके कोई थकता है क्या? कितनी बार बताना
पड़ेगा कि पति साक्षात परमात्मा का स्वरूप है, उसकी सेवा करना तो आदर्श बहू
का सबसे बड़ा धर्म होता है।10. आप क्या पति परमेश्वर की खजांची हैं, जो उनकी तनख्वाह का पूरा हिसाब-किताब आपके पास होना चाहिए? नहीं न! तो फिर अपने काम से काम रखिए, और यूं भी, औरतों का पति की तनख्वाह पर नजर रखना अच्छी बात नहीं होती। भला कोई भक्त अपने भगवान से उनकी आमदनी के बारे में पूछता है कभी?
11. आदर्श बहू के माता-पिता के लिए उनकी बेटी की शादी हो जाना किसी तोहफे से कम है क्या? उनके लिए तो यही जिंदगी भर का तोहफा है कि उनके कंधों का बोझ उतर गया (फिर भले ही इस तोहफे के लिए उन्हें अच्छी-खासी रकम क्यों न खर्च करनी पड़ी हो)। इस तोहफे के बाद किसी और तोहफे की इच्छा करना उनके लालच की निशानी है। हां, बेटी के ससुराल वालों को तोहफे भेजना तो उनका धर्म है।
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