“सुनें सबकी पर निर्णय स्वविवेक से करें।“


स्वविवेक

एक मकड़ी थी। उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से रहूंगी। उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और वहाँ जाला बुनना शुरू किया। कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर तैयार हो गया। यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हँस रही थी।

मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली- ”हँस क्यो रही हो?”

बिल्ली ने जवाब दिया- ”हँसूँ नही तो क्या करूँ? यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है, यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले में?”

ये बात मकड़ी के गले उतर गई। उसने अच्छी सलाह के लिये बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर दूसरी जगह तलाश करने लगी।

उसने इधर उधर देखा। उसे एक खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ देर तक वह जाला बुनती रही, तभी एक चिड़िया आयी और मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली- ” अरे मकड़ी! तू भी कितनी बेवकूफ है।”

मकड़ी ने पूछा-“क्यो?”

चिड़िया उसे समझाने लगी- ”अरे, यहां तो खिड़की से तेज हवा आती है। यहाँ तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी।”

मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ और वह वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब कहाँ जाला बनायाँ जाये। समय काफी बीत चुका था और अब उसे भूख भी लगने लगी थी।

अब उसे एक आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे अपना जाला बुनना शुरू किया। कुछ जाला बुना ही था तभी उसे एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख रहा था।

मकड़ी ने पूछा– “इस तरह क्यो देख रहे हो?”

काक्रोच बोला- ”अरे, यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये तो बेकार की आलमारी है। अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी। यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा।

बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी। भूख की वजह से वह परेशान थी। उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता। पर अब वह कुछ नहीं कर सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही।

जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया।

चींटी बोली-”मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी, तुम बार-बार अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती। और जो लोग ऐसा करते हैं, उनकी यही हालत होती है।”

और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही।

दोस्तों! हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है। हम कोई काम शुरू करते है। शुरू-शुरू मे तो हम उस काम के लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो की अनर्गल बातों की वजह से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के अलावा कुछ नही बचता।

“सुनें सबकी पर निर्णय स्वविवेक से करें।“

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