एक आदमी मर रहा था। उसने अपने तीन मित्रों को बुलाया और उनको कहा कि देखो, सुना है मैंने कि मरने के बाद कोई आदमी कुछ ले जा नहीं सकता, लेकिन मैं इस नियम को तोड़ना चाहता हूं। मैं लेकर जाऊंगा। तुम तीनों मेरे जिगरी दोस्त; तुम मुझ पर इत्ती कृपा करना। मेरे पास साठ लाख रुपए हैं। बीस-बीस लाख तुम तीनों को बांट देता हूं..तुम पर मुझे भरोसा है; जीवन भर का हमारा साथ है।
पहला मित्र बंगाली था, उसने कहा कि ठीक। क्या करना है इन बीस लाख का? उसने कहा: करना कुछ नहीं। जब मुझे दफनाया जाए, मेरी लाश जब कब्र में रखी जाए, तो तुम बीस लाख रुपए चुपचाप कब्र में सरका देना। किसी को पता न चले बस, इतना ही होशियारी करना, किसी को पता न चले, नहीं तो लोग उखाड़ कर ले जाएंगे। मैं साथ ही ले जाना चाहता हूं।
बंगाली बाबू ने कहा कि ठीक।
दूसरे सज्जन पंजाबी थे। उन्होंने कहा कि कोई फिकर नहीं; बिल्कुल फिकर मत करो, किसी को कानों-कान पता नहीं चलने दूंगा। गड़ा दूंगा बीस लाख रुपये।
तीसरे सज्जन मारवाड़ी थे। उन्होंने कहा: तुम फिकर करना ही मत! मैं अकेला ही कर सकता था यह साठ लाख गड़ाने का काम, लेकिन तुम तीन में बांटते हो, कोई बात नहीं; तो भी कर दूंगा।
मित्र मर गया। सब काम भी समाप्त हो गया। अंतिम संस्कार हो गया। तीनों मिले। पंजाबी ने कहा कि भाई क्या हुआ, रुपयों का क्या हुआ? मैंने तो बिल्कुल गड़ा दिए। बंगाली ने कहा कि क्या तुम सोचते हो तुमने ही गड़ाए? अरे, गड़ाए मैंने भी! आखिर जीवन भर का साथ था!!!
मगर दोनों को शक था मारवाड़ी पर। दोनों ने पूछा: अपनी तो कहो, तुमने क्या किया?
उसने कहा: तुम क्या समझते हो मुझे? तुमने जो गड़ाए थे चालीस लाख, वे मैंने निकाल लिए। साठ लाख का चैक रख दिया। अरे, कहां ढोता फिरेगा साठ लाख, इतना वजन! सीधा चैक ..पर्सनल चैक, कि ले जा बेटा!
मरते दम तक आदमी इस कोशिश में रहता है कि ले जाऊं। कहां ले जाओगे? कैसे ले जाओगे? और जो ले जाने योग्य है, वह हम कमाते नहीं; वह तो हम गंवाते हो। ।
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