आखिर सरकार को रोहिंज्ञाओं, बंगलादेशियों और घुसपैठियों से इतनी सहानभूति क्यों है ? इतिहास गवाह है कि ये ना कभी अपने हुए और ना ही कभी किसीके होंगे।

यह जो बच्चा गोदी में है न... 20 साल प्रश्न उठाएगा कि "क्या हिंदुस्तान सिर्फ तुम्हारे बाप का है ?"... सीने पर हाथ मार कर कहेगा कि " इस मुल्क को आज़ाद कराने में हमारे बाप-दादाओं ने भी लहू बहाया था ".! ... हमारी संतति... हमेशा की तरह खामोशी से इस बच्चे के सामने मूक आत्मसमर्पण कर देगी..." बात तो सही कह रहे  हो, सरफराज भाई "....
              दिल्ली में शरणार्थी.... हाथ मे बैनर लेकर बलपूर्वक सरकार को स्थायी नागरिकता देने के लिए धमका रहे हैं !... चौथाई दिल्ली पर बंगलादेशियों, रोहिंज्ञाओं, अफगानियों, नाइजीरियाईयों, नेपालियों, यहां तक पाकिस्तानियों का डेरा बस चुका हो.... सुप्रीमकोर्ट तक रोहिंज्ञाओं के लिए रोटी, कपड़ा, मकान, दुकान, खेल के मैदान, शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन के लिए आदेश पास करता हो ! दिल्ली तो छोड़िए,जनाब...वह जगह बता दीजिए जहां... रोहिंगये और बांग्लादेशी मौज न कर रहे हों.... सरकारी नौकरियां मिल रही है जनाब !
          7 साल का वक्त कम नहीं होता... मग़र देश को धरना, प्रदर्शन, शरणार्थी-होली लैंड और साफ्ट स्टेट बना कर छोड़ दिया जाता है ! यह विकास, यह सड़कें, यह मेट्रो, यह अंडर-पास, यह खूबसूरत रेलवे स्टेशन और रेलों का उपभोग कौन करेगा ? यह जे-hadi.... शरणार्थी ही न... ?
            अंतिम प्रश्न ... अगर रोहिंज्ञाओं, बंगलादेशियों और घुसपैठियों से सरकारों की इतनी ही सहानभूति है तो इन्हें मीलॉटों और माननीयों के बड़े बड़े सरकारी बंगलों में बसाइये न...
           कुल मिलाकर...बर्बादी निश्चित है..!

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