ऐसे हिन्दू योद्धाओं का जिक्र हमे हमारे इतिहास में तत्कालीन नेहरू-गांधी सरकार के शासन काल मे कभी नही पढ़ाया गया। पढ़ाया ये गया कि अकबर महान सम्राट था। फिर हुमायु, बाबर, औरंगजेब, ताजमहल, कुतुबमीनार, चारमीनार, आदि के बारे में ही पढ़ाया गया। अगर हिन्दू संगठित नही रहते तो आज ये देश भी पूरी तरह सीरिया और अन्य देशों की तरह पूर्णतया मुस्लिम देश बन चुका होता। इतिहास जानने के लिए पूरा तथ्य जरूर पढ़ें।

622 ई से लेकर 634 ई तक  मात्र 12 साल में अरब के सभी मूर्तिपूजकों को इस्लाम की तलवार से पानी पिलाकर मुसलमान बना दिया ।।

634 ईस्वी से लेकर 651 तक, यानी मात्र 17 साल में सभी पारसियों को तलवार की नोक पर इस्लाम की दीक्षा दी गयी ।। 640 में मिस्र में पहली बार इस्लाम ने पांव रखे, और देखते ही देखते मात्र 15 सालों में 655 तक इजिप्ट के लगभग सभी लोग मुसलमान बना दिये गए ।।

नार्थ अफ्रीकन देश जैसे - अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को, आदि देशों को 640 से 711 ई तक पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म में बदल दिया गया, 3 देशों का सम्पूर्ण सुख चैन लेने में मुसलमानों ने मात्र 71 साल लगाए।

711 ईस्वी में स्पेन पर आक्रमण हुआ, 730 ईस्वी तक स्पेन की 70% आबादी मुसलमान थी मात्र 19 सालों में ...।

तुर्क थोड़े से वीर निकले, तुर्कों के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में शुरू हुआ और 751 ईस्वी तक सारे तुर्क मुसलमान बना दिये गए ।।
इंडोनेशिया के विरुद्ध जिहाद मात्र 40 साल में पूरा हुआ। 1260 में मुसलमानों ने इंडोनेशिया में मार काट मचाई और 1300 ईस्वी तक सारे इंडोनेशियाई मुसलमान बन चुके थे।

फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन, आदि देशों को 634 से 650 के बीच मुसलमान बना दिया गया ।।

उसके बाद 700 ईस्वी में भारत के विरुद्ध जिहाद शुरू हुआ... वह अब तक चल रहा है ...

इस्लामिक आक्रमणकारियों की क्रूरता का अंदाजा इस बात से लगाएं कि मुसलमानों का ईरान पर आक्रमण हुआ, मुस्लिम सेना ईरानी राजा के महल तक पहुंच गईं। महल में लगभग 3 साल की पारसी राजकुमारी थी। ईरान पर आक्रमण अली ने किया था जिसे शिया मुसलमान मानते हैं।

पारसी राजकुमारी को बंदी बना लिया गया, वह कन्या थी, तो लूट के माल पर पहला हक़ खलीफा मुगीरा इब्न सूबा का था।

खलीफा को वह मासूम बच्ची भोग के लिए भेंट की गई लेकिन खलीफा ईरान में अली की लूट से इतना खुश हुआ कि अली को कह दिया, इसका भोग तुम करो।

क्रूर  संस्कृति का एक गलीच नमूना देखिये कि तीन साल की बच्ची में भी उन्हें औरत दिख रही थी । वह उनके लिए बेटी नहीं, भोग की वस्तु थी। बेटी के प्रेम में पिता को भी बंदी बनना पड़ा, धर्म परिवर्तन या फिर मौत में से एक चुनने का विकल्प पारसी राजा को दिया गया। पारसी राजा ने मृत्यु चुनी। उस तीन साल की मासूम राजकुमारी को भी पत्नी बना लिया गया। Al Sahba' bint Rabi'ah मात्र 3 साल की थी और उसे पत्नी बनाने वाला 30 साल का था।

मात्र ईरान का उदाहरण दिया है। इजिप्ट हो या अफ्रीकन देश, सब जगह यही हाल हुआ। जिस समय सीरिया आदि को जीता गया था, उसकी कहानी तो और दर्दनाक है। ईसाई सैनिकों के आगे औरतों को कर दिया गया। मुस्लिम औरतें गयीं ईसाइयों के पास कि "हमारी रक्षा करो"। बेचारे मूर्ख ईसाइयों ने उन धूर्तों की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी, फिर क्या था सारी सूपर्णखाओं ने मिलकर रातों रात उन सभी सैनिकों को हलाल करवा दिया।

अब आप भारत की स्थिति देखिये...

जिस समय आक्रमणकारी ईरान तक पहुंचकर अपना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर चुके थे, उस समय उनकी हिम्मत नहीं थी कि भारत के राजपूत साम्राज्य की ओर आंख उठाकर भी देख सके।
636 ईस्वी में खलीफा ने भारत पर पहला हमला बोला। एक भी आक्रांता जिंदा वापस नहीं जा पाया।

कुछ वर्ष तक तो उन विदेशी (मुस्लिम) अक्रान्ताओं की हिम्मत तक नहीं हुई कि भारत की ओर मुंह करके सोया भी जाए, लेकिन कुछ ही वर्षों में गिद्धों ने अपनी जात दिखा ही दी। दुबारा आक्रमण हुआ, इस समय खलीफा की गद्दी पर उस्मान आ चुका था। उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल इस्लामी टिड्डी दल भारत भेजा। उस सेना का भी पूर्णतः सफाया हो गया और सेनापति हाकिम बंदी बना लिया गया । हाकिम को भारतीय राजपूतों ने बहुत मारा, और बड़े बुरे हाल करके वापस अरब भेजा, जिससे उनकी सेना की दुर्गति का हाल, उस्मान तक पहुंच जाए।
यह सिलसिला लगभग 700 ईस्वी तक चलता रहा। जितने भी विदेशी मुसलमानों ने भारत की तरफ मुँह किया, राजपूतों ने उनका सिर कंधे से नीचे उतार दिया।

उसके बाद भी भारत के वीर जवानों ने हार नहीं मानी। जब 7वीं सदी इस्लाम की शुरू हुई, जिस समय अरब से लेकर अफ्रीका, ईरान, यूरोप, सीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्की यह बड़े-बड़े देश जब मुसलमान बन गए, भारत में "बप्पा रावल" महाराणा प्रताप के पितामह का जन्म हो चुका था। वे पूर्णतः योद्धा बन चुके थे। इस्लाम के पंजे में जकड़ गए अफगानिस्तान तक से मुसलमानों को उस वीर ने मार भगाया। केवल यही नहीं, वह लड़ते-लड़ते खलीफा की गद्दी तक जा पहुंचे, जहां खुद खलीफा को अपनी जान की भीख मांगनी पड़ी।

उसके बाद भी यह सिलसिला रुका नहीं । नागभट्ट प्रतिहार द्वितीय जैसे योद्धा भारत को मिले। जिन्होंने अपने पूरे जीवन राजपूती धर्म का पालन करते हुए पूरे भारत की न केवल रक्षा की, बल्कि हमारी शक्ति का डंका पूरे विश्व में बजाए रखा।

पहले बप्पा रावल ने साबित किया था कि अरब अपराजेय नहीं हैं, लेकिन 836 ई के समय भारत में वह हुआ कि जिससे मुसलमान थर्रा गए । मुसलमानों ने अपने इतिहास में उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन कहा है, वह सरदार भी राजपूत ही थे । सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ।

मिहिरभोज के बारे में कहा जाता है कि उनका प्रताप ऋषि अगस्त्य से भी ज़्यादा चमका । ऋषि अगस्त्य वहीं हैं, जिन्होंने श्रीराम को वह अस्त्र दिया था, जिससे रावण का वध सम्भव था। राम के विजय अभियान के हिडन योद्धाओं में एक । उन्होंने मुसलमानों को केवल 5 गुफाओं तक सीमित कर दिया। यह वही समय था, जिस समय मुसलमान किसी युद्ध में केवल जीत हासिल करते थे, और वहां की प्रजा को मुसलमान बना देते, भारत के वीर राजपूत मिहिरभोज ने इन अक्रान्ताओं को अरब तक थर्रा दिया ।।

प्रथ्वीराज चौहान तक इस्लाम के उत्कर्ष के 400 सालों बाद तक भारत के राजपूतों ने इस्लाम नाम की बीमारी भारत को नहीं लगने दी, उस युद्ध काल में भी भारत की अर्थव्यवस्था को गिरने नही दिया। उसके बाद मुसलमान विजयी भी हुए, लेकिन राजपूतों ने सत्ता गंवाकर भी हार नहीं मानी। एक दिन वह चैन से नहीं बैठे, अंतिम वीर दुर्गादास जी राठौड़ ने दिल्ली को झुकाकर, जोधपुर का किला मुगलों के हलक से निकाल कर हिन्दू धर्म की गरिमा, वीरता और शौर्य को चार चांद लगा दिए ।।

किसी भी देश को मुसलमान बनाने में मुसलमानो में 20 साल नहीं लिए, और भारत में 500 साल राज करने के बाद भी मेवाड़ के शेर महाराणा राजसिंह  ने अपने घोड़े पर भी इस्लाम की मुहर नहीं लगवाई ।।

महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़, मिहिरभोज, दुर्गावती चौहान, परमार, लगभग सारे राजपूत अपनी मातृभूमि के लिए जान पर खेल गए। एक समय ऐसा आ गया था कि लड़ते-लड़ते राजपूत केवल 2% पर आकर ठहर गए ।।

एक बार पूरी दुनिया देखें और आज अपना वर्तमान देखें। जिन मुसलमानों ने 20 साल में आधी विश्व की आबादी को मुसलमान बना दिया, वह भारत में केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश तक सिमट कर ही क्यों रह गए ? 

मान लिया कि उस समय लड़ना राजपूत राजाओं का धर्म था, लेकिन जब राजाओं ने अपना धर्म निभा दिया, तो आज उनकी बेटियों, पोतियों पर काल्पनिक कहानियां गढ़कर उन योद्धाओं के वंशजों का हिंदुओं द्वारा ही अपमान, कुछ हिन्दुओं द्वारा ही उनका इतिहास कलंकित करना, क्या यही बलिदानियों को भेंट करता है हिन्दू समाज ?

राजा भोज, विक्रमादित्य, नागभट्ट प्रथम और नागभट्ट द्वितीय, चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार, समुद्रगुप्त, स्कंद गुप्त, छत्रसाल बुंदेला, आल्हा उदल, राजा भाटी, भूपत भाटी, चाचादेव भाटी, सिद्ध श्री देवराज भाटी, कानड़ देव चौहान वीरमदेव चौहान, हठी हम्मीर देव चौहान, विग्रहराज चौहान, मालदेव सिंह राठौड़, विजय राव लांझा भाटी, भोजदेव भाटी, चूहड़ विजयराव भाटी, बलराज भाटी, घड़सी, रतनसिंह, राणा हमीर सिंह और अमर सिंह, अमर सिंह राठौड़ दुर्गादास राठौड़ जसवंत सिंह राठौड़ मिर्जा राजा जयसिंह राजा जयचंद, भीमदेव सोलंकी, सिद्ध श्री राजा जय सिंह सोलंकी, पुलकेशिन द्वितीय सोलंकी, रानी दुर्गावती, रानी कर्णावती, राजकुमारी रत्नाबाई, रानी रुद्रा देवी, हाड़ी रानी, रानी पद्मावती, जैसी अनेको रानियों ने लड़ते-लड़ते अपने राज्य की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए। अन्य योद्धा तोगा जी वीरवर कल्लाजी जयमल जी जेता कुपा, गोरा बादल राणा रतन सिंह, पजबन  राय जी कच्छावा, मोहन सिंह मंढाड़, राजा पोरस, हर्षवर्धन बेस, सुहेलदेव बेस, राव शेखाजी, राव चंद्रसेन जी दोड़, राव चंद्र सिंह जी राठौड़, कृष्ण कुमार सोलंकी, ललितादित्य मुक्तापीड़, जनरल जोरावर सिंह कालुवारिया, धीर सिंह पुंडीर, बल्लू जी चंपावत, भीष्म रावत चुण्डा जी, रामसाह सिंहतोमर और उनका वंश, झाला राजा मान, महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर, स्वतंत्रता सेनानी राव बख्तावर सिंह अमझेरा वजीर सिंह पठानिया, राव राजा राम बक्स सिंह, व्हाट ठाकुर कुशाल सिंह, ठाकुर रोशन सिंह, ठाकुर महावीर सिंह, राव बेनी माधव सिंह, डूंगजी, भुरजी, बलजी, जवाहर जी, छत्रपति शिवाजी और हमारे न जाने अनगिनत लोक देवता, और गुजरात में एक से बढ़कर एक योद्धा लोक देवताओं, संत, सती जुझार, भांजी जडेजा, अजय पाल देव जी।

   यह तो सिर्फ कुछ ही नाम है जिन्हें हमने गलती से किसी इतिहास की अत्यंत पुरानी  पुस्तकों से हासिल किया वरना ये आपको सोशल मीडिया या फिर किसी स्कूल पाठ्यक्रम में नहीं मिलेगा। एक से बढ़कर एक योद्धा पैदा हुए हैं जिन्होंने 18 साल की उम्र से पहले ही अपना योगदान दे दिया और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। घर के घर गांव के गांव ढाणी की ढाणी खाली हो गई जब कोई भी पुरुष नहीं बचा किसी गांव या ढाणी में पूरा का पूरा परिवार पूरे-पूरे गांव कुर्बान हो गये रणभेरी पर चल गया धर्म के लिए। ऐसे हिन्दू  योद्धाओं का जिक्र हमे हमारे इतिहास में तत्कालीन नेहरू-गांधी सरकार के शासन काल मे कभी नही पढ़ाया गया। पढ़ाया ये गया कि अकबर महान सम्राट था। फिर हुमायु, बाबर, औरंगजेब, ताजमहल, कुतुबमीनार, चारमीनार, आदि के बारे में ही पढ़ाया गया। अगर हिन्दू संगठित नही रहते तो आज ये देश भी पूरी तरह सीरिया और अन्य देशों की तरह पूर्णतया मुस्लिम देश बन चुका होता।

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