रत्न ईश्वर का दिया एक ऐसा वरदान है जिसके माध्यम से हम अपने जीवन की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं एवं अकाल मृत्यु को जीवन में बदल सकते हैं , परंतु यदि गलत रत्न धारण कर लिए तो संपूर्ण जीवन बर्बाद हो सकता है एवं जीवन भी मृत्यु में बदल सकता है । इसलिए इस तथ्य को पूरा अवश्य पढ़ें।

रत्न ईश्वर का दिया एक ऐसा वरदान है जिसके माध्यम से हम अपने जीवन की  समस्याओं का समाधान कर सकते हैं एवं अकाल मृत्यु को जीवन में बदल सकते हैं , परंतु यदि गलत  रत्न धारण कर लिए तो संपूर्ण जीवन बर्बाद हो सकता है एवं जीवन भी मृत्यु में बदल सकता है । आजकल टीवी पर या Facebook पर एक फैशन चल गया है की कुंडली में त्रिकोण सदा शुभ रहते हैं एवं इनका रत्न धारण लो , जबकि यह गलत परामर्श है , क्योंकि त्रिकोण जीवन में उन्नति लाते हैं पर लग्न को छोड़कर नवमेश एवं पंचमेश अकारक भी हो सकते हैं । कोई जरूरी नहीं है कि आपके जीवन में जो परेशानी है वह त्रिकोण के कमजोर होने के कारण ही है । कई बार ऐसा देखा गया है त्रिकोण मजबूत है परंतु दूसरे किसी  भाव के स्वामी ग्रह के कमजोर होने के कारण जीवन में परेशानी आ रही है , इसलिए जन्म पत्रिका का सही तरीके से विश्लेषण कराने के बाद रत्न धारण करना चाहिए । कई लोग राशि के हिसाब से रत्न पहनाते हैं , यह भी गलत है । कोई आवश्यक नहीं है कि आपकी राशि का स्वामी कारक ग्रह ही हो । कई बार चंद्रमा लग्न कुंडली के हिसाब से छठे , आठवें या बारहवें घर में भी बैठ जाता है और उस हिसाब से उस राशि का स्वामी अकारक हो जाएगा । रत्न कभी भी लग्न कुंडली के हिसाब से ही धारण करना चाहिए । जब ऐसी स्थिति बन रही हो कि रत्न के सिवा कोई रास्ता नहीं है तभी रत्न धारण करना चाहिए , क्योंकि कई बार जीवन में आने वाली समस्या को ठीक करने के लिए ग्रहों के प्रभाव ( तत्व ) को कमजोर भी करना पड़ता है । जब कुंडली का विश्लेषण होगा तभी पता चलेगा कि आपके जीवन में जो समस्या आ रही है उसको ठीक करने के लिए किसी ग्रह को प्रबल करना है या दान एवं उपाय  करना है । एक उदाहरण आपको समझा रहा हूं । तुला लग्न की कुंडली में शनि सबसे ज्यादा कारक ग्रह होता है । एक जातक के तुला लग्न की कुंडली में द्वितीय भाव में शनि और मंगल एक साथ बैठे हुए हैं । कुंडली में मंगल स्व राशि में बैठा हुआ है इस हिसाब से इनका विवाह भी समय से हो जाना चाहिए परंतु मंगल के साथ शनि के विराजमान होने के कारण इनके विवाह में बहुत ज्यादा विलंब हो गई । शनि जमीन , जायदाद , प्रॉपर्टी और माता का सुख तो देगा परंतु एकादश भाव मैं सूर्य के राशि  पर दृष्टि डालकर इनकी आमदनी को कम कर दिया है और द्वितीय भाव में मंगल के साथ विस्फोटक योग बनाने के कारण इनको न कुटुम्ब का सुख मिलता है ना ही इनके पास धन इकट्ठा होता है । (  मंगल शनि एक साथ विराजमान होते हैं तो मंगल का बल बढ़ता है यह सही है परंतु जिस भाव में दोनों एक साथ बैठ जाते हैं उस भाव से संबंधित समस्या  जरूर होती है  ) ।  इनको किसी ने यह कहा कि तुला लग्न की कुंडली में शनि सबसे कारक ग्रह होता है और नीलम पहना दिया पहनने के बाद  इनकम में समस्या होने लगी  रिश्तेदारों से मतभेद होने लगा ।   इसलिए कई बार देखा गया है कि कुंडली में सबसे कारक ग्रह भी कभी-कभी जीवन में बहुत सारी समस्याएं पैदा कर देता है , इसलिए जन्म कुंडली का सही तरीके से विश्लेषण करा कर ही रत्न धारण करना चाहिए ।
👉 रत्न कारक आकारक इत्यादि देखकर नहीं धारण करना चाहिए ।  रत्न धारण करने के लिए सबसे पहले जन्म कुंडली का फलादेश करना चाहिए फिर यह देखना चाहिए कि कौन सा ग्रह हमें लाभ दे रहा है और  बिल्कुल कमजोर है फिर उसका रत्न धारण करना चाहिए ।  चाहे त्रिकोण हो चाहे दूसरे किसी भी भाव का स्वामी हो यदि फलादेश के हिसाब से हमें लाभ दे रहा है और कमजोर है तब उसका रत्न धारण करने में कोई परेशानी नहीं है । मुख्य फलादेश है। मात्र शौक से किए त्रिकोण है इसका रत्न धारण कर ले यह ठीक नहीं  है ।  जिस प्रकार शरीर में किस विटामिन की कमी होती है उससे संबंधित ही भोजन या दवा का सेवन किया जाता है उसी प्रकार हमारे कुंडली में जिस ग्रह की हमें आवश्यकता है और वह बिल्कुल कमजोर है उसका ही रत्न धारण करना चाहिए ।
👉 यदि कोई भी हमें लाभ देने वाला ग्रह छठे आठवें बारहवें भाव में चला जाए तो इसका मतलब यह नहीं होता है कि वह अकारक हो गया । छठे आठवें बारहवें भाव में जाने का मतलब मात्र इतना होता है कि वह अपना पूर्ण फल नहीं दे पाते हैं परंतु फल तो देते हैं ऐसी स्थिति में उनका रत्न धारण करने से कोई भी परेशानी नहीं होती है ।  मेरी कुंडली में मेरे दशम भाव का स्वामी द्वादश भाव में विराजमान है और मैं चार-पांच वर्षों से उसका रत्न धारण किया हूं रत्न धारण करने के बाद मुझे रोजगार में उन्नति हुई ।
👉 यदि कोई लाभ देने वाला ग्रह नीच राशि में विराजमान हो जाए तब भी उसका रत्न धारण करने से कोई परेशानी नहीं होती है क्योंकि नीच राशि में विराजमान होने का मतलब यह होता है कि वह बिल्कुल कमजोर है वह अपना फल नहीं दे पा रहा है  ( भारत के  ज्योतिष के अध्यक्ष रहे एवं  राष्ट्रपति श्री  शंकर दयाल शर्मा जी से पुरस्कार प्राप्त डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी  जो कि हमारे गुरुदेव जी हैं उन्होंने भी अपनी पुस्तक में नीच राशि से संबंधित रत्न धारण करने के लिए बार-बार बताया है । )
मेरे पुत्र की तुला लग्न की कुंडली है उसमें चंद्रमा नीच राशि में विराजमान है जिसके कारण चंद्रमा की अंतर्दशा आने पर उसे मानसिक परेशानी होने लगी और मुझसे कुछ मतभेद भी करने लगा तब मैंने उसे मोती धारण करवाया धारण करने के 6 महीने के बाद उन समस्याओं में बहुत लाभ हुआ । मैंने बहुत सारे लोगों को नीच राशि का रत्न धारण करवाया सभी को लाभ हुआ ।  किसी को से कोई परेशानी नहीं हुई । मेरे एक वरिष्ठ गुरु भाई जिनके माध्यम से मैं ज्योतिष के क्षेत्र में आगे बढ़ा लगभग 25 वर्ष से वह ज्योतिष का कार्य कर रहे हैं और मुझसे पहले भी उन्होंने कितने नीच राशि में विराजमान ग्रहों का रत्न  लोगों को धारण करवाया या छठे आठवें बारहवें घर में विराजमान ग्रहों का रत्न धारण करवाया किसी को कोई परेशानी नहीं हुई  ( मुख्य बात है जन्मकुंडली का विश्लेषण करना )

👉 नीच राशि में ग्रहों का रत्न धारण करना और छठे आठवें बारहवें भाव में गए ग्रहों का रत्न धारण करने का मतलब मेरा यह कहना नहीं है कि ऐसे सभी ग्रहों का रत्न धारण किया जाए सबसे पहले फलादेश किया जाए फिर देखा जाए कि हमें उसकी आवश्यकता है या  नहीं तभी धारण किया जाए ।  स्वयं ज्योतिषी बनने का प्रयत्न ना करें ।

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