गीली मिट्टी : इस कहानी से आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

🤝 गीली मिट्टी 📝
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         वसुंधरा जी एक बड़े से बंगले में अपने पति बेटे ,बहु  और बेटी के साथ रहती थी। उनके बंगले के पीछे कुछ कमरे बने हुए थे जिनका उपयोग नहीं होता था। वसुंधरा जी एक दिन लॉन में बैठी होती हैं, उसी समय एक नया विवाहित जोड़ा आकर उन्हें नमस्ते करता है और किराए के मकान के लिए पूछता है। वसुंधरा जी कहती है कि हम मकान किराए पर नहीं देते हैं। दोनों बहुत ही उदास और निराश होकर वापस जाने लगते हैं। उन्हें देखकर पता नहीं वसुंधरा जी के मन में क्या भावना उत्पन्न होती है कि वह उन्हें रोकती है और कहती है कि पीछे कुछ कमरे तो है, चलो देख लो अगर तुम्हें ठीक लगे तो। उन्हें कमरे दिखाने ले जाती हैं ।    
        नवविवाहित जोड़े में पति का नाम दीपक और पत्नी का नाम कनक  है । दोनों बहुत जगह किराये के मकान के  लिए घूम चुके रहते हैं, लेकिन कहीं भी उन्हें मकान नहीं मिल पाता  है । वसुंधरा जी उन्हें कमरे दिखाती हैं। यह उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं होता  है। उन्हें तो सिर छुपाने के लिए जगह की जरूरत होती है । दोनों को कमरे अच्छे लगते हैं । दूसरे दिन सामान लेकर आने की बात कह कर  दोनों खुशी खुशी चले जाते हैं  ।रात को खाने के समय वसुंधरा जी अपने पति सुधीर को कमरे किराए देने के बाद बताती हैं। उनके पति उनसे कहते हैं यह तुम्हें कौन सा नया शौक लग गया है ।तो वसुंधरा जी उसने उस जोड़े के बारे में और उनकी परेशानी के बारे में बताती हैं ।सुधीर जी को कोई आपत्ति नहीं होती है।       
      दूसरे दिन दोनों अपना सामान लेकर आ जाते हैं। धीरे धीरे सामान जमाने लगते हैं ।वसुंधरा जी उनके लिए चाय और नाश्ता भेज देते हैं। और खाने के लिए भी निमंत्रित करती हैं ।जब दोनों खाना खाने आते हैं तो वसुंधरा जी देखती है कि दोनों के बीच पति-पत्नी के जैसे स्वाभाविक बातचीत नहीं होती है ।कनक अपने पति से डरी सहमी रहती है। 
        दोनों खाना खाकर चले जाते हैं ।वसुंधरा दोनों के बारे में कुछ सोचने लगती हैं ।दूसरे दिन वसुंधरा जी दीपक के ऑफिस जाने के बाद  कनक से उसके मायके और ससुराल के बारे में पूछती हैं। कनक बहुत अच्छे से उन्हें सारी जानकारी देती है। कनक की बातों से ही उन्हें अंदाजा होता है कि दीपक  इस शादी के लिए तैयार नहीं था ।लेकिन माता-पिता की पसंद के कारण उसने कनक से शादी कर ली थी ।कनक केवल पांचवी तक पढ़ी थी।यही बात दीपक को पसंद नहीं थी। वसुंधरा जी जब यह सुनती हैं  तो कनक से पूछती है कि तुमने पढ़ाई कईं छोड़ दी थी।तब कनक बताती है कि मैं बचपन में पांचवी कक्षा तक स्कूल गई थी उसके बाद मेरी मां की मृत्यु हो गई, सौतेली मां के आ जाने से मेरी पढ़ाई रोक दी गई , मैं आगे नहीं पढ़ पाई।मैं थोड़ा-थोड़ा लिखना और पढ़ना जानती हूं  उसकी बातें सुनकर वसुंधरा जी को आशा की एक नई किरण दिखाई दी। उन्होंने कहा कि तुम्हें दीपक का मन जीतने के लिए आगे पढ़ाई करनी चाहिए ।जब दीपेश ऑफिस चला जाएगा तब मैं तुम्हें थोड़ा थोड़ा पढ़ाऊंगी। तुम रोज अभ्यास करते रहना।कनक  तो बहुत ही खुश हो जाती है  ।और उसी दिन  सरस्वती माता की पूजा करके आशीर्वाद लेती है। दूसरे दिन से वसुंधरा और कनक की क्लास शुरू हो जाती है ।वसुंधरा जी रोज क
कनक को पढ़ाने लगती है।वह देखती है कि कनक बहुत ही होशियार है ।हर काम लगन से करती है ,जो भी पढ़ती थी उसे वह तुरंत याद कर लेती थी और लिखने का भी अभ्यास करती थी ।यह सब काम दीपक
के  ऑफिस जाने के बाद होता था। इसलिए दीपक को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं रहती है । एक दिन वसुंधरा जी की बहू मीना कनक के घर आती है 
और  देखती है कि कनक ने  बहुत ही सुंदर क्रोशिया का मेजपोश बनाया है । मीना कनक को मेजपोश बनाने सिखा देना को कहती है। कनक खुशी-खुशी तैयार हो जाती है  अब मीना रोज कुछ समय के लिए कनक से  मेज़पोश बनाना सीखने लगती है । एक दिन अचानक दीपक आ जाता है और दोनों को देखता है तो उसे बहुत आश्चर्य होता है कि इतने बड़े घर की बहू मेरी पत्नी से कुछ सीख रही है साथ ही प्रशंसा भी कर रही है ।
         वसुंधरा जी की बेटी तनु के कॉलेज में आनंद मेला  होने वाला रहता है जिसमें खाने पीने की चीजों का स्टॉल लगाना होता है। तनु उसमें कुछ अलग चीज बनाना चाहती थी । कनक जब कुछ अच्छा व्यंजन बनाती थी तो हमेशा वसुंधरा जी  के घर देती थी । औरसब चाव से खाते थे।तनु को यह बात याद आती है और वह कनक के पास जाती है।उससे गांव  के परंपरागत खाने के बारे में जानकारी लेती है। और सिखाने के लिए कहती है ।कनक उसे कई चीजें बनाना सिखाती है। तनु अपने कॉलेज  स्टाल में वही चीजें बनाती है । उसके स्टॉल की  चीजों को लोग सबसे ज्यादा पसंद करते हैं।उसे प्रथम पुरस्कार मिलता है। तनु बहुत ही खुश होकर कनक के लिए उपहार लेकर आती है और  दीपक  के सामने ही कनक को देते हुए रात के खाने के लिए आमंत्रित करती है। कहती है आप तो मेरी गुरु हैं ,आपने जो सिखाया है वह मैं आज आपको बनाकर खिलाऊंगी।
       दीपक यह सब सुनकर देखते ही रह जाता है ।उसको तो लगता था कि कनक में कुछ भी विशेष नही है। उसके कम पढ़े लिखे होने  के कारण उसके बाकी गुणों को कभी देखता ही नहीं था। उसके लिएये सब कुछ भी मायने नहीं रखते थे।
      लेकिन मीना और तनु की बातों से वह धीरे धीरे कनक की तरफ ध्यान देने लगता है । रात को जब दोनों खाना खाने जाते हैं  तो तनु के बनाये खाने की सब तारीफ करते हैं।तनु इसका सारा श्रेय कनक को देती है।
         खाना खाने के बाद सब एक साथ बैठकर बातें करते रहते हैं ।तब सुधीर जी बताते हैं  वसुंधरा जी तो बिल्कुल भी पढ़ना लिखना नहीं जानती थीं।  शादी के बाद  मैंने निश्चय किया कि मैं इनकी इस कमी को दूर करूंगा।पहले तो यह पढ़ना नहीं चाहती थी । मैंने धीरे-धीरे उन्हें समझाया कि पढ़ना लिखना कितना आवश्यक होता है ।कुछ नहीं तो अपने बच्चों को तुम पढ़ा सकती हो ।बड़ी मुश्किल से ये तैयार  हुई। सारा काम समाप्त होने के  बाद रात को मैं  इंतजार करते रहता था कि कब ये आए और मैं पढ़ाऊँ। ये तरह-तरह के बहाने बनाती थी नहीं पढ़ने के। फिर भी मैं भी जिद पर अड़ा ही रहता था। जितनी भी देर हो जाये मैं इन्हें रोज पढ़ाता ही था और अभ्यास करने के लिए देता था। इस तरह धीरे-धीरे इन्हें पढ़ना अच्छा लगने लगा । फिर बच्चों के बड़े होने के साथ साथ  इन्होंने पत्राचार माध्यम से परीक्षाएं दी और आज स्नातक है।
       हमें अपनी पत्नी में जो कमी है उसे दूर करना चाहिए। हममें भी तो कई कमियां होती हैं उसके बावजूद भी हमारी पत्नियां हमें स्वीकार करती है। कभी शिकायत नहीं करती।  आज  वसुंधरा जी को देखकर कोई नहीं कह सकता कि यह कभी पढ़ना लिखना नहीं जानती होंगी । 
      उनकी बात सुनकर दीपक की कुछ सोचने लगता है।वसुंधरा जी उसके मन की उथल पुथल को समझ जाती हैं। दीपक मन सोचता है कि मैंने तो कनक के बारे में ऐसा कभी सोचा ही नहीं ।बल्कि हमेशा उसका अपमान करता था। उसकी तरफ ध्यान ही नहीं देता था।
      इसी तरह आगे भी  वसुंधरा जी और कनक की कक्षाएं चलती रहती है । एक दिन अचानक दीपक के सिर में दर्द होता है और वो ऑफिस से जल्दी आ जाता है । उस समय कनक कुछ लिखते लिखते सो जाए रहती है ।दीपक  देखता है कि कनक के पास बहुत ही सुंदर अक्षरों में लिखी हुई  कॉपी रखी हुई है। पुस्तक खुली हुई है। यह देखकर वह आश्चर्य में पड़ जाता है। उसके आने की आहट सुनकर कनक की नींद खुल जाती है और वह जल्दी-जल्दी अपनी कॉपी पुस्तक समेट कर रख देती है। उस समय तो दीपक कुछ नहीं कहता है। दवा लेकर और चाय पी कर सो जाता है। बाद में हो जब 
 कनक खाना बनाते रहती है तो उसकी कॉपी लेकर आता है और दिखाकर पूछता है यह किसने लिखा है ।अब कनक  छुपा नहीं पाती और बता देती है मैंने लिखा है । दीपक देखता है कि लिखावट बहुत ही सुंदर  है।वह तारीफ करता है कहता है कि यह तुम कब से कर रही हो। तब कनक  बताती है कि लगभग साल भर हो गया है। अब  दोनों वसुंधरा जी को माँ जी कहने लगे थे।  
      कनक बताती है कि माँ जी तो शुरू से ही मुझे रोज दिन पढ़ाती हैं। मैं रोज दिन अभ्यास करती हूं । अब तो मैं आगे की परीक्षा की भी तैयारी कर रही हूं। दीपक यह सुनकर बहुत ही खुश हो जाता है और कहता है कि अब आगे से मैं तुम्हारी पढ़ाई में पूरी मदद करूंगा । सुधीर जी की बातें सुनकर मैं सोच रहा था कि मैं भी तुम्हें पढ़ाऊंगा लेकिन तुम तो मेरी सोच से भी आगे निकली। अब तुम्हें किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है ।अब हम मिलकर अपनी जिंदगी में आगे कदम बढ़ाएंगे।
      ठीक इसी समय वसुंधरा जी कनक के आज पढ़ाई का अभ्यास जाँचने आती  हैं। दोनों की बातें सुनकर उन्हें बहुत ही खुशी होती है। वसुंधरा जी को देखकर दोनों उनका आशीर्वाद लेते हैं। वह दोनों को हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद देती है और दीपक से कहती है कि जब लड़की शादी करके आती है तो एक गीली मिट्टी की तरह होती है पति चाहे उसके गुणों को आगे बढ़ाकर सही आकार   दे सकता है, जैसे सुधीर जी ने मेरे जीवन को दिया है। ऐसे ही  तुम दोनों भी एक दूसरे का साथ देकर ऐसे ही एक सुंदर परिवार की रचना करना। आज मैं  एक और सच्चाई बताती हूँ कि जिस दिन तुम लोग किराए का मकान पूछने आए थे तो मैंने तुम्हारे बारे  मेउन जानकर  कमरे नहीं दिये थे। मैंने जब तुम्हारे पीछे खड़ी कनक को देखा तो मुझे उसमें अपनी छवि दिखाई  दी थी। उसकी मासूमियत ने मेरा मन मोह लिया था और इसीलिए मैंने कमरे किराए पर दिए थे । धीरे धीरे मैं जान गई कि अगर बोलकर तुम्हारी पत्नी के गुणों को तुम्हारे सामने लाया जाए तो उसका कोई महत्व नहीं होगा। इसलिए समय समय पर अपने आप ही  तुम्हें उसके गुणों के बारे में पता चलता गया जैसे मीना और तनु के द्वारा ।
      दीपक को पछतावा होने लगा  कि उसने कनक की तरफ पहले क्यों नहीं ध्यान दिया था ।वसुंधरा जी उसे समझाती है कि अभी देर नहीं हुई है जब जागो तभी सवेरा होता है ।मैं  चाहती हूं जिस तरह गीली मिट्टी से एक सुंदर मूरत बनती है उसी तरह से तुम भी कनक के गुणों को सही आकार देकर अपने जीवन को सुखी बनाओ।
     वसुंधरा जी की  दीपक और कनक के रिश्ते को मजबूत बनाने की योजना  सफल हो गयी।

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