मुगल, तुर्क, और अरब हमलावरों के समय भारत की क्या स्थिति रही होगी, इसका अंदाजा आप अफगानिस्तान से आ रही तस्वीरों, वीडियो और खबरों से लगा ही रहे होंगें
लेकिन न तो अफगानियों की भांति हम बीवी बच्चों को छोड़कर भागे, न डरकर भागे.....हमारी औरतों तक ने लुटेरों के हाथों अपमानित होने के बजाय सम्मान के साथ जौहर किया, सती होना तक स्वीकार किया।
800 वर्षों के संघर्ष में हम लगातार युद्धरत रहे और समय समय पर विभिन्न योद्धाओं ने हमारा नेतृत्व किया। कभी पृथ्वीराज चौहान, कभी कृष्णदेव राय, कभी हेमू, कभी शिवाजी, कभी महाराणा प्रताप तो कभी गोविन्द सिंह के रूप में कोई न कोई संघर्ष की मशाल थामे रहा।
वामपंथी इतिहासकारों के लिखे झूठे इतिहास को मत पढ़िए, बॉलीवुड द्वारा बनाई गई जेहादियों की झूठी व मनगढ़ंत छवि पर मत जाइए...अफगानिस्तान से आती हर तस्वीर को ध्यान से देखिए बस तलवारों का स्थान बंदूकों ने ले लिया है बाकी ....इतिहास साक्षात रूप में खुद को दोहरा रहा है
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