पढ़ें उनकी कहानी जिनके दम पर -50 डिग्री में सियाचिन में शान से लहरा रहा है तिरंगा

सियाचिन की धरा पर शहादत की कई कहानियां लिखी हुई हैं। 13 अप्रैल को सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत के 33 बरस पूरे हुए हैं। तीन दशक यहां सफेद चादर, नीले आसमान और मुश्किल हालातों के बीच तिरंगा शान से लहरा रहा है। सियाचिन में सेना के कई जवान बेहद मुश्किल हालातों में बिना किसी परवाह मुस्तैद हैं। देखें तस्वीरें।

सियाचिन में तैनात जवानों के लिए दुश्मन से ज्यादा खतरा मौसम से होता है। सर्दियों में तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस तक नीचे तक पहुंच जाता है। ऐसे हालात में भी जवान देश की रक्षा के लिए पूरी निष्ठा से खड़े रहते हैं।
कई बार आधार शिविर से सबसे दूर की पोस्ट इंद्रा काल तक जवानों को पैदल 20 से 22 दिन तक सफर करना पड़ता है। आक्सीजन की कमी होने से कई बार सोते हुए जान जाने का खतरा होता है।
सियाचिन में सैनिकों की तैनाती सिर्फ तीन महीने के लिए की जाती है। इस दौरान फौजियों को नहाने और दाढ़ी बनाने की अनुमति भी नहीं होती। सियाचिन के सैनिकों को इस दौरान एक सीमित दायरे में ही घूमने की अनुमति दी जाती है।
इस अवधि में कई बार जवानों पर बर्फ में तेज रोशनी से आंख खराब होने का खतरा भी बना रहता है।
इस अवधि में कई बार जवानों पर बर्फ में तेज रोशनी से आंख खराब होने का खतरा भी बना रहता है।
वर्ष 2016 में जब हिमस्खलन में सेना के कुछ जवान दब गए थे। बर्फ में दबे लांस नायक हनुमनथप्पा को रेस्क्यू कर अस्पताल में दाखिल किया गया तो उनके लिए सारे देश के लोगों ने दुआएं मांगी।
सोशल मीडिया पर भी इस जांबाज के साथ लोग खड़े हुए। तक कई दिन तक सोशल मीडिया पर उनके नाम का हैशटैग ट्रेंड करता रहा। 




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