बड़ों का आदर करना भूल रहे बच्चे
नैतिकता की आधुनिक युग में कमी होती जा रही है। अनैतिकता बढ़ने के कारण शिष्टाचार में कमी आ रही है। जैसे-जैसे इंटरनेट व सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ रहा है वैसे-वैसे हम नैतिकता को भूल रहे हैं। सोशल मीडिया का प्रयोग गलत नहीं है। यह हमारे ज्ञान के स्तर को बढ़ाता है, लेकिन आज कुछ बच्चे इसका गलत प्रयोग कर अपने संस्कारों को भूल रहे हैं। आजकल बच्चे बड़ों का आदर करना भूल रहे हैं। हमें आधुनिक बनना चाहिए, लेकिन अपने संस्कारों को नहीं भूलना चाहिए।
माता-पिता भी बच्चों को पढ़ाएं नैतिकता व शिष्टाचार का पाठ
आज समाज में नैतिकता की कमी होती जा रही है। एक समय था जब बच्चे बड़े बुजुर्गो के पाव छू कर प्रणाम करते थे व आशीर्वाद लेते थे। बदलते समाज से हमारी कार्य करने की गति ही नहीं बढ़ी है, बल्कि इसके साथ नई पीढ़ी में नैतिकता व शिष्टाचार की कमी होती जा रही है। इसका मूल कारण यही है कि बच्चे स्वयं को मिली उपलब्धियों की कद्र न कर उसका दुरुपयोग कर रहे हैं। आज हम संस्कार व शिष्टाचार को भूल गए हैं। माता-पिता भी कुछ हद तक इसके लिए जिम्मेदार हैं। माता और पिता को बच्चे द्वारा गलत माग करने पर नैतिकता व शिष्टाचार का पाठ पढ़ाना चाहिए।
नैतिकता व शिष्टाचार का जीवन में काफी महत्व
नैतिकता व शिष्टाचार हमारे जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। पुराने समय में बच्चे माता-पिता, दादा-दादी व अन्य रिस्तेदारों व आसपास के लोगों का आदर करते थे, लेकिन आज यह सब कम होता जा रहा है। आज हम बाहरी आडंबरों को ज्यादा महत्व देते हैं और संस्कारों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे। अगर ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में हमारा पतन स्वभाविक है। आधुनिकता की होड़ में हम संस्कृति, संस्कार व शिष्टाचार को भूलते जा रहे हैं। हमें आज ही सचेत होना होगा और बच्चों को संस्कार, नैतिकता तथा शिष्टाचार की शिक्षा देनी होगी।
एकल परिवार भी शिष्टाचार में कमी का कारण
संस्कार, नैतिकता व शिष्टाचार सभी आज विलुप्त होने लग गए हैं। पुराने समय में हम देखें तो नैतिक मूल्यों या शिष्टाचार की शिक्षा के लिए कोई विशेष विषय का प्रबंध नहीं था और यूं कहूं कि इसकी हमें जरूरत ही नहीं थी। यह सब तो बच्चा पारिवारिक माहौल में ही सीखता था। पहले संयुक्त परिवार की प्रथा थी, जिसमें सभी साथ रहते थे। बड़ों का लिहाज व सम्मान करना वहीं सीखते थे, लेकिन आज हर कोई छोटे परिवार में रहना चाह रहा है। इससे हम अपने बच्चों को संस्कार व नैतिक मूल्यों की शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। स्वयं हम अपने बच्चों को समझा ही नहीं पा रहे हैं कि नैतिकता, शिष्टाचार व संस्कार क्या होते हैं। इन सबको बताने का हमारे पास ही समय नहीं है।
नैतिक मूल्यों से भरा व्यक्ति समझता है शिष्टाचार का महत्व
संस्कार मनुष्य की काफी हद तक परवरिश पर भी निर्भर करते हैं। संसार में नैतिकता का होना बहुत जरूरी है। नैतिक मूल्यों से भरा व्यक्ति शिष्टाचार का महत्व समझता है। बच्चा अपने माता-पिता एवं अपने संपूर्ण परिवार से बहुत कुछ सीखता है। संस्कारों से व्यक्ति के चरित्र का पता लगाया जा सकता है। आज के समय में इसकी कमी दिखाई देती है। इसका क्या कारण है क्यों मनुष्य अपने संस्कारों व नैतिक मूल्यों को भूलता जा रहा है, इस पर मंथन करना जरूरी हो गया है। इसका एक कारण धार्मिक व सास्कृतिक कार्यो में कम समय देना भी हो सकता है।
शिक्षक व अभिभावक दें बच्चों को नैतिक मूल्यों की जानकारी
जैसे हर सिक्के के दो पहलु होते हैं। वैसे ही हर चीज का अच्छा व बुरा दोनों पक्ष होते हैं। यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह कौन से पहलु का चुनाव करते हैं। अच्छे पक्ष का चुनाव हमें ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है और गलत पहलु कहीं का नहीं छोड़ता। यही आज हो रहा है। आज की पीढ़ी नैतिकता व शिष्टाचार को भूल रही है। नैतिकता का न होना ही अशिष्टता का मुख्य कारण है। नैतिकता हमें हमारे परिवार व समाज से मिलती है। समाज हमारा उत्थान करने में सहायक होता है। शिक्षकों व अभिभावकों का नैतिक कर्तव्य है कि युवा पीढ़ी को नैतिक मूल्यों के प्रति जागरूक करें।
Jay ho
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