संत ने अपने पास रखी हुई तीन चीजें उठाकर उस व्यक्ति को दे दीं, ‘‘थोड़ी सी रूई, एक मोमबत्ती और एक सुई।’’
तीनों चीजें उसके हाथ में देने के बाद संत ने कहा, ‘‘बस हो गया हमारा उपदेश, अब जाओ।’’
वह आदमी वहां से चल पड़ा, पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि संत ने ये चीजें उसे क्यों दी।
वह व्यक्ति वापस संत के पास आकर बोला, ‘‘महाराज यह जो कुछ आपने दिया यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है।’’
संत ने कहा, ‘‘यह जो रूई दी है, इसकी खासियत यह है कि यह धागा बनकर हर एक की लाज ढंकती है।
मेरे परमात्मा का प्यारा इंसान भी वही है जो दूसरों की लाज ढंका करता है और दूसरों को संरक्षण देता है।’’
‘‘और यह मोमबत्ती?’’
‘‘मोम बनकर जलती जरूर है, लेकिन प्रकाश बनकर अंधेरा दूर करती है, दूसरों को रास्ता दिखाती है।
तुम भी इसी रूप को धारण करो, सदैव दूसरों के लिए प्रकाश बनकर रहना और तीसरी चीज तुमको दी है, सुई ’।
सुई के बिना संसार का काम नहीं चलता। टुकड़ों को, फटे हुओं को, कटे हुओं को जोडऩे का काम करती है।
सुई के बिना कोई जुड़ा नहीं करता।
तो दुनिया में भी परमात्मा का प्यारा वही है जो फटे हुए दिलों को सिला करता है,
जो टूटे हुए दिलों को जोड़ा करता है, बिखरे हुओं को जो इकट्ठा करता है।
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