आधुनिकता की चकाचौंध में हमें अपनी संस्कृति, सभ्यता व संस्कारों को दरकिनार नहीं करना चाहिए

आधुनिकता की चकाचौंध में हमें अपनी संस्कृति, सभ्यता व संस्कारों को दरकिनार नहीं करना चाहिए। आज के समय में हम शिष्टाचार, नैतिकता को भूलते जा रहे हैं। शिष्टाचार व नैतिकता हमारे जीवन में बहुत अहम चीजें हैं। किसी भी विषय को ले लें, हम अपनी युवा पीढ़ी पर पूरा दोष डाल कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। सवाल यह नहीं कि आज की युवा पीढ़ी में नैतिकता व शिष्टाचार की कमी हो रही है। सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ युवा पीढ़ी पर दोषारोपण से हमारी जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। क्या हम युवा पीढ़ी के लिए अपना कर्तव्य निष्ठा से निभा रहे हैं। क्या सारी गलती युवा पीढ़ी की ही है। मुझे नहीं लगता कि आज की युवा पीढ़ी सौ प्रतिशत गलत है। आज उनमें संस्कारों की कमी अगर हो रही है तो उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ हम ही हैं। क्यों हम उनमें संस्कार नैतिकता शिष्टाचार नहीं भर पा रहे हैं। यह एक सोचने का विषय है। बच्चों का अनैतिक होना हमारी कमजोरी है।
अगर मैं अपनी युवा उम्र की युवा पीढ़ी को उदाहरण के तौर पर लेकर आगे बढूं तो बचपन में दादा-दादियों द्वारा हमें अच्छी-अच्छी कहानिया सुनाई जाती थीं। कहते हैं कि जब बच्चा छोटा होता है तो उसका दिमाग बिलकुल शून्य होता है। आप उसको जिस प्रकार के संस्कार व शिक्षा देंगे उसी राह पर वह आगे बढ़ता है। अगर वाल्यकाल में बच्चों को यह शिक्षा दी जाती है कि चोरी करना बुरी बात है तो वह चोरी जैसी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा। छोटी अवस्था में बच्चों को संस्कारित करने में माता-पिता, दादा-दादी व बुजुर्गो का बड़ा हाथ होता था। कहानियां भी प्रेरणादायी होती थीं।
जब हम छोटे होते थे तो हमारे पास एक नैतिक शिक्षा की पुस्तक होती थी। जिसमें बहुत अच्छी कहानिया होती थीं। आज वह पुस्तक बच्चों के पास से गायब हो चुकी है। ढेरों कॉमिक्स, कंप्यूटर गेम्स, वीडियो गेम्स, फिल्मी गानों की दुनिया भर की सीडी मिल जाएंगी, लेकिन भगत सिंह, स्वामी विवेकानंद आदि के जीवन की कहानियों की किताब बच्चों के स्कूल बैग से गायब ही हो चुकी है। यहा तक कि हम कोशिश भी नहीं करते कि अपने बच्चों को ऐसी किताबे दें जिससे वह नैतिकता व शिष्टाचार को समझें।
यह बात जरूर है कि आजकल की युवा पीढ़ी नैतिकता तथा शिष्टाचार को भूल सी गई है। संस्कारों का अभाव कहीं भी देखने को मिल सकता है। युवा पीढ़ी में संस्कार, नैतिकता व शिष्टाचार की कमी न हो, इसके लिए हमें स्वयं से ही शुरुआत करनी होगी।
संस्कार, नैतिकता, शिष्टाचार, सभ्यता और जीवन दर्शन का सम्मान देश के नागरिकों का धर्म भी है। संस्कार यानी हमारी जड़ें हमारी पहचान, संस्कार शिष्टाचार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तातरित होते आए हैं।
हमारे स्कूलों में नैतिक शिक्षा व शिष्टाचार के लिए शिक्षा का प्रावधान होना अनिवार्य हो गया है। हमारे स्कूलों में शिक्षा का प्रभावशाली साधन बनाने के लिए परिवार समुदाय तथा राज्य आदि साधनों का उपयोग करना चाहिए जिससे बच्चों को संस्कारों से संबंधित शिक्षा दी जाए। छोटे बच्चों के सामने नैतिकता व शिष्टाचार ऐसा समृद्ध हो कि उन्हें अनैतिक तत्वों की तरफ जाने की गुजाइंश ही न दिखे।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सबसे बड़ा दोष यह है कि वह हमारे बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक नहीं है। शिष्टाचार एवं नैतिकता किसे कहा जाता है यह कभी सिखाया ही नहीं जाता। बल्कि गणित, विज्ञान, अंग्रेजी आदि विषयों पर जोर दिया जाता है, जिससे बच्चे पढ़ना तो सीख रहे हैं, लेकिन संस्कार, नैतिकता व शिष्टाचार किसे कहते हैं उससे अनभिज्ञ हैं। हमारे स्कूलों में बच्चों के व्यक्तित्व का विकास सामाजिक वातावरण में रखते हुए करना चाहिए।
अनैतिकता ही अशिष्टता का कारण है। अनैतिकता को समाप्त करने के लिए हमें बच्चों को उसी प्रकार से शिक्षित करने की जरूरत है। संस्कार होंगे तो बच्चों में नैतिकता व शिष्टाचार भी आएंगे। हम अगर बच्चों को पुस्तकीय ज्ञान के साथ इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था करें जिसमें बच्चों में नैतिकता व शिष्टाचार को बढ़ावा मिले तो जल्द ही यह बातें सुनने को नहीं मिलेंगी कि आज की पीढ़ी में अनैतिकता व अशिष्टता है। जब हम उन्हें ज्ञान ही नहीं देंगे तो उनसे शिष्टाचार की आस कैसे लगाएं।
बच्चों में अनैतिकता का एक कारण यह भी है कि आज हर परिवार में अभिभावक दोनों नौकरी करते हैं। बच्चा अकेला घर पर रह रहा है जिस साथ की उसे जरूरत है वह नहीं मिल पा रहा है। इससे वह खाली समय में टेलीविजन देख रहा है उसे बड़ों के साथ अच्छा समय बिताने को नहीं मिल पा रहा है। यह कुछ वजहें हैं जिससे युवा अनैतिक व अशिष्ट होते जा रहे हैं। इनमें नैतिकता व शिष्टाचार तथा संस्कार लाने के लिए हमें स्वयं को भी सोचना होगा। 


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