दिल को छू लेने वाला प्रसंग
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
एक बुजुर्ग आदमी बुखार से ठिठुरता और भूखा प्यासा शिव मंदिर के बाहर बैठा था।
तभी वहां पर नगर के सेठ अपनी सेठानी के साथ एक बहुत ही लंबी और मंहगी कार से उतरे।
उनके पीछे उनके नौकरों की कतार थी।
एक नौकर ने फल पकडे़ हुए थे
दूसरे नौकर ने फूल पकडे़ थे
तीसरे नौकर ने हीरे और जवाहरात के थाल पकडे़ हुए थे।
चौथे नौकर ने पंडित जी को दान देने के लिए मलमल के 3 जोडी़ धोती कुरता और पांचवें नौकर ने मिठाईयों के थाल पकडे़ थे।
पंडित जी ने उन्हें आता देखा तो दौड़ के उनके स्वागत के लिए बाहर आ गए।
बोले आईये आईये सेठ जी, आपके यहां पधारने से तो हम धन्य हो गए।
सेठ जी ने नौकरों से कहा जाओ तुम सब अदंर जाके थाल रख दो।
हम पूजा पाठ सम्पन्न करने के बाद भगवान शिव को सारी भेंट समर्पित करेंगें।
बाहर बैठा बुजुर्ग आदमी ये सब देख रहा था।
उसने सेठ जी से कहा - मालिक दो दिनों से भूखा हूंँ,थोडी़ मिठाई और फल मुझे भी दे दो खाने को।
सेठ जी ने उसकी बात को अनसुना कर दिया।
बुजुर्ग आदमी ने फिर सेठानी से कहा - ओ मेम साहब थोडा़ कुछ खाने को मुझे भी दे दो मुझे भूख से चक्कर आ रहे हैं।
सेठानी चिढ़ के बोली बाबा, ये सारी भेटें तो भगवान को चढानें के लिये हैं। तुम्हें नहीं दे सकते, अभी हम मंदिर के अंदर घुसे भी नहीं हैं और तुमने बीच में ही टोक लगा दी।
सेठ जी गुस्से में बोले, लो पूजा से पहले ही टोक लग गई, पता नहीं अब पूजा ठीक से संपन्न होगी भी या नहीं।
कितने भक्ती भाव से अंदर जाने कि सोच रहे थे और इसने अर्चन डाल दी।
पंडित जी बोले शांत हो जाइये सेठ जी,इतना गुस्सा मत होईये।
अरे क्या शांत हो जाइये पंडितजी
आपको पता है - पूरे शहर के सबसे महँंगे फल और मिठाईयां हमने खरीदे थे प्रभु को चढानें के लिए और अभी चढायें भी नहीं कि पहले ही अडचन आ गई।
सारा का सारा मूड ही खराब हो गया,अब बताओ भगवान को चढानें से पहले इसको दे दें क्या ?
पंडितजी बोले अरे पागल है ये आदमी,आप इसके पीछे अपना मुड मत खराब करिये सेठजी चलिये आप अंदर चलिये, मैं इसको समझा देता हूँ। आप सेठानी जी के साथ अंदर जाईये।
सेठ और सेठानी बुजुर्ग आदमी को कोसते हुये अंदर चले गये।
पंडित जी बुजुर्ग आदमी के पास गए और बोले जा के कोने में बैठ जाओ, जब ये लोग चले जायेगें तब मैं तुम्हें कुछ खाने को दे जाऊंगा।
बुजुर्ग आदमी आसूं बहाता हुआ कोने में बैठ गया।
अंदर जाकर सेठ ने भगवान शिव को प्रणाम किया और जैसे ही आरती के लिए थाल लेकर आरती करने लगे,तो आरती का थाल उनके हाथ से छूट के नीचे गिर गया।
वो हैरान रह गए
पर पंडित जी दूसरा आरती का थाल ले आये।
जब पूजा सम्पन्न हुई तो सेठ जी ने थाल मँगवाई भगवान को भेंट चढानें को, पर जैसे ही भेंट चढानें लगे वैसे ही तेज़ भूकंप आना शुरू हो गया और सारे के सारे थाल ज़मीन पर गिर गए।
सेठ जी थाल उठाने लगे, जैसे ही उन्होनें थाल ज़मीन से उठाना चाहा तो अचानक उनके दोनों हाथ टेढे हो गए मानों हाथों को लकवा मार गया हो।
ये देखते ही सेठानी फूट फूट कर रोने लगी,बोली पंडितजी देखा आपने, मुझे लगता है उस बाहर बैठे बूढें से नाराज़ होकर ही भगवान ने हमें दण्ड दिया है।
उसी बूढे़ की अडचन डालने की वजह से भगवान हमसे नाराज़ हो गए।
सेठ जी बोले हाँ उसी की टोक लगाने की वजह से भगवान ने हमारी पूजा स्वीकार नहीं की।
सेठानी बोली, क्या हो गया है इनके दोनों हाथों को, अचानक से हाथों को लकवा कैसे मार गया,
इनके हाथ टेढे कैसे हो गए, अब क्या करूं मैं ? ज़ोर जो़र से रोने लगी -
पंडित जी हाथ जोड़ के सेठ और सेठानी से बोले - माफ करना एक बात बोलूँ आप दोनों से - भगवान उस बुजुर्ग आदमी से नाराज़ नहीं हुए हैं, बल्की आप दोनों से रूष्ट होकर भगवान आपको ये डंड दिया है।
सेठानी बोली पर हमने क्या किया है ?
पंडितजी बोले क्या किया है आपने ? मैं आपको बताता हूं
आप इतने महँंगे उपहार ले शके आये भगवान को चढानें के लिये
पर ये आपने नहीं सोचा के हर इन्सान के अंदर भगवान बसते हैं।
आप अन्दर भगवान की मूर्ती पर भेंट चढ़ाना चाहते थे,पर यहां तो खुद उस बुजुर्ग आदमी के रूप में भगवान आपसे प्रसाद ग्रहण करने आये थे। उसी को अगर आपने खुश होकर कुछ खाने को दे दिया होता तो आपके उपहार भगवान तक खुद ही पहुंच जाते।
किसी गरीब को खिलाना तो स्वयं ईश्वर को भोजन कराने के सामान होता है।
आपने उसका तिरस्कार कर दिया तो फिर ईश्वर आपकी भेंट कैसे स्वीकार करते.....
सब जानते है किे श्री कृष्ण को सुदामा के प्रेम से चढा़ये एक मुटठी चावल सबसे ज़्यादा प्यारे लगे थे
अरे भगवान जो पूरी दुनिया के स्वामी है, जो सबको सब कुछ देने वाले हैं, उन्हें हमारे कीमती उपहार क्या करने हैं,वो तो प्यार से चढा़ये एक फूल, प्यार से चढा़ये एक बेल पत्र से ही खुश हो जाते हैं।
उन्हें मंहगें फल और मिठाईयां चढा़ के उन के ऊपर एहसान करने की हमें कोई आवश्यकता नहीं है।
इससे अच्छा तो किसी गरीब को कुछ खिला दीजिये,ईश्वर खुद ही खुश होकर आपकी झोली खुशियों से भर देगें।
और हाँं, अगर किसी माँंगने वाले को कुछ दे नहीं सकते तो उसका अपमान भी मत कीजिए क्यों कि वो अपनी मर्जी़ से गरीब नहीं बना है।
और कहते हैं ना - ईश्वर की लीला बडी़ न्यारी होती है, वो कब किसी भिखारी को राजा बना दे और कब किसी राजा को भिखारी कोई नहीं कह सकता।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
दिल को छू लेने वाला प्रसंग
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
एक बुजुर्ग आदमी बुखार से ठिठुरता और भूखा प्यासा शिव मंदिर के बाहर बैठा था।
तभी वहां पर नगर के सेठ अपनी सेठानी के साथ एक बहुत ही लंबी और मंहगी कार से उतरे।
उनके पीछे उनके नौकरों की कतार थी।
एक नौकर ने फल पकडे़ हुए थे
दूसरे नौकर ने फूल पकडे़ थे
तीसरे नौकर ने हीरे और जवाहरात के थाल पकडे़ हुए थे।
चौथे नौकर ने पंडित जी को दान देने के लिए मलमल के 3 जोडी़ धोती कुरता और पांचवें नौकर ने मिठाईयों के थाल पकडे़ थे।
पंडित जी ने उन्हें आता देखा तो दौड़ के उनके स्वागत के लिए बाहर आ गए।
बोले आईये आईये सेठ जी, आपके यहां पधारने से तो हम धन्य हो गए।
सेठ जी ने नौकरों से कहा जाओ तुम सब अदंर जाके थाल रख दो।
हम पूजा पाठ सम्पन्न करने के बाद भगवान शिव को सारी भेंट समर्पित करेंगें।
बाहर बैठा बुजुर्ग आदमी ये सब देख रहा था।
उसने सेठ जी से कहा - मालिक दो दिनों से भूखा हूंँ,थोडी़ मिठाई और फल मुझे भी दे दो खाने को।
सेठ जी ने उसकी बात को अनसुना कर दिया।
बुजुर्ग आदमी ने फिर सेठानी से कहा - ओ मेम साहब थोडा़ कुछ खाने को मुझे भी दे दो मुझे भूख से चक्कर आ रहे हैं।
सेठानी चिढ़ के बोली बाबा, ये सारी भेटें तो भगवान को चढानें के लिये हैं। तुम्हें नहीं दे सकते, अभी हम मंदिर के अंदर घुसे भी नहीं हैं और तुमने बीच में ही टोक लगा दी।
सेठ जी गुस्से में बोले, लो पूजा से पहले ही टोक लग गई, पता नहीं अब पूजा ठीक से संपन्न होगी भी या नहीं।
कितने भक्ती भाव से अंदर जाने कि सोच रहे थे और इसने अर्चन डाल दी।
पंडित जी बोले शांत हो जाइये सेठ जी,इतना गुस्सा मत होईये।
अरे क्या शांत हो जाइये पंडितजी
आपको पता है - पूरे शहर के सबसे महँंगे फल और मिठाईयां हमने खरीदे थे प्रभु को चढानें के लिए और अभी चढायें भी नहीं कि पहले ही अडचन आ गई।
सारा का सारा मूड ही खराब हो गया,अब बताओ भगवान को चढानें से पहले इसको दे दें क्या ?
पंडितजी बोले अरे पागल है ये आदमी,आप इसके पीछे अपना मुड मत खराब करिये सेठजी चलिये आप अंदर चलिये, मैं इसको समझा देता हूँ। आप सेठानी जी के साथ अंदर जाईये।
सेठ और सेठानी बुजुर्ग आदमी को कोसते हुये अंदर चले गये।
पंडित जी बुजुर्ग आदमी के पास गए और बोले जा के कोने में बैठ जाओ, जब ये लोग चले जायेगें तब मैं तुम्हें कुछ खाने को दे जाऊंगा।
बुजुर्ग आदमी आसूं बहाता हुआ कोने में बैठ गया।
अंदर जाकर सेठ ने भगवान शिव को प्रणाम किया और जैसे ही आरती के लिए थाल लेकर आरती करने लगे,तो आरती का थाल उनके हाथ से छूट के नीचे गिर गया।
वो हैरान रह गए
पर पंडित जी दूसरा आरती का थाल ले आये।
जब पूजा सम्पन्न हुई तो सेठ जी ने थाल मँगवाई भगवान को भेंट चढानें को, पर जैसे ही भेंट चढानें लगे वैसे ही तेज़ भूकंप आना शुरू हो गया और सारे के सारे थाल ज़मीन पर गिर गए।
सेठ जी थाल उठाने लगे, जैसे ही उन्होनें थाल ज़मीन से उठाना चाहा तो अचानक उनके दोनों हाथ टेढे हो गए मानों हाथों को लकवा मार गया हो।
ये देखते ही सेठानी फूट फूट कर रोने लगी,बोली पंडितजी देखा आपने, मुझे लगता है उस बाहर बैठे बूढें से नाराज़ होकर ही भगवान ने हमें दण्ड दिया है।
उसी बूढे़ की अडचन डालने की वजह से भगवान हमसे नाराज़ हो गए।
सेठ जी बोले हाँ उसी की टोक लगाने की वजह से भगवान ने हमारी पूजा स्वीकार नहीं की।
सेठानी बोली, क्या हो गया है इनके दोनों हाथों को, अचानक से हाथों को लकवा कैसे मार गया,
इनके हाथ टेढे कैसे हो गए, अब क्या करूं मैं ? ज़ोर जो़र से रोने लगी -
पंडित जी हाथ जोड़ के सेठ और सेठानी से बोले - माफ करना एक बात बोलूँ आप दोनों से - भगवान उस बुजुर्ग आदमी से नाराज़ नहीं हुए हैं, बल्की आप दोनों से रूष्ट होकर भगवान आपको ये डंड दिया है।
सेठानी बोली पर हमने क्या किया है ?
पंडितजी बोले क्या किया है आपने ? मैं आपको बताता हूं
आप इतने महँंगे उपहार ले शके आये भगवान को चढानें के लिये
पर ये आपने नहीं सोचा के हर इन्सान के अंदर भगवान बसते हैं।
आप अन्दर भगवान की मूर्ती पर भेंट चढ़ाना चाहते थे,पर यहां तो खुद उस बुजुर्ग आदमी के रूप में भगवान आपसे प्रसाद ग्रहण करने आये थे। उसी को अगर आपने खुश होकर कुछ खाने को दे दिया होता तो आपके उपहार भगवान तक खुद ही पहुंच जाते।
किसी गरीब को खिलाना तो स्वयं ईश्वर को भोजन कराने के सामान होता है।
आपने उसका तिरस्कार कर दिया तो फिर ईश्वर आपकी भेंट कैसे स्वीकार करते.....
सब जानते है किे श्री कृष्ण को सुदामा के प्रेम से चढा़ये एक मुटठी चावल सबसे ज़्यादा प्यारे लगे थे
अरे भगवान जो पूरी दुनिया के स्वामी है, जो सबको सब कुछ देने वाले हैं, उन्हें हमारे कीमती उपहार क्या करने हैं,वो तो प्यार से चढा़ये एक फूल, प्यार से चढा़ये एक बेल पत्र से ही खुश हो जाते हैं।
उन्हें मंहगें फल और मिठाईयां चढा़ के उन के ऊपर एहसान करने की हमें कोई आवश्यकता नहीं है।
इससे अच्छा तो किसी गरीब को कुछ खिला दीजिये,ईश्वर खुद ही खुश होकर आपकी झोली खुशियों से भर देगें।
और हाँं, अगर किसी माँंगने वाले को कुछ दे नहीं सकते तो उसका अपमान भी मत कीजिए क्यों कि वो अपनी मर्जी़ से गरीब नहीं बना है।
और कहते हैं ना - ईश्वर की लीला बडी़ न्यारी होती है, वो कब किसी भिखारी को राजा बना दे और कब किसी राजा को भिखारी कोई नहीं कह सकता।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
एक बुजुर्ग आदमी बुखार से ठिठुरता और भूखा प्यासा शिव मंदिर के बाहर बैठा था।
तभी वहां पर नगर के सेठ अपनी सेठानी के साथ एक बहुत ही लंबी और मंहगी कार से उतरे।
उनके पीछे उनके नौकरों की कतार थी।
एक नौकर ने फल पकडे़ हुए थे
दूसरे नौकर ने फूल पकडे़ थे
तीसरे नौकर ने हीरे और जवाहरात के थाल पकडे़ हुए थे।
चौथे नौकर ने पंडित जी को दान देने के लिए मलमल के 3 जोडी़ धोती कुरता और पांचवें नौकर ने मिठाईयों के थाल पकडे़ थे।
पंडित जी ने उन्हें आता देखा तो दौड़ के उनके स्वागत के लिए बाहर आ गए।
बोले आईये आईये सेठ जी, आपके यहां पधारने से तो हम धन्य हो गए।
सेठ जी ने नौकरों से कहा जाओ तुम सब अदंर जाके थाल रख दो।
हम पूजा पाठ सम्पन्न करने के बाद भगवान शिव को सारी भेंट समर्पित करेंगें।
बाहर बैठा बुजुर्ग आदमी ये सब देख रहा था।
उसने सेठ जी से कहा - मालिक दो दिनों से भूखा हूंँ,थोडी़ मिठाई और फल मुझे भी दे दो खाने को।
सेठ जी ने उसकी बात को अनसुना कर दिया।
बुजुर्ग आदमी ने फिर सेठानी से कहा - ओ मेम साहब थोडा़ कुछ खाने को मुझे भी दे दो मुझे भूख से चक्कर आ रहे हैं।
सेठानी चिढ़ के बोली बाबा, ये सारी भेटें तो भगवान को चढानें के लिये हैं। तुम्हें नहीं दे सकते, अभी हम मंदिर के अंदर घुसे भी नहीं हैं और तुमने बीच में ही टोक लगा दी।
सेठ जी गुस्से में बोले, लो पूजा से पहले ही टोक लग गई, पता नहीं अब पूजा ठीक से संपन्न होगी भी या नहीं।
कितने भक्ती भाव से अंदर जाने कि सोच रहे थे और इसने अर्चन डाल दी।
पंडित जी बोले शांत हो जाइये सेठ जी,इतना गुस्सा मत होईये।
अरे क्या शांत हो जाइये पंडितजी
आपको पता है - पूरे शहर के सबसे महँंगे फल और मिठाईयां हमने खरीदे थे प्रभु को चढानें के लिए और अभी चढायें भी नहीं कि पहले ही अडचन आ गई।
सारा का सारा मूड ही खराब हो गया,अब बताओ भगवान को चढानें से पहले इसको दे दें क्या ?
पंडितजी बोले अरे पागल है ये आदमी,आप इसके पीछे अपना मुड मत खराब करिये सेठजी चलिये आप अंदर चलिये, मैं इसको समझा देता हूँ। आप सेठानी जी के साथ अंदर जाईये।
सेठ और सेठानी बुजुर्ग आदमी को कोसते हुये अंदर चले गये।
पंडित जी बुजुर्ग आदमी के पास गए और बोले जा के कोने में बैठ जाओ, जब ये लोग चले जायेगें तब मैं तुम्हें कुछ खाने को दे जाऊंगा।
बुजुर्ग आदमी आसूं बहाता हुआ कोने में बैठ गया।
अंदर जाकर सेठ ने भगवान शिव को प्रणाम किया और जैसे ही आरती के लिए थाल लेकर आरती करने लगे,तो आरती का थाल उनके हाथ से छूट के नीचे गिर गया।
वो हैरान रह गए
पर पंडित जी दूसरा आरती का थाल ले आये।
जब पूजा सम्पन्न हुई तो सेठ जी ने थाल मँगवाई भगवान को भेंट चढानें को, पर जैसे ही भेंट चढानें लगे वैसे ही तेज़ भूकंप आना शुरू हो गया और सारे के सारे थाल ज़मीन पर गिर गए।
सेठ जी थाल उठाने लगे, जैसे ही उन्होनें थाल ज़मीन से उठाना चाहा तो अचानक उनके दोनों हाथ टेढे हो गए मानों हाथों को लकवा मार गया हो।
ये देखते ही सेठानी फूट फूट कर रोने लगी,बोली पंडितजी देखा आपने, मुझे लगता है उस बाहर बैठे बूढें से नाराज़ होकर ही भगवान ने हमें दण्ड दिया है।
उसी बूढे़ की अडचन डालने की वजह से भगवान हमसे नाराज़ हो गए।
सेठ जी बोले हाँ उसी की टोक लगाने की वजह से भगवान ने हमारी पूजा स्वीकार नहीं की।
सेठानी बोली, क्या हो गया है इनके दोनों हाथों को, अचानक से हाथों को लकवा कैसे मार गया,
इनके हाथ टेढे कैसे हो गए, अब क्या करूं मैं ? ज़ोर जो़र से रोने लगी -
पंडित जी हाथ जोड़ के सेठ और सेठानी से बोले - माफ करना एक बात बोलूँ आप दोनों से - भगवान उस बुजुर्ग आदमी से नाराज़ नहीं हुए हैं, बल्की आप दोनों से रूष्ट होकर भगवान आपको ये डंड दिया है।
सेठानी बोली पर हमने क्या किया है ?
पंडितजी बोले क्या किया है आपने ? मैं आपको बताता हूं
आप इतने महँंगे उपहार ले शके आये भगवान को चढानें के लिये
पर ये आपने नहीं सोचा के हर इन्सान के अंदर भगवान बसते हैं।
आप अन्दर भगवान की मूर्ती पर भेंट चढ़ाना चाहते थे,पर यहां तो खुद उस बुजुर्ग आदमी के रूप में भगवान आपसे प्रसाद ग्रहण करने आये थे। उसी को अगर आपने खुश होकर कुछ खाने को दे दिया होता तो आपके उपहार भगवान तक खुद ही पहुंच जाते।
किसी गरीब को खिलाना तो स्वयं ईश्वर को भोजन कराने के सामान होता है।
आपने उसका तिरस्कार कर दिया तो फिर ईश्वर आपकी भेंट कैसे स्वीकार करते.....
सब जानते है किे श्री कृष्ण को सुदामा के प्रेम से चढा़ये एक मुटठी चावल सबसे ज़्यादा प्यारे लगे थे
अरे भगवान जो पूरी दुनिया के स्वामी है, जो सबको सब कुछ देने वाले हैं, उन्हें हमारे कीमती उपहार क्या करने हैं,वो तो प्यार से चढा़ये एक फूल, प्यार से चढा़ये एक बेल पत्र से ही खुश हो जाते हैं।
उन्हें मंहगें फल और मिठाईयां चढा़ के उन के ऊपर एहसान करने की हमें कोई आवश्यकता नहीं है।
इससे अच्छा तो किसी गरीब को कुछ खिला दीजिये,ईश्वर खुद ही खुश होकर आपकी झोली खुशियों से भर देगें।
और हाँं, अगर किसी माँंगने वाले को कुछ दे नहीं सकते तो उसका अपमान भी मत कीजिए क्यों कि वो अपनी मर्जी़ से गरीब नहीं बना है।
और कहते हैं ना - ईश्वर की लीला बडी़ न्यारी होती है, वो कब किसी भिखारी को राजा बना दे और कब किसी राजा को भिखारी कोई नहीं कह सकता।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
दिल को छू लेने वाला प्रसंग
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
एक बुजुर्ग आदमी बुखार से ठिठुरता और भूखा प्यासा शिव मंदिर के बाहर बैठा था।
तभी वहां पर नगर के सेठ अपनी सेठानी के साथ एक बहुत ही लंबी और मंहगी कार से उतरे।
उनके पीछे उनके नौकरों की कतार थी।
एक नौकर ने फल पकडे़ हुए थे
दूसरे नौकर ने फूल पकडे़ थे
तीसरे नौकर ने हीरे और जवाहरात के थाल पकडे़ हुए थे।
चौथे नौकर ने पंडित जी को दान देने के लिए मलमल के 3 जोडी़ धोती कुरता और पांचवें नौकर ने मिठाईयों के थाल पकडे़ थे।
पंडित जी ने उन्हें आता देखा तो दौड़ के उनके स्वागत के लिए बाहर आ गए।
बोले आईये आईये सेठ जी, आपके यहां पधारने से तो हम धन्य हो गए।
सेठ जी ने नौकरों से कहा जाओ तुम सब अदंर जाके थाल रख दो।
हम पूजा पाठ सम्पन्न करने के बाद भगवान शिव को सारी भेंट समर्पित करेंगें।
बाहर बैठा बुजुर्ग आदमी ये सब देख रहा था।
उसने सेठ जी से कहा - मालिक दो दिनों से भूखा हूंँ,थोडी़ मिठाई और फल मुझे भी दे दो खाने को।
सेठ जी ने उसकी बात को अनसुना कर दिया।
बुजुर्ग आदमी ने फिर सेठानी से कहा - ओ मेम साहब थोडा़ कुछ खाने को मुझे भी दे दो मुझे भूख से चक्कर आ रहे हैं।
सेठानी चिढ़ के बोली बाबा, ये सारी भेटें तो भगवान को चढानें के लिये हैं। तुम्हें नहीं दे सकते, अभी हम मंदिर के अंदर घुसे भी नहीं हैं और तुमने बीच में ही टोक लगा दी।
सेठ जी गुस्से में बोले, लो पूजा से पहले ही टोक लग गई, पता नहीं अब पूजा ठीक से संपन्न होगी भी या नहीं।
कितने भक्ती भाव से अंदर जाने कि सोच रहे थे और इसने अर्चन डाल दी।
पंडित जी बोले शांत हो जाइये सेठ जी,इतना गुस्सा मत होईये।
अरे क्या शांत हो जाइये पंडितजी
आपको पता है - पूरे शहर के सबसे महँंगे फल और मिठाईयां हमने खरीदे थे प्रभु को चढानें के लिए और अभी चढायें भी नहीं कि पहले ही अडचन आ गई।
सारा का सारा मूड ही खराब हो गया,अब बताओ भगवान को चढानें से पहले इसको दे दें क्या ?
पंडितजी बोले अरे पागल है ये आदमी,आप इसके पीछे अपना मुड मत खराब करिये सेठजी चलिये आप अंदर चलिये, मैं इसको समझा देता हूँ। आप सेठानी जी के साथ अंदर जाईये।
सेठ और सेठानी बुजुर्ग आदमी को कोसते हुये अंदर चले गये।
पंडित जी बुजुर्ग आदमी के पास गए और बोले जा के कोने में बैठ जाओ, जब ये लोग चले जायेगें तब मैं तुम्हें कुछ खाने को दे जाऊंगा।
बुजुर्ग आदमी आसूं बहाता हुआ कोने में बैठ गया।
अंदर जाकर सेठ ने भगवान शिव को प्रणाम किया और जैसे ही आरती के लिए थाल लेकर आरती करने लगे,तो आरती का थाल उनके हाथ से छूट के नीचे गिर गया।
वो हैरान रह गए
पर पंडित जी दूसरा आरती का थाल ले आये।
जब पूजा सम्पन्न हुई तो सेठ जी ने थाल मँगवाई भगवान को भेंट चढानें को, पर जैसे ही भेंट चढानें लगे वैसे ही तेज़ भूकंप आना शुरू हो गया और सारे के सारे थाल ज़मीन पर गिर गए।
सेठ जी थाल उठाने लगे, जैसे ही उन्होनें थाल ज़मीन से उठाना चाहा तो अचानक उनके दोनों हाथ टेढे हो गए मानों हाथों को लकवा मार गया हो।
ये देखते ही सेठानी फूट फूट कर रोने लगी,बोली पंडितजी देखा आपने, मुझे लगता है उस बाहर बैठे बूढें से नाराज़ होकर ही भगवान ने हमें दण्ड दिया है।
उसी बूढे़ की अडचन डालने की वजह से भगवान हमसे नाराज़ हो गए।
सेठ जी बोले हाँ उसी की टोक लगाने की वजह से भगवान ने हमारी पूजा स्वीकार नहीं की।
सेठानी बोली, क्या हो गया है इनके दोनों हाथों को, अचानक से हाथों को लकवा कैसे मार गया,
इनके हाथ टेढे कैसे हो गए, अब क्या करूं मैं ? ज़ोर जो़र से रोने लगी -
पंडित जी हाथ जोड़ के सेठ और सेठानी से बोले - माफ करना एक बात बोलूँ आप दोनों से - भगवान उस बुजुर्ग आदमी से नाराज़ नहीं हुए हैं, बल्की आप दोनों से रूष्ट होकर भगवान आपको ये डंड दिया है।
सेठानी बोली पर हमने क्या किया है ?
पंडितजी बोले क्या किया है आपने ? मैं आपको बताता हूं
आप इतने महँंगे उपहार ले शके आये भगवान को चढानें के लिये
पर ये आपने नहीं सोचा के हर इन्सान के अंदर भगवान बसते हैं।
आप अन्दर भगवान की मूर्ती पर भेंट चढ़ाना चाहते थे,पर यहां तो खुद उस बुजुर्ग आदमी के रूप में भगवान आपसे प्रसाद ग्रहण करने आये थे। उसी को अगर आपने खुश होकर कुछ खाने को दे दिया होता तो आपके उपहार भगवान तक खुद ही पहुंच जाते।
किसी गरीब को खिलाना तो स्वयं ईश्वर को भोजन कराने के सामान होता है।
आपने उसका तिरस्कार कर दिया तो फिर ईश्वर आपकी भेंट कैसे स्वीकार करते.....
सब जानते है किे श्री कृष्ण को सुदामा के प्रेम से चढा़ये एक मुटठी चावल सबसे ज़्यादा प्यारे लगे थे
अरे भगवान जो पूरी दुनिया के स्वामी है, जो सबको सब कुछ देने वाले हैं, उन्हें हमारे कीमती उपहार क्या करने हैं,वो तो प्यार से चढा़ये एक फूल, प्यार से चढा़ये एक बेल पत्र से ही खुश हो जाते हैं।
उन्हें मंहगें फल और मिठाईयां चढा़ के उन के ऊपर एहसान करने की हमें कोई आवश्यकता नहीं है।
इससे अच्छा तो किसी गरीब को कुछ खिला दीजिये,ईश्वर खुद ही खुश होकर आपकी झोली खुशियों से भर देगें।
और हाँं, अगर किसी माँंगने वाले को कुछ दे नहीं सकते तो उसका अपमान भी मत कीजिए क्यों कि वो अपनी मर्जी़ से गरीब नहीं बना है।
और कहते हैं ना - ईश्वर की लीला बडी़ न्यारी होती है, वो कब किसी भिखारी को राजा बना दे और कब किसी राजा को भिखारी कोई नहीं कह सकता।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें