एक बहुत सुदंर कथा
#राधा_रानी_जी_की_पोशाक
बहुत समय पहले की बात है, बरसाने में एक संत जी हुआ करते थे। वे हर पल राधा रानी जी का भजन, नाम समिरन किया करते थे। वह रोज राधा रानी के दर्शन करने बरसाने महल में जाया करते, यह एक प्रकार की उनकी दिनचर्या बन गई थी। तो एक बार हुआ कि वे जब राधा रानी के महल में दर्शन करने पहुचे तो उन्होंने देखा कि एक भक्त श्री राधा रानी के लिए पोशाक लेकर आया है, और वह श्री जू को पोशाक अर्पित कर रहें है। यह देख संत सोचने लगे यहाँ सभी राधा रानी के लिए कुछ न कुछ लेकर आते है, कोई पोशाक लेकर आता है, कोई फूल आता है, सभी अपने भाव के अनुसार राधा रानी को कुछ न कुछ अवश्य अर्पित करते है। और एक मैं अभागा हूॅ जो मैंने आज तक राधा रानी जी को कुछ भी अर्पित नहीं किया है। संत के मन एक भाव आया, उन्हें भी जिज्ञासा हुई कि वे भी श्री राधा रानी जी को कुछ अर्पित करे।
इस प्रकार उस संत के मन में भाव आया और उन्होंने निर्णय किया कि वे भी राधा रानी के लिए एक पोशाक अर्पित करेंगे, वह भी स्वयं अपने हाथों से बना कर। संत पोशाक बनाने की तैयारी में जूट गये, वें पूरे दिन सच्ची श्रद्धा व भाव से पोशाक बनाने में लगे रहते और इसी तरह वे कुछ ही दिन में एक बहुत ही सुन्दर सी पोशाक बना डाले।
जब पोशाक तैयार हो गई तो वे पोशाक को ले श्री राधा रानी के दर्शन कर उन्हें अर्पित करने महल की ओर जाने लगे। जैस ही वे महल की सीढी चढनें लगे, सीढियों के बीच में ही एक एक छोटी सी बच्ची नें संत से कहने लगी। बाबा ज्यों ले कहाॅ लेकर जा रहे हो?
बच्ची की बात सुन संत कहते है, लाली ये राधा रानी के लिए मैंने पोशाक बनायी है, जो उनको ही देने जा रहा हूँ। संत के इतना कहने पर लाली ने कहाॅ बाबा राधा रानी के पास तो बहुत सारी पोशाक है, तो बाबा यू पोशाक माकू देदे।
संत कहते है - बेटी तोकू मैं बाजार से दूसरी दिलवा दूंगा। ये तो मैं अपने हाथों से बना राधा रानी के लिए आया हूॅ।
छोटी सी लाली भी नहीं मानी उसने संत के कपड़े पकड़ बोली - बाबा यो मोकूं देदे। संत भी जिद में ये नहीं दूंगा। संत के इतना कहते ही बच्ची से संत के हाथे से पोशाक छुड़ाकर भाग गई। पोशाक ले जाने से संत बहुत दुःखी हो गए, और सोचने लगे इस बुढापे में बच्ची को कहाॅ ढूंढे। यह सोच - सोच कर सीढियों में बैठ रोने लगे, तभी एक पास से गुजर रहे संत ने पूछ लिया क्यों रो रहें हो?
तब वे दूसरे संत को अपनी सारी बात बताये इतने परिश्रम से मैंने राधा रानी के लिए एक पोशाक बनाई थी, उसे एक छोटी सी बच्ची लेकर भाग गई। अब क्या करू कहाॅ जाऊ उस बच्ची को ढूढंने।
यह सुन दूसरे संत ने कहाॅ अब हो गया, रोने से क्या होगा । आप चलों ऊपर चल दर्शन कर लो। संत दुःखी मन से दर्शन करने जाते सोचने लगे शायद राधा रानी जी को मेरे हाथ की बनी पोशाक पसंद नहीं थी, इसलिए वह बच्ची पोशाक लेकर चली गई| संत यह सोचते दुःखी मन से ऊपर जा रहे थे, जैसे ही वे मंदिर पर पँहुचे और श्रृंगार के बाद श्री जी के दर्शन के लिये पट खोले गये तो संत ने देखा की यह तो वही पोशाक है, जिसे मैंने अपने हाथ से बनाया था, और जिसे वह छोटी सी बच्ची लेकर भाग गई थी|
संत यह देख अचंभित रह गये कि वही राधा रानी के पोशाक धारण कर विराजमान है, यह देख संत के अश्रु बहने लगे और मन ही मन राधा रानी से कहने लगे हे राधा रानी मैं तो यह पोशाक आपके लिये ही लाया था, लेकिन आपने तो इंतजार भी नही किया, श्री राधा रानी जी ने कहाँ बाबा वह केवल पोशाक नही था, उस पोशाक में तुम्हारा प्रेम छुपा था, और मुझे जो भी प्रेम से अर्पण करना चाहता है न तो मैं स्वयं उसे लेने आ जाती हूँ | भगवान भी प्रेम, भाव, श्रध्दा के प्यासे है, यदि आप पूरी निष्ठा से उन्हें कुछ भी अर्पण करेंगे तो उन्हें सब स्वीकार है
राधे राधे बोलना पडे़गा
#राधा_रानी_जी_की_पोशाक
बहुत समय पहले की बात है, बरसाने में एक संत जी हुआ करते थे। वे हर पल राधा रानी जी का भजन, नाम समिरन किया करते थे। वह रोज राधा रानी के दर्शन करने बरसाने महल में जाया करते, यह एक प्रकार की उनकी दिनचर्या बन गई थी। तो एक बार हुआ कि वे जब राधा रानी के महल में दर्शन करने पहुचे तो उन्होंने देखा कि एक भक्त श्री राधा रानी के लिए पोशाक लेकर आया है, और वह श्री जू को पोशाक अर्पित कर रहें है। यह देख संत सोचने लगे यहाँ सभी राधा रानी के लिए कुछ न कुछ लेकर आते है, कोई पोशाक लेकर आता है, कोई फूल आता है, सभी अपने भाव के अनुसार राधा रानी को कुछ न कुछ अवश्य अर्पित करते है। और एक मैं अभागा हूॅ जो मैंने आज तक राधा रानी जी को कुछ भी अर्पित नहीं किया है। संत के मन एक भाव आया, उन्हें भी जिज्ञासा हुई कि वे भी श्री राधा रानी जी को कुछ अर्पित करे।
इस प्रकार उस संत के मन में भाव आया और उन्होंने निर्णय किया कि वे भी राधा रानी के लिए एक पोशाक अर्पित करेंगे, वह भी स्वयं अपने हाथों से बना कर। संत पोशाक बनाने की तैयारी में जूट गये, वें पूरे दिन सच्ची श्रद्धा व भाव से पोशाक बनाने में लगे रहते और इसी तरह वे कुछ ही दिन में एक बहुत ही सुन्दर सी पोशाक बना डाले।
जब पोशाक तैयार हो गई तो वे पोशाक को ले श्री राधा रानी के दर्शन कर उन्हें अर्पित करने महल की ओर जाने लगे। जैस ही वे महल की सीढी चढनें लगे, सीढियों के बीच में ही एक एक छोटी सी बच्ची नें संत से कहने लगी। बाबा ज्यों ले कहाॅ लेकर जा रहे हो?
बच्ची की बात सुन संत कहते है, लाली ये राधा रानी के लिए मैंने पोशाक बनायी है, जो उनको ही देने जा रहा हूँ। संत के इतना कहने पर लाली ने कहाॅ बाबा राधा रानी के पास तो बहुत सारी पोशाक है, तो बाबा यू पोशाक माकू देदे।
संत कहते है - बेटी तोकू मैं बाजार से दूसरी दिलवा दूंगा। ये तो मैं अपने हाथों से बना राधा रानी के लिए आया हूॅ।
छोटी सी लाली भी नहीं मानी उसने संत के कपड़े पकड़ बोली - बाबा यो मोकूं देदे। संत भी जिद में ये नहीं दूंगा। संत के इतना कहते ही बच्ची से संत के हाथे से पोशाक छुड़ाकर भाग गई। पोशाक ले जाने से संत बहुत दुःखी हो गए, और सोचने लगे इस बुढापे में बच्ची को कहाॅ ढूंढे। यह सोच - सोच कर सीढियों में बैठ रोने लगे, तभी एक पास से गुजर रहे संत ने पूछ लिया क्यों रो रहें हो?
तब वे दूसरे संत को अपनी सारी बात बताये इतने परिश्रम से मैंने राधा रानी के लिए एक पोशाक बनाई थी, उसे एक छोटी सी बच्ची लेकर भाग गई। अब क्या करू कहाॅ जाऊ उस बच्ची को ढूढंने।
यह सुन दूसरे संत ने कहाॅ अब हो गया, रोने से क्या होगा । आप चलों ऊपर चल दर्शन कर लो। संत दुःखी मन से दर्शन करने जाते सोचने लगे शायद राधा रानी जी को मेरे हाथ की बनी पोशाक पसंद नहीं थी, इसलिए वह बच्ची पोशाक लेकर चली गई| संत यह सोचते दुःखी मन से ऊपर जा रहे थे, जैसे ही वे मंदिर पर पँहुचे और श्रृंगार के बाद श्री जी के दर्शन के लिये पट खोले गये तो संत ने देखा की यह तो वही पोशाक है, जिसे मैंने अपने हाथ से बनाया था, और जिसे वह छोटी सी बच्ची लेकर भाग गई थी|
संत यह देख अचंभित रह गये कि वही राधा रानी के पोशाक धारण कर विराजमान है, यह देख संत के अश्रु बहने लगे और मन ही मन राधा रानी से कहने लगे हे राधा रानी मैं तो यह पोशाक आपके लिये ही लाया था, लेकिन आपने तो इंतजार भी नही किया, श्री राधा रानी जी ने कहाँ बाबा वह केवल पोशाक नही था, उस पोशाक में तुम्हारा प्रेम छुपा था, और मुझे जो भी प्रेम से अर्पण करना चाहता है न तो मैं स्वयं उसे लेने आ जाती हूँ | भगवान भी प्रेम, भाव, श्रध्दा के प्यासे है, यदि आप पूरी निष्ठा से उन्हें कुछ भी अर्पण करेंगे तो उन्हें सब स्वीकार है
राधे राधे बोलना पडे़गा
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