लघुकथा- वृद्धाश्रम

लघुकथा-
वृद्धाश्रम

एक बार एक बुजुर्ग की तबियत खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा।

पता लगा कि उन्हें कोई गम्भीर बीमारी है हालांकि ये छूत की बीमारी नही है, पर फिर भी इनका बहुत ध्यान रखना पड़ेगा।

कुछ समय बाद वो घर आए। पूरे समय के लिए नौकर और नर्स रख लिए गए।

धीरे-धीरे पोतों ने कमरे में आना बंद कर दिया। बेटा-बहू भी ज्यादातर अपने कमरे में रहते।

बुजुर्ग को अच्छा नहीं लगता था लेकिन कुछ कहते नही थे।

एक दिन वो कमरे के बाहर टहल रहे थे तभी उनके बेटे-बहू की आवाज़ आई। बहू कह रही थी कि पिताजी को किसी वृद्धाश्रम या किसी अस्पताल के प्राइवेट कमरे एडमिट करा दें कहीं बच्चे भी बीमार न हो जाए,

बेटे ने कहा कह तो तुम ठीक रही हो, आज ही पिताजी से बात करूंगा!

पिता चुपचाप अपने कमरे में लौटा, सुनकर दुख तो बहुत हुआ पर उन्होंने मन ही मन कुछ सोच लिया।

शाम जब बेटा कमरे में आया तो पिताजी बोले अरे मैं तुम्हें ही याद कर रहा था कुछ बात करनी है। बेटा बोला पिताजी मुझे भी आपसे कुछ बात करनी है। आप बताओ क्या बात हैं!

पिताजी बोले तुम्हें तो पता ही है कि मेरी तबियत ठीक नहीं रहती, इसलिए अब मै चाहता हूं कि मैं अपना बचा जीवन मेरे जैसे बीमार, असहाय, बेसहारा बुजुर्गों के साथ बिताऊं।

सुनते ही बेटा मन ही मन खुश हो गया कि उसे तो कहने की जरूरत नहीं पड़ी। पर दिखावे के लिए उसने कहा, ये क्या कह रहे हो पिताजी आपको यहां रहने में क्या दिक्कत है?

तब बुजुर्ग बोले नही बेटे, मुझे यहां रहने में कोई तकलीफ नहीं लेकिन यह कहने में मुझे तकलीफ हो रही है कि तुम अब अपने रहने की व्यवस्था कहीं और कर लो, मैने निश्चय कर लिया है कि मै इस बंगले को वृद्धाश्रम बनाऊंगा।
और असहाय और बेसहारों की देखरेख करते हुए अपना जीवन व्यतीत करूंगा। अरे हाँ तुम भी कुछ कहना चाहते थे बताओ क्या बात थी…!!!!

कमरे में चुप्पी छा गई थी…

कभी-कभी जीवन में सख्त कदम उठाने की जरूरत होती है...!!

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