मॉडर्न पैरेंट्स

मॉडर्न पैरेंट्स
आज फेशबुक पर अपने संतान की वजह से दुःखी एक पिता का पोस्ट पढ़ा इसलिए मैं अपने एक पुराने पोस्ट को समय की जरूरत के हिसाब से संशोधित कर आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।पोस्ट लम्बा जरूर है , अगर आप एक सजग अभिभावक हैं तो समय निकालकर इस पोस्ट को जरूर पढ़ें व अच्छी लगे तो दूसरे को भी भेजें।
एक बार किसी बहेलिये को एक बहुत सुन्दर पक्षी मिला।हालांकि बाज की प्रजाति का वह पक्षी अभी बच्चा ही था पर वह इतना खूबसूरत था कि जो भी उसे देखता , बस देखता ही रह जाता।बहेलिया पक्षियों को अपने जाल में फंसाकर उसे बाजार में बेच आता था।यही उसकी रोजी - रोटी का एक मात्र साधन था।बहेलिये ने उस सुंदर पक्षी को देखकर सोचा कि अगर मैं इसे बाजार में किसी आम आदमी को बेचता हूं तो दो चार रूपये ही मिलेंगे पर अगर मैं अपने राज्य के राजा को इसे उपहार स्वरूप भेंट कर दूं तो वह भी बदले में पुरस्कार के रूप में ढ़ेर सारी स्वर्णमुद्रांए देगा।
बहेलिये ने वैसा ही किया।राजा उस पक्षी के बच्चे को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ।उसने घर के सामने एक पेड़ की मजबूत डाली पर उसका घोंसला बनवा दिया और उसकी देख-रेख के लिए एक आदमी नियुक्त कर दिया।उस आदमी का काम था वक्त - वक्त पर उसके घोंसले में दाना पानी देना , और उसके घोंसले की साफ - सफाई करना।
समय के साथ - साथ बाज का वह बच्चा बड़ा होने लगा।जब वह बड़ा हो गया तो राजा एक दिन उसे देखने आया।राजा ने नोटिस किया कि वह बाज सब कुछ तो कर रहा है पर उड़ नहीं रहा।राजा के दरबारियों ने उसे उड़ाने की बहुत केशिश की पर वह उसी डाल पर अपनी जगह से उड़कर उसी डाल पर दूसरी जगह जाकर बैठ जाता।बाज को उड़ाने की हर मुमकिन कोशिश की गयी पर सारी कोशिशें बेकार गयी।

जब बाज को उड़ना सिखाने की हर कोशिश बेकार चली गयी तो अंत में राजा ने घोषणा करवा दी कि जो इस पक्षी को उड़ना सिखा देगा , जो इसे उड़ाकर दिखा देगा उसे दस हजार स्वर्ण मुद्रांए पुरस्कार स्वरूप दी जाएगी।राजा की घोषणा को सुन दूर - दूर से पक्षी विशेषज्ञ पहुंचने लगे और सभी ने उसे अपने - अपने ढ़ंग से उड़ाने की बहुत कोशिश की।कुछ ने तो एक लम्बी लाठी को लेकर उसके पेट में घुसेड़ कर उसे हल्की चोट पहुंचाने की भी कोशिश की ताकि पीड़ा के कारण वह वहां से उड़ जाय ।इस प्रयास में बाज को सचमुच में चोट पहुंची भी , वह थोड़ा घायल भी हो गया पर वह हर बार की तरह अपने स्थान से उड़कर वापस उसी डाल पर आकर बैठ जाता।
अंत में एक दिन एक बूढ़ा आदमी राजा के पास आया और उसने दावा किया कि वह इसे शर्तिया उड़ा कर दिखाएगा।राजा अब बड़े - बड़े दावा करने वालों से तंग आ चुका था।हर प्रयास निष्फल होते देख उसने मान लिया था कि अब यह बाज कभी नहीं उड़ पाएगा।अतः उसने बड़े ही अनमने ढ़ंग से उसे आज्ञा दे दी।उस व्यक्ति ने पूरे आत्मविश्वास से कहा कि अगर वह ऐसा नहीं कर पाया तो राजा जो भी दंड देंगे उसे स्वीकार है पर हां , इसे उड़ाने के लिए मुझे इस पेड़ के साथ - साथ इस बगीचे के कुछ और पेड़ों के कुछ डालों को काटने की इजाजत दी जाय।
राजा को अपने बगीचे में लगे खूबसूरत पेड़ों से बहुत लगाव था।वह पेड़ों की डालियों को कटवाकर बगीचे की शोभा को खराब नहीं करवाना चाहता था पर उसे हर हाल में पक्षी को उड़ना भी सिखाना था। राजा ने बहुत सोच विचार कर पेड़ों की डाली कटवाने की आज्ञा तो दे दी पर यह शर्त जोड़ दी कि अगर ऐसा करने पर भी वह पक्षी नहीं उड़ा तो जिस तरह पेड़ की डाली काटी जा रही है , तुम्हारा भी सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा।बूढ़े आदमी ने यह शर्त सहर्ष स्वीकार कर ली।
नियत समय पर आड़ा मंगाया गया और राजा का आदेश पाकर दो लोग उस आड़े से पेड़ की उस डाली को काटने लगे जिस डाल पर वह बाज बैठा था।यह तमाशा देखने के लिए बगीचे में राजा व उसके समस्त दरबारियों समेत सैकड़ों लोग जमा थे।डाली जैसे - जैसे कटती जाती वह थोड़ी सी झुकती भी जाती और हिलने लगती।पक्षी यह देखकर थोड़ा सा उड़ता और फिर उसी डाली पर जाकर बैठ जाता।अंत में वह समय भी आया जब डाली पूरी तरह से कट गयी।डाली जैसे ही कटी वह धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ी।डाली का जमीन पर गिरना था कि बाज में न जाने कहां से इतनी ताकत आ गयी कि वह फौरन वहां से उड़ा और दूर जाकर एक अन्य पेड़ की डाली पर जाकर बैठ गया।जब लकड़हारा उस डाली को काटने पहुंचा तो वह बाज वहां से भी उड़कर और दूर जाकर दूसरे पेड़ की सबसे ऊंची डाली पर जाकर बैठ गया।यानि अब वह उड़ना सीख चुका था।यह देखकर राजा की खुशी का ठिकाना ना रहा।राजा ने उसे ईनाम के अतिरिक्त और भी कई सारे तोहफे दिये।
जब वह बूढ़ा व्यक्ति वहां से जाने लगा तो राजा ने उससे बड़ी विनम्रतापूर्वक पूछा कि बाज उड़ने के लिए ही पैदा होते हैं।बाजों की ऊंची उड़ान विश्वप्रसिद्ध है। इस बाज को उड़ना सिखाने के लिए कई लोगों ने कई तरह के प्रयास किये पर तुम्हें यह डाल काटने की ही क्यों सूझी?
जवाब में बूढ़े व्यक्ति ने कहा कि उस बाज को अपने डाल पर बैठे - बैठे ही सब कुछ मिल जाता था।वह डाल उसका एकमात्र ही सही पर सबसे मजबूत सहारा था।जब तक वह डाल सही सलामत थी ,बाज बिलकुल निश्चिंत था।उसे कुछ करने की कभी जरूरत ही नहीं पड़ी पर जैसे ही उससे यह सहारा छिन गया वह अन्य सहारे की तलाश में निकल पड़ा।
शिक्षा - दोस्तों , यह कहानी आजकल के पैरेन्टस को एक बहुत जबरदस्त सबक दे रही है।आज की तारीख में शादी के चंद वर्षों के भीतर लोग पैरेन्टस तो बन जा रहे पर उन्हें पैरेन्टिंग की कला नहीं मालूम जिस कारण आज के डेट में अधिकांश अभिभावक परेशान हैं।
आजकल लोग खुद तमाम तरह के कष्ट सहकर अपने बच्चे को बड़े ही लाड़ - दुलार से पालते हैं।यह सोचकर उसकी हर छोटी - बड़ी व जायज व नाजायज इच्छाओं को जैसे - तैसे पूरा करते हैं कि एक दिन बेटा भी उनकी वह सभी हसरतें पूरा कर देगा जो उन्होंने उससे लगा रखी है पर आजकल बहुत कम बेटे ही इस बात को समझ पाते हैं।वे मां -बाप से मिलने वाली सुविधाओं पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं।कई तो यहां तक कह देते हैं कि अगर आप मेरी ख्वाहिशें पूरी नहीं कर सकते तो मुझे पैदा ही क्यों किया?मां -बाप उनकी इस सोच के आगे बेबस से हो जाते हैं।
मां -बाप की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर कई लड़के कमाने - खाने की उम्र हो जाने पर भी मां -बाप के सीने से जोंक की तरह चिपके रहते हैं और उनका खून चूसते रहते हैं।जब पढ़ाई करने का समय था तो उन्होंने हर एक चीज में खूब मन लगाया , सिवाय अपनी पढ़ाई के , पर नौकरी उनको सरकारी ही चाहिए , वह भी ए ग्रेड की।छोटी -मोटी नौकरी वे करेंगे भी कैसे?
गलती उनकी नहीं , गलती कहीं ना कहीं हमारी आपकी है।हमने प्यार , दुलार व भावना के वशीभूत होकर उसे कभी एहसास ही नहीं होने दिया कि हम कितनी मेहनत से कमाते हैं।जितनी हमारी सैलरी है उतने का हम उसे मोबाइल खरीद कर दे देते हैं।जितने में पूरे घर का दो महीने का खर्च चल सकता है उतने का लैपटॉप खरीदकर दे देते हैं।जितने में छः महीने तक घर का खर्च चल सकता है उतने की बाइक खरीदकर दे देते हैं।देते समय यह भी नहीं सोचते कि इसे इसकी क्या जरूरत है? कमप्रोमाइज करना हमारे बच्चे जानते ही नहीं क्योंकि उनकी हर जायज व नाजायज फरमाइश हम किसी ना किसी तरह पूरी कर ही देते हैं इसलिए उनके लिए इसकी कोई वैल्यु ही नहीं।
मैं यह नहीं कहता कि आप अपने बच्चे की फरमाइशें पूरी ना करें।उसे मोबाइल , लैपटॉप व बाइक लेकर नहीं दें।आप जरूर दीजिए ।आप नहीं दीजिएगा तो उसे कौन देगा? अतः आप उन्हें यह सब जरूर दें पर देने से पहले यह जरूर सोचें कि उसे इसकी जरूरत है भी या नहीं? उसका काम इसके बिना चल सकता है या नहीं? पड़ोसी के बच्चे का स्कूल दूर है तो उसने बेटे को बाइक दिला दी , आपके बेटे का स्कूल वाकिंग डिस्टेन्स पर है तो आप पड़ोसी को यह दिखाने के लिए अपने बेटे को बाइक लेकर नहीं दें कि तुम्हारा बेटा बाइक से स्कूल जाएगा तो मेरा बेटा पैदल क्यों चलेगा?
आप जब भी बच्चे को कुछ भी लेकर दें तो उसे यह जरूर बतायें कि आपने उसे यह चीज कैसे खरीदकर दी , इस अतिरिक्त खर्च को मेन्टेन करने के लिए आपको क्या परेशानी होगी ताकि बच्चे को पैसे व आपकी मिहनत व त्याग की अहमियत मालूम हो सके वरना आपका बच्चा कभी जिम्मेवार बनना या जिम्मेदारी लेना सीख नहीं पाएगा।
इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह होगा कि वह पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद भी , बीबी बच्चे वाला हो जाने के बाद भी खुद कमाने के बारे में कभी भी सिन्सियरली नहीं सोच पाएगा।वह हमेशा बड़ी कमाई वाली नौकरी के भरोसे बैठा रहेगा।छोटी - मोटी नौकरी या स्वरोजगार के बारे में कभी नहीं सोचेगा।सोचेगा भी कैसे ? जो आदमी मां - बाप की कमाई पर पच्चीस तीस हजार का मोबाइल यूज करता हो , चार पांच हजार की घड़ी व जूते पहनता हो वह किसी के यहां दस पन्द्रह हजार महीने की नौकरी कर भी कैसे सकता है?जिसने घर में कभी अपने हाथ से एक ग्लास पानी तक लेकर ना पीया हो वह बिजनेस की मगजमारी क्यों मोल लेना चाहेगा?
दोस्तों ,आजकल हमारे समाज के सभ्य वर्ग में हर दूसरे - तीसरे घर की कमोबेश यही कहानी है।मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि एकलौते पुत्र वाले मामले में तो हर दस घरों में से नौ घरों की यही कहानी है।कहीं पिता समझदारी दिखाना चाहते हैं तो मां की अंधी ममता पुत्र को सही रास्ते पर आने नहीं देता तो कहीं मां समझदार निकलती है तो पिता मूर्खता करते रहते हैं।
जरा सोचिएगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जैसे धृतराष्ट्र ने पुत्रमोह में अंधे होकर अपना और अपने पुत्रों का सर्वनाश कर डाला ठीक ऐसा ही आजकल हम अपने बच्चों के साथ कर रहे हैं।हमारा जरूरत से ज्यादा लाड़ - प्यार हमारे बच्चों को बिगाड़ रहा है।हमने बचपन से ही उन्हें इतना परावलम्बी बना दिया है कि वे कभी स्वावलम्बी बनने को सोच ही नहीं पाते।
आज फेसबुक पर एक ऐसे ही दुःखी पिता का पोस्ट देखा । पोस्ट कुछ इस तरह से था -

अपनी जिंदगी में एक संघर्ष करने वाला पिता तब हार जाता है जब उनके अपने बच्चे उन पर उंगली उठाने लगते हैं कि वो एक असफल पिता है ।
इस पोस्ट को देखकर मैं अपने आपको रोक नहीं पाया और आपके लिए यह पोस्ट लिखा।
जैसे बाज को अपने एकमात्र सहारा , पेड़ की डाल के कट जाने पर अपनी जान पर खतरा महसूस हुआ , उसे अपनी ताकत व कमजोरियों का पता चल गया और वह अपनी जान बचाने के लिए खुद ही अपने लिए नया सहारा ढूंढ़ने निकल पड़ा ठीक वैसे ही ऐसे बच्चों को दुनियादारी का मर्म तब समझ में आता है जब उनके मां - बाप गुजर जाते हैं।इससे पहले कि कोई भी मां - बाप अपने बच्चे को स्वावलम्बी बनाने के लिए ऐसे किसी कठोर कदम को उठाये ,बच्चों को भी संभल जाना चाहिए।
🙏

1 टिप्पणी:

  1. According to Stanford Medical, It's indeed the one and ONLY reason this country's women live 10 years more and weigh an average of 42 pounds lighter than us.

    (Just so you know, it has absolutely NOTHING to do with genetics or some hard exercise and EVERYTHING about "HOW" they are eating.)

    P.S, What I said is "HOW", not "what"...

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