गरम हवाएँ चल रहीं थीं। आकाश में धूल छा रही थी। एक युवा यात्री रेगिस्तान से गुजर रहा था। उसे रास्तों का भी ठीक से पता नहीं था। रेतीला तूफान इतना तेज था कि उसे अपने घोड़े के कान भी नहीं दिख रहे थे। उसने सोचा मेरे यही ठीक रहेगा कि मैं हवा की दिशा के साथ ही चलूँ। यदि मैं रुकता हूँ तो तेज जहरीली गर्म हवा मेरे फेफड़े ही जला देगी और मेरा शरीर रेत से ढँक जाएगा। और यदि मैं विपरीत दिशा में जाता हूँ तो रास्ता भटक जाऊँगा और मर जाऊँगा।
इसलिए उसने अपने चेहरे को कपड़े से ढँक लिया और हवा की दिशा में चल पड़ा। कुछ समय बाद उसे एक मीनार दिखाई पड़ी। 'आखिर मैंने शैतान हवा से बचने के लिए आश्रय पा ही लिया!' उसने घोड़े सहित मीनार में प्रवेश किया। जब वह अपने चेहरे से रेत झाड़ रहा था तब उसे एक आवाज सुनाई दी-'तुम इंसान हो, जिन्न हो या हवा की शैतानी शक्ति हो?'
युवा यात्री का नाम अली था उसने उत्तर दिया-'मैं मनुष्य हूँ। आप कौन हैं?'अली ने देखा चाँद से चेहरे और गुलाब की पंखड़ी सी नाजुक, लताओं की तरह खूबसूरत लड़की सामने आई। उसे देखते ही अली का मन खिल गया और दिल खो गया। लड़की बोली-'मैं भी मनुष्य हूँ और तूफान में खो गई हूँ। हवा में भटक गई हूँ इस तूफानी मंजर में यहाँ तक आ पहुँची हूँ
अली ने उस सुंदरी से कहा-' यहाँ हमें तब तक शरण लेनी पड़ेगी जब तक तूफानी हवा थम नहीं जाती। मुझे अपना नाम तो बताओ।'
'तुम्हें मेरे नाम से क्या मतलब? तुम एक अनजान मुसाफिर हो मुझे तुमसे बात नहीं करनी चाहिए।' अली का मन उस लड़की का नाम जानने को बेताब हो रहा था और उससे ढेर सारी बातें करने का भी हो रहा था। उसने मीनार के दरवाजे से बाहर इशारा करते हुए कहा- 'देखो हवा में रेत के कण ही कण हैं। ऐसी कोई जगह ही नहीं जहाँ रेत के कण न हों।' 'हाँ तुम्हारी बात सही है।' लड़की ने कहा।
'क्या एक रेत के कण को दूसरे रेत के कण से डरना चाहिए? और एक दूसरे के साथ से बचना चाहिए? रेत के कणों को एक दूसरे से डरना ही नहीं चाहिए क्योंकि वो तो हवा के कारण उड़ रहे हैं। मैं और तुम और कुछ नहीं बस रेत के कण हैं जो हवा में साथ उड़ गए हैं। हमें एक दूसरे से डरना नहीं चाहिए और न ही एक दूसरे से बचना चाहिए क्योंकि हमारे भाग्य में यही लिखा था।' युवा लड़की ने सोचा कि अली ठीक ही कह रहा है। उसने शर्माते हुए कहा-'मेरा नाम सलमा है और मेरे पिता का नाम हुसैन है।'
अली और सलमा ने पूरा दिन दिल खोलकर बातें कीं। तूफान अपने तेवर दिखाता रहा पर उन्हें खबर नहीं थी। घंटों बीत गए, शाम हुई और रात ढलने लगी और अली की आँख लग गई। जब अली उठा तो गहरा अँधियारा फैला हुआ था और सलमा का कहीं पता नहीं था। वह मीनार के दरवाजे पर गया, देखा तो हवा बह रही थी पर तूफान थम गया था। उसने सलमा के पैरों के निशान ढूँढने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ भी नजर नहीं आया।
अली ने जब आँखें खोली तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा उसे बचाने वाली और कोई नहीं सलमा ही थी। वह अली के चहरे को एकटक देख रही थी। वह मुस्कराई और बोली-'जब रेत के दो कण हवा उड़ा ले जाती है और वही हवा उन्हें जुदा भी करती है।
अली बहुत दुःखी हो गया फिर भी वह रोना नहीं चाहता था। उसे चिंता भी हो रही थी कि सलमा कहाँ चली गई। उसने सोचा -'वह अरब की बेटी है और रेगिस्तान में अरब लोग तो रेत के कणों की तरह फैले हुए हैं। रेत केकणों की बात याद आते ही उसे सलमा के साथ गुजारा वक्त याद आ गया, वह और भी बेचैन हो गया। मैं सलमा को कैसे ढूँढ सकूँगा? कितने लोग होंगे जिनका नाम हुसैन होगा और उनकी बेटियों का नाम सलमा होगा। अब मैं क्या करूँ? उसने मुझे बताया भी नहीं कि वो कहाँ रहती है। दो रेत के कण तूफान में मिले और बिछुड़ गए। अब उन्हें फिर से कौन मिलाएगा?'
अली सलमा की तलाश में पागलों की तरह भटकने लगा। जहाँ-तहाँ सलमा के बारे में पूछता। सलमा के विछोह में वह बेहद दुखी हो गया। उसके बाल उलझ गए, कपड़े फट गए दाढ़ी लंबी हो गई। जिस भी गाँव जाता लोगों से एक ही प्रश्न पूछता-'हुसैन यहीं रहते हैं? जिनकी बेटी का नाम सलमा है?' लोग समझते यह आदमी पागल हो गया है और उसका मजाक बनाते- 'कितने लोग होंगे जिनका नाम हुसैन होगा और उनकी बेटी का नाम सलमा होगा। अब हमें क्या पता यह किस सलमा को तलाश कर रहा है?'
अली शहर से शहर और कस्बे से कस्बे घूमता रहा। न तो उसने कोई काम किया न ही कोई व्यवसाय अपनाया, बस वह तो अपने खोए प्यार के बारे में ही सोचता रहता। वह बहुत दुबला हो गया और उसके घोड़े की भी हालत खराब थी। एक दिन जोर की बरसात आई। नदी में पानी नहीं समाया और बाढ़ आ गई। अली और उसका घोड़ा पानी में डूबते-उतराते एक टीले पर चढ़ गए। उसके फेफड़ों में पानी भर गया था और भूख के मारे उसके पेट में खिंचाव हो रहा था। टीले पर पहुँचकर लगा कि अब उसके प्राण गए, उसे बेहोशी आने लगी। लेकिन तभी एक युवा लड़की ने उसके पेट से पानी निकाला और उसके घोड़े को भी खींचकर बचा लिया।
अली ने जब आँखें खोली तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा उसे बचाने वाली और कोई नहीं सलमा ही थी। वह अली के चहरे को एकटक देख रही थी। वह मुस्कराई और बोली-'जब रेत के दो कण हवा उड़ा ले जाती है और वही हवा उन्हें जुदा भी करती है। लेकिन जब दो रेत के कण एक दूसरे को पा लेते हैं तो वे हमेशा एक दूसरे के साथ रहते हैं और कभी जुदा नहीं होते!'
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