एक' सेठ "कृष्ण" जी का परम भक्त था,
निरंतर उनका जाप, और सदैव उनको अपने दिल में बसाए रखता था,
वो रोज स्वादिष्ट पकवान बना कर कृष्ण जी की मंदिर निकलता पर रास्तें में ही उसे नींद आ जाती और उसके पकवान चोरी हो जाते,
वहाँ बहुत दुखी होता और कान्हा से शिकायत करते हुये कहता हे_
राधे ऐसा क्यूँ होता हैं
मैं आपको भोग क्यू नही लगा पाता हूँ
कान्हा कहते हे_वत्स दानें_दानें पे लिखा हैं खाने वाले का नाम,
वो मेरे नसीब में नही हैं,
इसलिए मुज तक नही पहुंचता,
सेठ थोड़ा गुस्सें से कहता हैं ऐसा नही हैं, प्रभु कल मैं आपको भोग लगाकर ही रहूंगा आप देख लेना,
और सेठ चला जाता हैं.....
.दूसरे दिन सेठ सुबह_सुबह जल्दी नहा धोकर तैयार हो जाता हैं,
और अपनी पत्नी सेचार डब्बें भर बढिया_बढिया स्वादिष्ट पकवान बनाता हैं,
और उसे लेकर मंदिर के लिए निकल पड़ता हैं,
और रास्तें भर सोचता हैं, आज जो भी हो जाए सोऊगा नही
कान्हाको भोग लगाकर रहूंगा,...
मंदिर के रास्तें में ही उसे एक भूखा बच्चा दिखाई देता हैं,
और वो सेठ के पास आकर हाथ फैलातें हुये कुछ देने की गुहार लगाता हैं,
सेठ उसे ऊपर से नीचे तक देखता हैं एक 5_6 साल का बच्चा हड्डियों का ढाँचा उसे उस पर तरस आ जाता हैं और वो एक लड्डू निकाल के उस बच्चें को दे देता हैं,
जैसे ही वहाँ उस बच्चें को लड्डू देता हैं,
बहुत से बच्चों की भीड़ लग जाती हैं,
ना जाने कितने दिनो के खाए पीए नही,
सेठ को उन पर करूणा आ जाती है उन सब को पकवानबाँटने लगता हैं,
देखते ही देखते वो सारे पकवान बाँट देता हैं,
फिर उसे याद आता हैं,
आज तो मैंने राधें को भोग लगाने का वादा किया था,
पर मंदिर पहुंचने से पहलेही मैंने भोग खत्म कर दिया,
अधूरा सा मन लेकर वहाँ मंदिर पहुँच जाता हैं,
और कान्हा की मूर्ति के सामने हाथ जोड़े बैठ जाता हैं...
"कान्हा प्रकट होते हैं और सेठ को चिढ़ाते हुये कहते हैं,
लाओ जल्दी लाओ मेरा भोग मुझे बहुत भूख लगी हैं,
मुझे पकवान खिलाओं,सेठ सारा कम्र कान्हा को बता देता हैं,
कान्हा मुस्कुराते हुये कहते हैं,
मैंनेतुमसे कहा था ना,
#दानें_दानें_पर_लिखा_हैं_ख
जिसका नाम था उसने खा लिया तुम क्यू व्यर्थ चिंता करते हो,
सेठ कहता हैं, प्रभु मैंने बड़े अंहकार से कहा था,
आज आपको भोग लगाऊंगा पर मुजे उन बच्चों की करूणा देखी नही गयी, और मैं सब भूल गया,
कान्हा फिर मुस्कुराते और कहते हैं, चलो आओ मेरे साथ,
और वो सेठ को उन बच्चों केपास ले जाते हैं जहाँ सेठ ने उन्हें खाना खिलाया था,
और सेठ से कहते हैं जरा देखो, कुछ नजर आ रहा हैं...
"सेठ" की ऑखों से ऑसूओं का सैलाब बहने लगता हैं,
स्वंय बाँके_बिहारी लाल, उन भूखे बच्चों के बीच में खाना के लिए लड़ते नजर आते हैं,
कान्हा कहते हैं वही वो पहला बच्चा हैं जिसकी तुमने भूख मिटाई,
मैं हर जीव में हूँ,
अलग_अलग भेष में,
अलग_अलग कलाकारी में,
अगर तुम्हें लगें मैं ये काम इसके लिए कर रहा था,
पर वो दूसरे के लिए हो जाए,
तो उसे मेरी ही इच्छा समझना,
क्यूकि मैं तो हर कही हूँ,
बस दानें नसीब की जगह से खाता हूँ,
जिस_जिस जगह नसीब का दाना हो वहाँ पहुँच जाता हूँ,
फिर इसको तुम क्या कोई भी नही रोक सकता,
क्यूकि नसीब का दाना,
नसीब वाले तक कैसे भी पहुँच जाता हैं,
चाहें तुम उसे देना चाहों या ना देना चाहों
अगर उसके नसीब का हैं,
तो उसे प्राप्त जरूर होगा....
"सेठ" कान्हा के चरणों में गिर जाता हैं,
और कहता हैं आपकी माया,
आप ही जानें,
प्रभु मुस्कुराते हैं
और कहते हैं कल मेरा भोग मुझे ही देना दूसरों को नही,
प्रभु और भक्त हंसने लगते हैं.....!!
"आप लोगो के भी साथ ऐसा कई बार हुआ होगा मित्रों,
किसी और का खाना, या कोई और चीज किसी और को मिल गयी,
पर आप कभी इस पर गुस्सा ना करें,
ये सब प्रभु की माया हैं,
उसकी हर इच्छा में उनका धन्यवाद करें"..
."मुरली वाले की जय हों"
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