प्रथम शिक्षा - बुरी संगति का परिणाम।
यह हम सब जानते हैं की कैकेई भगवान राम को अपने पुत्र भरत से अधिक प्रेम करती थी लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि कैकई के अंदर भगवान राम की लिए अचानक ही ईर्ष्या की भावना आ गई यह केवल मंथरा के संगति का असर था इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें जीवन में सदैव अच्छी संगति को ही चुनना चाहिए।
द्वितीय शिक्षा - सेवा का भाव ।
सेवा भाव एक महत्वपूर्ण शिक्षा है जो हमे भगवान राम से मिलती है। पद का लोभ नहीं बल्कि अपने पिता के लिए सेवा का भाव ही भगवान राम के राजा बनने का कारण था।
राम अपने पिता के आज्ञा पर ही बिना किसी आपत्ति के वनवास के लिए चले गए।
दोस्तो हमे भी अपने स्वभाव में सेवा भाव लाना चाहिए।
माता पिता की प्रसन्नता में हीं हमारी प्रसन्नता है।
तृतीय शिक्षा - भगवान के प्रति समर्पण ।
राम या आराम एक अत्यंत भावुक छड़ जब सभी अयोध्या निवासी एक आराम देह जीवन को त्याग कर भगवान राम के साथ वनवास जाने के लिए तैयार थे।
अयोध्या के लोगो से हमे भगवान के प्रति समर्पण की शिक्षा मिलती है। यदि भगवान हमारे साथ है तो संसार मे हमे कोई हानि नही पहुँचा सकता।
चतुर्थ शिक्षा - भक्ति मार्ग में आलस्य त्याग।
यह सत्य है कि भगवान राम अयोध्यावासियों के लिए अत्यधिक प्रिय थे। इसलिए भगवान अयोध्या से उस समय गए जब सब सोये हुए थे। इसलिए ही कहा जाता है कि आलस्य से भगवान नही मिलते। बल्कि हमे भगवान को पाने के लिए तप करना पड़ता है।
पंचम शिक्षा - भगवान की प्रसन्नता सर्वोच्च ।
क्या आप जानते है ? कि भरत के लिए शासन करने से अधिक सरल था भगवान राम के साथ वन में निवास करना।
परंतु भरत ने शासन केवल भगवान को प्रसन्न करने के लिए चुना।
इससे यह शिक्षा मिलती है - कि हमे अपनी प्रसन्नता नही यद्यपि भगवान को प्रसन्न करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
भगवान को प्रसन्न करना ही मोक्ष प्राप्ति का उपाय है।
दोस्तो आशा है आपको हमारा शिक्षाप्रद तथ्य पसंद आया होगा।
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