सास ससुर की जिम्मेदारी है कि बहू को भी बेटी समझे तब ही वह भी उन्हें मां-बाप समझ पाएगी।

हम किसी की बेटी को सुखी रखेंगे तभी हमारी बेटी भी किसी के घर सुखी रह पाएंगी आज तक तुम्हारी चली अब और नहीं वसुधा के ससुर सतीश जी ने वसुधा की सांस गायत्री जी से कहा गायत्री जी स्वभाव से थोड़ी गुस्सैल थी छोटी छोटी बात को बड़ा कर लड़ना अब उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया था कभी-कभी तो बहू के साथ-साथ अपने बेटे और पति को भी डांट देती थी वसुधा जब मां बनने वाली थी गायत्री जी ने उसे एक लंबी लिस्ट थमा दी क्या करना है क्या नहीं करना है डॉक्टर ने कहा शुरुआत के 3 महीने थोड़ी मुश्किल होते हैं आप बहू का थोड़ा ध्यान रखें कोई भारी सामान ना उठाने दी सीढ़ियां ज्यादा ना चढ़ने दे।
गायत्री जी ने डॉक्टर के सामने तो कुछ नहीं कहा और पूरे रास्ते बड़बड़ाते हुए आई।
ये आजकल के डॉक्टर भी बस दिमाग खराब करवाते रहते हैं हमारे टाइम में भी तो बच्चे होते थे आजकल की बहु के नए चोंचले हैं दवाई लो आराम करो।
घर पहुंचे तो सतीश जी ने गायत्री जी से पूछा सब ठीक है ना गायत्री जी पहले ही गुस्से में थी एकदम जोर से बोली आपसे क्या मतलब औरतों की बातें है सब ठीक है..।
हमारे तो घर का काम भी किया बच्चे भी पैदा किए आप बताइए आपकी अम्मा जी ने कभी आराम कराया हमें वसुधा अपने कमरे में चली गई एक तो पहला बच्चा उसे ना खाने की चीजें अच्छी लग रही थी ना पीने की दूसरा सासू मां का ऐसा व्यवहार।
सतीश जी गायत्री से कहते हैं पूछ लो बहू का कुछ खाने का मन हो तो मैं ला देता हूं।
गायत्री जी - बस बस अब ज्यादा ना बिगाड़ो बहू को अभी 1 साल भी नहीं हुआ शादी को अभी से सिर पर भी बिठाओगे तो बुढ़ापे में तंग करेगी।
सतीश जी - तुम ऐसा क्यों सोचती हो वह बेचारी तुम्हारी मर्जी के बिना राकेश के साथ डॉक्टर तक के पास नहीं जाती किसी को इतना बेबस ना करो कि वह घुटन महसूस करने लगे।
गायत्री हाँथ जोड़ते हुए - मास्टर जी रिटायर हो चुके हो आप अपने यह लेक्चर देने की आदत छोड़ दो देने हो तो अपने दोस्तों की मंडली में ही दिया करो मेरा घर है मुझे चलाने दो सतीश जी हमेशा की तरह मन मार कर रह गए।
वसुधा को कुछ भी पच नहीं रहा था डॉक्टर ने कहा ग्लूकोज की कमी है आप ध्यान रखें यह टाइम ही होता है जब मां की जितनी देखभाल की जाएगी बच्चा भी उतना ही सेहतमंद होगा राकेश ने आकर मां को बताया।
राकेश - मां आप कोई काम करने वाली ढुल लो वसुधा को बहुत कमजोरी है डॉक्टर ने आराम करने की सलाह दी है।
गायत्री - इन डॉक्टरों ने दिमाग खराब किया हुआ है तुम्हारे जैसे पढ़े-लिखे बच्चों का पहले आराम कराएंगे आखिर में ऑपरेशन से डिलीवरी करवा कर पैसे बनाएंगे।
राकेश - नहीं मां पहले चार-पांच महीने ज्यादा दिक्कत है वैसे भी आपको काम ना करना पड़े इसलिए ही काम वाली रख रहे हैं वसुधा टेंशन से दूर रहेगी तो बच्चे का दिमाग भी अच्छी तरह विकसित होगा गायत्री जी बेटे के सामने क्या बोलती ठीक है जो तुम्हारी मर्जी कह कर चुप रह गई यूं ही छह-सात महीने गुजर गए अब वह सुविधा को खूब भूख लगती और कुछ ना कुछ खाने का भी मन करता रहता मां जी के सामने तो कुछ कह नहीं पाती इसलिए अपनी कामवाली को पैसे देती
वह आते वक्त उसके लिए खाने का सामान लेकर आती है सतीश जी को जब इस बारे में पता चला तो उन्हें बहुत बुरा महसूस हुआ उन्होंने गायत्री जी से कहा तुम बहू का ध्यान रखा करो, अगर इस वक्त तुम उसका ध्यान रखोगी तभी तो वह भी तुम्हारी सेवा करेगी।
गायत्री जी - फिर से शुरू हो गए आप अब बहुँ ने मेरी शिकायतें भी लगाना शुरू कर दिया क्या?
सतीश जी - अरे! वह क्यों कुछ कहेगी मैं तुम्हें समझा रहा हूं तुम नहीं समझोगी तो कौन समझेगा।
गायत्री जी - आज बड़ा याद आ गया आपको भूल गए आपकी अम्मा जी मेरे साथ कैसा व्यवहार करती थी तब तो नहीं बोले आप।
सतीश जी - अम्मा को तुम गलत कह रही हो तो फिर खुद क्यों मां की तरह गलत कर रही हो?
गायत्री जी - तो आते ही नहीं बहू के हाथ में सब देकर बैठ जाओ कोने में।
सतीश जी - तुम्हारा वहम है ये सब, नई बहु तो बगीचे के नए पौधें की तरह होती है पौधा अपनी जड़े नहीं मिट्टी में जमाले इसके लिए पहले पौधे के अनुसार मिट्टी पानी हवा देनी पड़ती है फिर पौधा खुद ही नए माहौल में ढल जाता है तुम जबरदस्ती करोगी तो पौधा मुरझा ही जाएगा।
गायत्री जी - आप तो ऐसे बात कर रहे हो जैसे मैंने उसके खाने-पीने पर रोक लगा रखी हो जो मन में आए बनाया खाएं।
सतीश जी - जब अपनी बेटी को पहला बच्चा हुआ तो तुम कैसे मुझे कॉलेज से आते हुए उसके लिए कभी जलेबी कभी जूस लाने को कहती थी। ऐसा ही प्यार बहू से भी करो हम किसी की बेटी को प्यार देंगे तभी तो हमारी बेटी को भी प्यार मिलेगा।
गायत्री जी - ठीक है आप ही पूछ लिया करो मैं रोक थोड़ी रही हूं।
सतीश जी - यह हुई ना बात! तुम बिल्कुल नारियल सी हो ऊपर से सख्त दिल से नरम।
गायत्री जी - रहने दो अब दादा बनने की उम्र में यह सब बातें करते हुए शर्म तो नहीं आ रही होगी आपको।
गायत्री जी वसुधा के कमरे में गई 
गायत्री जी ने कहां सो रही हो बेटा वसुधा को लगा कोई ख्वाब है पहली बार गायत्री जी के स्वर में उसे मां का एहसास हुआ था वसुधा की आंखों से आंसू बह निकले।
गायत्री जी - अरे! मैं इतनी बुरी हूं क्या? जो तू रो पड़ी। हां कर देती हूं गुस्सा कभी-कभी तुम्हारी मां भी करती होगी कभी ठीक है भाई अब कुछ नहीं कहूंगी।

वसुधा - नहीं मां जी आप डांट सकती हो। बस मां याद आ गई थी, इसलिए रोना आ गया।

फिर गायत्री जी ने वसुधा को गले लगा लिया

दोस्तों बहू बिल्कुल नए पौधे सी होती है अगर मिट्टी सख्त होगी तो पौधा कैसे अपनी जड़े जमा पाएग मिट्टी को नरम होना होगा इसी तरह सास ससुर की जिम्मेदारी है कि बहू को भी बेटी समझे तब ही वह भी उन्हें मां-बाप समझ पाएगी

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धन्यवाद

✍️ जे०पी० बब्बू

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