बोझ नहीं हैं, आशीर्वाद हैं-बुजुर्ग

       

बाबूजी का स्वर्गवास हो गया, थोड़े दिन रोना धोना हुआ और फिर सभी अपने काम में लग गए। बहु को तो बोझ उतर जाने जैसा महसूस होता था आखिर बाबूजी की वजह से बंदिशें भी तो थी।  उन्हें अकेला छोड़कर नहीं जा सकते थे और खास जगहों पर उन्हें साथ ले भी जाते तो कैसे? मायके से आने वाले के साथ दो घड़ी जोर से हंसते बोलते हुए भी उसे ’बूढ़ा सुन रहा होगा’ का भूत डराता रहता था। 

वैसे बाबूजी ने कभी किसी चीज की मांग नहीं की थी और न हीं किसी काम में हस्तक्षेप करते पर फिर भी बहू उन्हें बंधन समझती थी। 

एक बार अपने भाई भाभी और बच्चों को पिकनिक पर ले जाते हुए बाबूजी को अकेला घर छोड़कर गए थे पर उन्होंने कभी बुरा नहीं माना और न ही शिकायत की। 

बाबूजी के बाद बरामदा खाली थी इसलिए बच्चों ने एक प्यारा सा कुत्ता पाल लिया बच्चे तो प्यार करते ही थे पर उनकी माँ उसका बहुत ध्यान रखती। 

कई बार पिकनिक पर उसे साथ ही ले जाती ।
 
एक बार कार में जगह नहीं थी और वापसी में उन्हें किसी रिश्तेदार के घर जाना था इसलिए कुत्ते को घर छोड़ गए। जाते समय उसके पास दूध का कटोरा, ब्रैड और न जाने क्या-क्या रखा। देर रात जब घर लौटे तो कुत्ता उदास था। उनके आने की आहट पर वह न तो चौंका और न ही हमेशा की तरह अभिवादन किया। 

कई दिन बीत चुके हैं पर कुत्ता अब भी मुँह फुलाए है और मेमसाहब उसकी चिरौरी करती है कि कुछ खा लो। रवि यह सब देखते हुए अपने स्वर्गवासी बाबूजी को याद करने लगा, जिन्हें अनेक बार अकेले रहना पड़ा, मगर उनके आने की आहट सुनते ही वे झट से दरवाजा खोलते। 

अपनी बीमारी में भी उन्होने कभी दुःखी नहीं किया पर उसकी पत्नी ने कभी भी बाबूजी से किसी चीज के खिलाने-पिलाने के लिए चिरौरी तो क्या कहा तक नहीं। उनकी टेबल पर खाना रखना भी उसके लिए भारी थी। 

बाबूजी सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनें रहते, सदा मुस्कराते उनका स्वागत करते। बाबूजी की सौम्यता की तस्वीर रवि की आंखों के सामने उपस्थित हो गई तो दिल में यह टीस ‘काश! हमने बाबूजी के साथ कम से कम कुत्ते जैसा तो व्यवहार किया होता।

पेड़ों, पत्थरों से लेकर जानवरों तक को पूजने वाला भारत अपने बुजुर्गों का ही ख्याल नहीं रख रहा। कभी मां बाप को भगवान मानने वाले भारत के बेटे अब उन्हें बोझ मानने लगे हैं और उन पर अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं_ 

ये अपराध तो है ही पर एक बहुत बड़ा पाप भी है, जो आज जो आज की नई पीढ़ी आधुनिकता की चकाचौंध में कर रही है।

आओ हम मिलकर फिर से एक नये युग की शुरुआत करें भारतीय संस्कृति अपनाये हर महीने की 1 तारीख को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनायें ।


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