तुम आज भी मेरे कलेजे का टुकड़ा ही हो...
रमेश अब बड़ा हो गया था पढ़ लिख कर अब उसकी एक अच्छी सी नौकरी एक शहर में भी लग गयी थी कुछ दिनों के बाद उसके माँ बाप ने उसकी शादी एक सुंदर और सुशील लड़की से करा दिया जो की वह भी नौकरी करती थी अब रमेश और पत्नी दोनों जॉब करते हुए एक साथ ही शहर में बस गये थे कुछ दिनों के पश्चात रमेश के पिता जी भी अब इस दुनिया को छोड़कर चले गये जिसके बाद उसकी माँ एकदम अकेली सी हो गयी थी इसलिए कुछ दिनों के बाद रमेश अपनी माँ को अपने साथ रहने के लिए शहर ले आया।
जिसके बाद शहर में आकर रमेश की माँ खुद को एकदम अकेले पाती थी इस तरह उन्हें भी अच्छा नही लगता था लेकिन एक माँ अपने बेटे की हमेसा ख़ुशी ही चाहती है सो धीरे धीरे वह शहर में रहना भी सीख गयी थी लेकिन रमेश और उसकी पत्नी हमेसा अपनी माँ को समझाते रहते थे की ऐसा मत करो, ये मत करो, मतलब की वे अपने आगे माँ को गाँव की एक तरह से गवाँर ही समझते थे लेकिन माँ की दिल तो हमेशा से अपने बच्चो के लिए बड़ा ही होता है सो वे सभी बाते चुपचाप सुनकर हां में हां मिलाकर रह जाती थी....
एक दिन की बात है सुबह रमेश की पत्नी को ऑफिस जल्दी जाना था सो वह सबकुछ जल्दी से तैयार करके रमेश का खाना पैक करके ऑफिस चली गयी....
फिर इसके बाद रमेश भी जल्दी-जल्दी तैयार होकर ऑफिस निकल गया था फिर कुछ समय बाद रमेश की माँ ने देखा की उसका बेटा तो खाने का लंच बॉक्स घर पर ही भूल गया है तो माँ ने बिना देर किये फटाफट ऑफिस पहुंच गयी और पास में एक कुर्सी पर बैठ गयी क्योंकि कम्पनी में बाहर के व्यक्तियों को अंदर जाने के लिए मना था।
सो फिर बेटे को दिक्कत ना हो इसलिए फोन न करके मैसेज किया लेकिन रमेश अपने काम में बीजी था सो माँ के मैसेज पर ज्यादा ध्यान ना दिया, लेकीन उसकी माँ बाहर कबसे उसका इंतजार कर रही थी, इस तरह कई घंटे बीत गया और इस बीच कई मैसेज भी किया लेकिन रमेश का कोई उत्तर नही आ रहा था, इस तरह रमेश की माँ को चिंता होने लगी थी।
लेकिन रमेश अपनी माँ के कई मैसेज आने के बाद वह अंदर ही अंदर खूब गुस्सा होने लगा था आज तो उसने तय कर लिया था की आज घर जाकर माँ को खूब अच्छे तरह से समझा देगा की यह उसका गाँव नही है जो कुछ भी मनमानी करती रहेगी और इस तरह शाम हो गया अब रमेश घर जाने के लिए कम्पनी के बाहर निकला तो देखा तो उसकी माँ तो यही खड़ी है जिसे देखकर उसका गुस्सा अब सातवें आसमान पर था और बिना कुछ पूछे ही अपनी माँ को डाँट फटकारने लगा की पहले तो घर में खाली बैठे बैठे मैसेज से परेशान करती रहती है और अब तो उसके कम्पनी में भी आ गयी है आखिर उनका यह गाँव नही है जो मनमानी करती रहेगी।
यह सुनकर रमेश की माँ ने खाने का टिफिन रमेश की ओर आगे बढ़ा दिया, जिसे देखकर रमेश को अब समझते हुए देर ना लगी की वह अपना खाना भूल गया था जिसे माँ उसे देने के लिए यहा आई थी।
इसके बाद रमेश की माँ बोली “बेटा भले ही तुम बड़े हो गये हो, बड़े शहर में रहने लगे हो, भले ही अच्छे बुरे की ज्यादा समझ आ गयी हो, लेकिन मेरे लिए आज भी मेरे कलेजे का टुकड़ा ही हो जिसे मैं बचपन से लेकर आजतक पालते हुए आ रही हूँ,”
रमेश को अब आँखे में आंसू थी की आखिर उसकी माँ उसकी परवाह करते हुए खाना लेकर आई थी जिसे वह बिना सोचे समझे अपनी माँ को ही डांटे जा रहा था, अब वह अपने किये हुए पर बहुत पछतावा हो रहा था जिसे देखकर माँ ने उसे एकबार फिर से अपने गले लगा लिया, और रमेश अब आगे से खुद को माँ के लिए बदल लिया था, अब उनकी पहले से ज्यादा अच्छे से देखभाल करने लगा था जिसके बाद माँ को अब शहर भी अच्छा लगने लगा था क्योंकि अब उसका बेटा फिर से उसे मिल गया था.
हम पढ़-लिखकर खुद को ज्यादा ही समझदार समझने लगते हैं । कभी-कभी जिससे जाने अनजाने में माता-पिता की बातों को गलत साबित करने में लग जाते है लेकिन हम सभी यह भूल जाते है जिस माँ-बाप ने अपने बच्चो को खुशियों के लिए अपनी खुशियों तक का त्याग कर दिया हो वो माँ-बाप भला अपने बच्चो का कैसे बुरा कर सकते है...
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