कहानी थोड़ी लम्बी है लेकिन जरूर पढ़े..
बहू....बाथरूम में दो दिन से तुम्हारे कपड़े पड़े है...उन्हें धो कर फैला तो दो...
सुनयना ने आंगन में झाड़ू लगाते हुए कहा....
‘‘अच्छा...फैला दूंगी, आप तो मेरे पीछे ही पड़ जाती है...
बहू ने अपने कमरे से तेज आवाज में उत्तर दिया...
‘‘इस में चिल्लाने की क्या बात है..
‘‘चिल्लाने की बात क्यों नहीं है. कपड़े मेरे है...
फट जाएंगे तो मैं आप से मांगने नहीं आऊंगी जिस ने मेरा हाथ पकड़ा है वह खरीद कर भी लाएगा. ...
आप के सिर में क्यों दर्द होने लगा
बहू अपने कमरे से बोलती हुई बाहर निकली और तेज कदमों से चलती हुई बाथरूम में घुस गई और अपना सारा गुस्सा उन बेजान कपड़ों पर उतारती हुई बोलती जा रही थी, ‘‘अब इस घर में रहना मुश्किल हो गया है। मेरा थोड़ी देर आराम करना भी किसी को नहीं सुहाता। इस घर के लोग चाहते हैं कि मैं नौकरानी बन कर सारे मकान की सफाई करूं, सब की सेवा करूं जैसे मेरा शरीर हाड़मांस का नहीं, पत्थर का है।’’
अपने इकलौते बेटे अखिलेश के लिए सुनयना ने बहुत सी लड़कियों को देखने के बाद ऋतु का चुनाव किया था। दूध की तरह गोरी और बी.काम. तक पढ़ी सर्वांग सुंदरी ऋतु को देखते ही सुनयना उस पर मोहित सी हो गई थीं और घर आते ही घोषणा कर दी थी कि मेरी बहू बनेगी तो ऋतु ही अन्यथा अखिलेश भले ही कुंआरा रह जाए।
इस तरह सुनयना ने 2 साल पहले अपने बेटे का विवाह ऋतु से कर दिया था।
ऋतु अपने पूरे परिवार की लाड़ली थी, विशेषकर अपनी मां की, इसलिए वह थोड़ी जिद्दी, अहंकारी और स्वार्थी थी। उस के घर मेें उस की मां का ही शासन था।
बचपन से ऋतु को मां ने यही पाठ पढ़ाया था कि ससुराल जाने के बाद जितनी जल्दी हो सके अपना अलग घर बना लेना। संयुक्त परिवार में रहेगी तो सास-ससुर की सेवा करनी पड़ेगी...
वैसे तो सुनयना के परिवार में भी किसी चीज की कमी नहीं थी, पर ऋतु के परिवार के मुकाबले उन की स्थिति कुछ कमजोर थी।
सुनयना के पति रामअवतार एक कंपनी में हैड अकाउंटेंट थे। वेतन कम था पर उसी कम वेतन में उन की पत्नी सुनयना अपने घर को बड़े ही सलीके से चला रही थीं, साथ ही अपने इकलौते बेटे अखिलेश को भी उन्होंने अच्छी शिक्षा दिलवाई थी। इस समय अखिलेश एक विदेशी कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्य कर रहा था, जिस की शाखाएं देश भर के बड़े-बड़े शहरों में थीं। अखिलेश को अक्सर अपनी कंपनी की अलग-अलग जगह की शाखाओं का दौरा करना पड़ता था।
अखिलेश जानता था कि कितनी कठिनाई से उस के माँ-पिताजी ने उसे अच्छी शिक्षा दिलवाई है, इसलिए उस का झुकाव हमेशा अपने माता-पिता और अपने घर की ओर रहता था। वह अपने वेतन में से कुछ ऋतु को दे कर बाकी पैसा अपनी माँ के हाथों में रख देता था...
2-3 महीने तो ऋतु ने यह सब देख कर सहन किया। यहां की सारी स्थितियों की जानकारी वह अपनी मां को बताना कभी नहीं भूलती थी। हर रात दिनभर की घटनाओं की जानकारी वह अपनी मां को दे दिया करती और मां भी उसे समझाने के बजाये दो चूड़ी चढ़ा दिया करती थी बल्कि माँ का ये कर्तव्य बनता था कि उसे समझाए ऐसा छोटी-मोटी बात तो हर घर में होती ही रहती है पर अंधा प्रेम बच्चों को और दुख ही देता है ..
करीब 3 महीने बाद ऋतु ने पहले तो अपने पति पर शासन करना शुरू किया और जब वहां बात नहीं बनी तो उस ने अपनी सास सुनयना से बात-बात में झगड़ा करना शुरू कर दिया।
एक बार जो उस का मुंह खुला तो उस ने सुनयना की हर ईंट का जवाब पत्थर से देना शुरू कर दिया। अब तो इस घर में हर दिन सासबहू में झगड़ा होने लगा। जिस घर में ऋतु के आने से पहले जो शांति थी, अब उस शांति का वहां नामोनिशान भी न रहा।
अब सुनयना की दोपहर घर से थोड़ी दूर एक कमरे में गरीब बच्चों को पढ़ाने में व्यतीत होने लगी। रामअवतार एक शांतिप्रिय व्यक्ति होने के नाते दोनों को कुछ भी कह नहीं पाते थे। पत्नी को अधिक प्यार करते थे इसलिए उसे अपने तरीके से समझा दिया और बहू के मुंह लगना उचित नहीं समझते थे इसलिए वे अपने आफिस से लेट आने लगे।
अखिलेश की भी यही स्थिति थी। जिस मां ने तमाम मुसीबतें झेल कर उसे पालापोसा, पढ़ालिखा कर इस लायक बनाया कि वह इज्जत की रोटी कमा सके उन से वह कठोर बातें बोल ही नहीं सकता था। लेकिन ऋतु के सामने उस की हिम्मत ही नहीं होती थी। उधर ऋतु रात-दिन अखिलेश के कान भरने लगी कि अब वह इस घर में नहीं रहेगी। उसे या तो वह उस के मायके पहुंचा दे या दूसरा मकान किराए पर ले कर रहे..
शाम को जब अखिलेश आफिस से आया तो सीधे अपने कमरे में गया। कमरे में ऋतु बाल बिखेरे, अस्तव्यस्त कपड़ों में गुस्से में बैठी थी। अखिलेश ने उससे पूछा, ‘‘आज क्या हुआ. इस तरह क्यों बैठी हो? आज फिर मां से झगड़ा हुआ क्या?’’
‘‘और क्या? तुम्हारी मां मुझ से प्यार से बात करती हैं?’’ शेरनी की तरह गुर्राते हुए ऋतु ने कहा और उस की आंखों से आंसू बहने लगे। इसी के साथ दोपहर का सारा वृत्तांत ऋतु ने नमकमिर्च लगा कर बता दिया। पुरुष सब सह सकता है पर सुंदर स्त्री के आंसू वह सहन नहीं कर सकता। अखिलेश ने फौरन अपना निर्णय सुना दिया कि वह कल ही इस घर को छोड़ देगा, यह बात सुनते ही ऋतु के आंसू कपूर की भांति उड़ गए।
सोते जागते रात गुजर गई। सुबह जल्दी उठ कर अखिलेश घर से निकल गया और करीब 2 घंटे बाद घर आ कर मां से बोला कि मैंने अलग मकान देख लिया है और ऋतु के साथ दूसरे मकान में जा रहा हूं।
मां ने कहा, ‘‘अपने पापा को आ जाने दो, उन से बात कर के चले जाना।’’
‘‘नहीं, मां! अब मैं किसी का इंतजार नहीं कर सकता
हर दिन कलह से अच्छा है अलग रहना, कम से कम शांति तो रहेगी।’’
‘‘ठीक है! मैं तुम्हें रोकूंगी नहीं क्योंकि अब तुम बच्चे नहीं रहे, जैसा तुम्हें ठीक लगे करो। तुम्हें जिस सामान की जरूरत हो ले जा सकते हो और वैसे भी यह सबकुछ तुम्हारा ही है,’’ कांपती हुई आवाज में अखिलेश से कह कर सुनयना ड्राइंगरूम में जा कर बैठ गईं। उस समय उन की आंखों में आंसू थे, जिन्हें वे अपने आंचल से बारबार पोंछ रही थीं।
थोड़ी देर बाद अखिलेश जा कर एक छोटा ट्रक ले आया, साथ में 2 मजदूर भी थे। मजदूरों ने सामान को ट्रक में चढ़ाना शुरू कर दिया. आधे घंटे बाद उसी ट्रक में दोनों पति-पत्नी भी बैठ कर चले गए।
सुनयना की हिम्मत नहीं हुई कि वे बाहर निकल कर उन दोनों को जाते हुए देखें।
शाम को जब रामअवतार जी आफिस से आए तब उन्हें अपनी पत्नी सुनयना से सारी जानकारी मिली। दुख तो बहुत हुआ पर हर दिन के झगड़े से अच्छा है, दोनों जगह शांति तो रहेगी, यह सोच कर वे चुप रहे। उस रात दोनों पतिपत्नी ने खाना नहीं खाया।
अखिलेश और ऋतु को गए हुए करीब 1 वर्ष हो गया था...
दीवाली का त्योहार आया तो हर घर में धूमधाम से तैयारी शुरू हो गई, घरों में दीप जलाए जा रहे थे, पर सुनयना और रामअवतार दोनों उदास बैठे अतीत की यादों में खोए रहे। उन में त्यौहार को ले कर न कोई उत्साह था न कोई उमंग। शाम को सुनयना केवल एक दीपक जला कर आंगन में रख आईं।
दीवाली के 2 दिन बाद रामअवतार को आफिस भेज कर सुनयना बच्चों को पढ़ाने चली गईं और जब वे शाम को लौट रही थीं तो रास्ते में उन की मुलाकात एक अनजान औरत से हो गई, जो उन्हें जानती थी पर सुनयना उसे नहीं जानती थीं।
पहले तो उस स्त्री ने सुनयना को नमस्ते की, फिर बताया कि ऋतु व अखिलेश उस के मकान के पास ही रहते हैं। आज ऋतु की तबीयत ज्यादा खराब थी और उसे उस के मकानमालिक आटोरिक्शा से अस्तपाल ले गए हैं, क्योंकि अखिलेश यहां है नहीं और ऋतु की डिलीवरी होने वाली है...
सुनयना ने जब उस औरत से यह पूछा कि ऋतु के मकानमालिक उसे ले कर किस अस्पताल गए हैं, तो उस ने हॉस्पिटल का नाम बता दिया..
सुनयना जल्दी से घर आईं और एक थैले में कुछ आवश्यक सामान रखा। अलमारी में जो पैसा रखा था उसे लिया और घर को ताला लगा कर आटो से हॉस्पिटल चली गईं। वहां जा कर जब ऋतु के बारे में पता किया तो पता चला कि बच्चा नार्मल नहीं हो सकता इसलिए डाक्टर ऋतु को आपरेशन थिएटर में ले गए हैं. तभी एक नर्स ने आ कर आवाज लगाई कि ऋतु के साथ कौन है? डाक्टर एक फार्म पर साइन करने और आपरेशन फीस जमा कराने के लिए बुला रहे हैं।
सुनयना नर्स से जब ऋतु के बारे में पूछ रही थी तब वहीं पर ऋतु के मकान मालिक भी खड़े थे। वे समझ गए कि यह स्त्री शायद अखिलेश की मां हैं तभी इतनी बेचैनी से पूछ रही हैं। उन्होंने हाथ जोड़ कर सुनयना को नमस्ते किया और फिर सारी बातें उन्हें बता दीं। सुनयना ने भी उन्हें बता दिया कि ऋतु उनकी बहू है।
सुनयना उस नर्स के साथ डाक्टर के कक्ष में चली गईं और डॉक्टर को नमस्ते कर उन्हें अपना परिचय दिया कि ऋतु उन की बहू है और वे आपरेशन की फीस जमा कराने आई हैं। पहले तो डाक्टर ने उन से एक फार्म पर हस्ताक्षर करवाए और फिर आपरेशन के लिए 25 हजार रुपए जमा कराने को कहा।
‘‘डाक्टर साहब, अभी तो आप 10 हजार रुपए जमा कर लें। बाकी पैसा मैं अपने पति से फोन कर के मंगवा लेती हूं, जब तक आप उस का आपरेशन करें। मुझे किसी भी हालत में जच्चा व बच्चा स्वस्थ चाहिए.’’
‘‘ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। सब ठीक होगा। हां, आप यह पैसा काउंटर पर जा कर जमा करा दें और रसीद प्राप्त कर लें। वहीं से आप अपने पति को फोन भी कर दें।’’
डाक्टर के पास से आ कर सुनयना ने काउंटर पर जा कर पैसा जमा कर दिया और रसीद ले कर वहीं से रामअवतारजी को फोन कर के सारी बातें बता दीं। साथ ही यह भी कह दिया कि जल्दी से 15 हजार रुपए ले कर हॉस्पिटल में आ जाएं.
करीब डेढ़ घंटे बाद रामअवतार जी वहां पर पैसा ले कर पहुंच गए लेकिन ऋतु के अपने माँ-पिताजी अभी तक नहीं आए थे... वे आपरेशन रूम के पास एक बैंच पर सुनयना के साथ बैठ कर इंतजार करने लगे। थोड़ी देर बाद एक नर्स सुनयना के पास आ कर पूछने लगी कि ऋतु के साथ कौन आया है।
सुनयना ने कहा, ‘‘मैं हूं.’’
‘‘बधाई हो, लड़की हुई है,’’ नर्स ने कहा, ‘‘बच्ची और उस की मां दोनों स्वस्थ हैं,’’ फिर थोड़ी देर बाद एक नर्स ने लड़की को ला कर सुनयना को दिखाया जिसे बड़े प्यार से उन्होंने पहले तो देखा फिर उस का माथा चूम अपने पति से कुछ इशारा किया। रामअवतार जी ने 500 रुपए का नोट निकाल कर नर्स को देते हुए कहा कि यह मेरी तरफ से आप सब लोगों को मिठाई खाने के लिए है।
थोड़ी देर बाद ऋतु को एक स्ट्रैचर पर लिटा कर वार्ड में लाया गया। उस समय वह बेहोश थी। वार्ड में एक बिस्तर पर लिटा कर उस के पास के पालने में बच्ची को भी लिटा दिया गया। सुनयना वहीं एक बैंच पर बैठ कर कभी बच्चे को तो कभी रऋतु को देखती रहीं और पति को घर भेज दिया..
करीब साढ़े 4 घंटे बाद ऋतु को होश आया। उस ने आंखें खोलीं तो देखा उस की सास सुनयना उस के पास बैठी हैं और उस की गोद में एक बच्चा है..
‘‘लक्ष्मी आई है, ठीक तुम्हारी तरह। तुम भी शायद जब पैदा हुई होगी तो ऐसी ही होगी,’’ सुनयना ने मुसकराते हुए कहा और ऋतु के माथे पर हाथ फेरने लगीं। ऋतु को बड़ा अच्छा लग रहा था। तभी उस के मकानमालिक भी वहां आ गए और बोले, ‘‘ऋतु, जब तुझे ले कर यहां आ रहा था तब मेरी पत्नी की तुम्हारी मम्मी से बातें हुई थीं और उन्होंने कहा था कि वे जल्द ही अस्पताल पहुंचने की कोशिश करेंगे, पर अभी तक न खुद आईं और न तुम्हारे पापा आए हैं।’’
शाम हो गई थी, अभी तक सुनयना ने कुछ नहीं खाया था, बल्कि चाय तक भी नहीं पी थी। रात भर वह बैड के पास स्टूल पर बैठी कभी ऋतु का सिर दबातीं तो कभी बच्ची के रोने पर उसे उठा कर घुमाती। इस तरह जिम्मेदारी को ढोते उन की रात आंखों-आंखों में कट गई।
सुबह रामअवतार थर्मस में चाय ले कर आए और दोनों को कपों में डाल कर चाय दी, फिर पत्नी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम अब घर जाओ। मैं यहां बैठता हूं। कल से तुम ने खाना भी नहीं खाया है। तुम्हारा खाना किचन में कल से ज्यों का त्यों बना हुआ रखा है। घर जाओ और ऋतु के लिए खिचड़ी बना कर लेती आना। तब तक मैं यहां पर बैठता हूं। आज मैं ने आफिस से छुट्टी ले रखी है।’’
सुनयना दोनों को बहुत सी हिदायतें दे कर चली गईं। रामअवतार वहीं बैंच पर बैठ गए। करीब 1 घंटे बाद कुछ सोच कर ऋतु से उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, मैं जरा बाहर बैठता हूं, कोई चीज चाहिए तो नर्स से कहलवा देना,’’ और वार्ड से बाहर निकल गए।
ऋतु के बगल वाले बेड पर भी एक स्त्री को आपरेशन से बच्चा हुआ था। उस की देखभाल के लिए उस की मां वहीं पर बैठी हुई थीं। जब रामअवतार वार्ड से बाहर चले गए तब वह औरत अपनी जगह से उठ कर ऋतु के बेड के पास आ गई और पूछने लगी, ‘‘तुम्हारे मम्मी-पापा अच्छे स्वभाव के मालूम पड़ते हैं। खासकर तुम्हारी मम्मी तो बहुत ही अच्छी हैं। बेचारी रातभर तुम्हारी सेवा करती रही हैं।’’
‘‘ये दोनों मेरे मम्मी-पापा नहीं, सास-ससुर हैं.’’
‘‘क्या?’’ वह औरत आश्चर्य से ऋतु का मुंह देखने लगी। फिर उस ने कहा, ‘‘क्या दुनिया में ऐसी भी सास होती है, जो कल से बिना खाए- पिए अपनी बहू की सेवा कर रही है। बेटी, तुम बहुत खुशनसीब हो जो तुम्हें ऐसे सास-ससुर मिले हैं। पूरा वार्ड अब तक यही समझ रहा था कि ये तुम्हारे मम्मी-पापा हैं। कोई सास अपनी बहू के लिए इतना कर सकती है यह मैंने पहली बार देखा है। अगर हर सास तुम्हारी सास जैसी हो जाए तो कोई बहू जल कर नहीं मरेगी, कोई बहू गले में फंदा लगा कर नहीं मरेगी। कोई बहू जहर खा कर या गाड़ी के नीचे आ कर अपनी जान नहीं देगी।
‘‘मैं तो तुम्हें यही कहूंगी कि कभी अपनी सास को तकलीफ मत देना, कभी उन से कठोर बातें मत बोलना और बेटी, सच्चे मन से उन की बुढ़ापे में सेवा करोगी तो इस बुढि़या की आत्मा तुम्हें आशीर्वाद ही देगी।’’
इतने में एक नर्स ऋतु को इंजेक्शन लगाने आ गई। उस औरत की बेटी ने शायद पानी मांगा और उसे वह पानी पिलाने चली गई. ऋतु सोचने लगी कि उस की मम्मी भी एक औरत हैं और उस की सास भी, पर दोनों में कितना फर्क है। एक केवल शासन करना चाहती है, दूसरी नम्रतापूर्वक अनुसरण। एक किसी के घर को तोड़ना चाहती है, तो एक घर को बचाने के लिए स्वयं तकलीफ उठाती है। एक में दिखावा है, अभिमान है तो दूसरी में गंभीरता एवं सहजता है। पहली नारी है इसलिए सम्माननीय है, दूसरी सम्मान के साथसाथ श्रद्धा व प्रेम की पात्र भी है। एक केवल जननी है तो दूसरी मां। ऋतु की आंखें छलक रही थीं।
‘‘बेटा, चाय पी लो,’’ रामअवतार की आवाज से ऋतु का ध्यान भंग हो गया। रितु ने बड़े ध्यान से अपने ससुर की ओर देखा और सोचने लगी इस व्यक्ति ने आज तक मुझे बेटा के सिवा और किसी नाम से बात नहीं की और न ही कठोर शब्द बोले। इन लोगों के साथ गलत व्यवहार कर के मैं ने बहुत बड़ा अपराध किया है। फिर ऋतु का ध्यान भंग हुआ क्योंकि रामअवतारजी बगल वाली स्त्री से कह रहे थे :
‘‘बहनजी, आप को एक कष्ट दे रहा हूं. आप मेरी बहू को हाथ लगा कर उठा दें, ताकि वह चाय पी ले।’’
वह औरत उठी और ऋतु को उठा कर चाय पिलाने लगी तो रामअवतारजी वार्ड से बाहर चले गए। करीब 10 बजे सुनयना खिचड़ी और कुछ साफ-सुथरे कपड़े ले कर आ गईं और ऋतु को धीरे से बैठा कर चम्मच से अपने हाथ से खिलाने लगीं। आज उसे यह खिचड़ी मोहनभोग के समान लग रही थी।
शाम को करीब 4 बजे ऋतु के पापा गिरधारी प्रसाद और उस की मम्मी रजनी ने एकसाथ वार्ड में प्रवेश किया। उस समय सास सुनयना ऋतु के बालों में कंघी कर रही थीं। बैड की दूसरी तरफ एक खाली बैंच पर वे दोनों बैठ गए। दोनों का यहां आना ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी पार्टी में आए हों। गिरधारी प्रसाद बार-बार अपनी टाई को ठीक कर रहे थे और रजनी का तो कहना ही क्या था। दोनो के कपड़ों से महंगे परफ्यूम की खुशबू आ रही थी। पूरा जच्चा बच्चा वार्ड उस खुशबू से महक रहा था। दोनों ने हाथ जोड़ कर सुनयना को नमस्कार किया।
एक थैले में कुछ सामान रख कर सुनयना ने उठते हुए कहा, ‘‘ऋतु, जितना मुझ से बन सका मैंने कर दिया। अब तुम्हारे माँ-पापा आ गए हैं, अब मैं अपने घर जा रही हूं। तुम भी एक सप्ताह बाद अपना टांका कटवा कर अपने घर चली जाओगी और हां, आज तक की दवाइयों का और अस्पताल के बिल का भुगतान मैंने कर दिया है, जिस की सारी रसीदें तुम्हारे तकिए के नीचे रखी हैं। अखिलेश आएगा तो उसे मेरा आशीर्वाद कह देना।’’
इतना कह कर चलने के लिए जैसे ही उन्होंने कदम बढ़ाया, अचानक लगा कि उन का आंचल कहीं फंस गया है। उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा तो ऋतु उन का आंचल पकड़े हुए है और डब-डबाई आंखों से उन्हें ही देखे जा रही है। सुनयना ने आंचल छुड़ाने का प्रयास किया तो ऋतु धीरे से बोली, ‘‘मम्मी, क्या अपनी इस मूर्ख बेटी को माफ नहीं करोगी?’’
सुनयना ने झट से ऋतु का सिर अपनी छाती से लगा लिया और उस समय उन की भी आंखें छलछला उठीं। उन्होंने उस के माथे को सहलाते हुए कहा, ‘‘पगली, कहीं मां भी अपनी बेटी से नाराज होती है, स्वयं को मूर्ख क्योें कहती है। अरे, सैकड़ों लड़कियों में से चुन कर तुझे मैं अपने घर लाई थी तो तू मूर्ख कैसे हो गई। तू मेरी बहू नहीं बेटी है और बेटी ही तुझे समझा है।’’
सुनयना रोती जा रही थीं और कहती जा रही थीं, ‘‘ज्यादा नहीं रोते बेटा। अभी तुम्हारा शरीर कमजोर है, टांके कच्चे हैं, रोने से उन पर जोर पड़ता है और टूटने का भय रहता है,’’ यह कहते हुए वे अपने आंचल से उस के आंसुओं को पोंछने लगीं।
अचानक सुनयना का ध्यान दूसरी तरफ बैठे गिरधारी प्रसाद और उन की पत्नी रजनी की ओर गया तो वे लोग कब के चले गए थे। शायद रजनी को भी अपनी गलती का अहसास हो गया था...
एक सप्ताह बाद ऋतु के टांके कट चुके थे और उसे अस्पताल से छुट्टी की अनुमति मिल गई थी। अखिलेश भी टूर से वापस आ गया। जब वह अपने घर पर गया तो उसे वहां सारी बातों की जानकारी मिल गई। वह अपना सामान कमरे में रख कर सीधे ही अस्पताल चला गया। मां को ऋतु के पास देख कर पहले तो ग्लानि से अखिलेश के पांव ही आगे नहीं बढ़ पा रहे थे, लेकिन जब उस ने ऋतु और अपनी मम्मी को मुस्कुराते हुए देखा तो मम्मी के पास जा कर उन के चरण छू कर प्रणाम किया।
अस्पताल से जिस दिन ऋतु को छुट्टी मिली उस ने स्पष्ट कह दिया कि वह अब किराए के मकान में न जा कर मम्मी के साथ सीधे अपने घर जाएगी। इसलिए उसे ले कर सुनयना घर आ गई थीं। अब उस घर में खुशियां ही खुशियां थीं। सभी के चेहरे मुसकराते रहते थे। नन्ही सी जान सब के लिए खिलौना बनी हुई थी।
ऋतु के मन में अब भी अपनी गलती को लेकर पछतावा हो रहा था अखिलेश समझ गया था इसलिए उसने ऋतु के पास आकर कहा इस साल हम भी मातृ पितृ पूजन दिवस मनायेंगे।
ऋतु ने कहा ये क्या होता है ?..
अखिलेश ने बताया कि उसका एक दोस्त है मोहित वो हर साल 14 फरवरी अपने माता पिता का पूजन दिवस के रूप में मनाता है उस ने मुझ से भी कईबार कहा पर मैने उसकी बात पर कभी ध्यान नही दिया।
आज 14 फरवरी थी ऋतु और अखिलेश सुबह 4 बजे ही उठ गये थें और घर के एक कमरे को ऐसे सजा रहें थे जैसे आज उनके भगवान यहाँ आयेंगे..
कमरे को सजा कर सुनयना और रामआवतार दोनो को जल्दी से तैयार हो जाने को कहा सुनयना ने पूछा क्यों कही जाना है क्या ?..
ऋतु ने कहां हाँ आप जल्दी से तैयार हो जाये फिर बताते हैं ।
सुनयना और रामआवतार दोनो तैयार होकर आयें तो ऋतु ने उनका हाथ पकड़ कर उस कमरें में ले गई दो कुर्सियां कमरें के बीच में अच्छे से सजाकर रखी थी पूरे कमरें की सजावट को देख कर सुनयना ने पूछा ये क्या है मैं कुछ समझी नहीं ..
ऋतु और अखिलेश ने हाथ पकड़ कर उनको कुर्शी पर बैठाया और पास में ही रखी एक थाली जिसमें चंदन, कुमकुम,फूलों की 2 माला,अक्षत, दीपक, और मिठाई रखा हुआ था हाथ में लेते हुये अखिलेश और ऋतु ने कहा आप बैठो हम बतातें है क्या है ।
दोनो ने सुनयना और रामआवतार को तिलक किया,माला पहनाई उनकी 7 परिक्रमाएँ की उनकी आरती उतारी और मिठाई खिलाकर उनके पैरों पर अपना सिर रखा तो सुनयना और रामआवतार ने अपने दोनों बच्चों को उठा कर अपने गले लगा लिया ।
ये सब कुछ इनके लिए नया था पर सुनयना, रामआवतार, ऋतु, अखिलेश सब भावविभोर हो रहे थें और जो सुख, शांति का अनुभव उनको हो रहा था उन्होंने अपने ,पूरे जीवन में नही किया था ।
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