((((((((( प्रकृति और प्रारब्ध )))))))))
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एक मछुआरा था । उस दिन सुबह से शाम तक नदी में जाल डालकर मछलियाँ पकड़ने की कोशिश करता रहा, लेकिन एक भी मछली जाल में न फँसी ।
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जैसे -जैसे सूरज डूबने लगा, उसकी निराशा गहरी होती गयी ।
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भगवान का नाम लेकर उसने एक बार और जाल डाला पर इस बार भी वह असफल रहा, पर एक वजनी पोटली उसके जाल में अटकी ।
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मछुआरे ने पोटली को निकला और टटोला तो झुंझला गया और बोला -' हाय ये तो पत्थर है ! ' फिर मन मारकर वह नाव में चढा ।
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बहुत निराशा के साथ कुछ सोचते हुए वह अपने नाव को आगे बढ़ता जा रहा था और मन में आगे के योजनाओं के बारे में सोचता चला जा रहा था ।
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सोच रहा था, कल दुसरे किनारे पर जाल डालूँगा । सबसे छिपकर ...उधर कोई नही जाता ....वहां बहुत सारी मछलियाँ पकड़ी जा सकती है ... ।
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मन चंचल था तो फिर हाथ कैसे स्थिर रहता ? वह एक हाथ से उस पोटली के पत्थर को एक -एक करके नदी में फेंकता जा रहा था ।
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पोटली खाली हो गयी। जब एक पत्थर बचा था तो अनायास ही उसकी नजर उस पर गयी तो वह स्तब्ध रह गया ।
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उसे अपने आँखों पर यकीन नही हो रहा था, यह क्या ! ये तो ‘ नीलम ’ था ।
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मछुआरे के पास अब पछताने के अलावा कुछ नही बचा था । नदी के बीचो बीच अपनी नाव में बैठा वह सिर्फ अब अपने को कोस रहा था ।
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प्रकृति और प्रारब्ध ऐसे ही न जाने कितने नीलम हमारी झोली में डालता रहता है जिन्हें पत्थर समझ हम ठुकरा देते हैं।
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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एक मछुआरा था । उस दिन सुबह से शाम तक नदी में जाल डालकर मछलियाँ पकड़ने की कोशिश करता रहा, लेकिन एक भी मछली जाल में न फँसी ।
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जैसे -जैसे सूरज डूबने लगा, उसकी निराशा गहरी होती गयी ।
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भगवान का नाम लेकर उसने एक बार और जाल डाला पर इस बार भी वह असफल रहा, पर एक वजनी पोटली उसके जाल में अटकी ।
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मछुआरे ने पोटली को निकला और टटोला तो झुंझला गया और बोला -' हाय ये तो पत्थर है ! ' फिर मन मारकर वह नाव में चढा ।
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बहुत निराशा के साथ कुछ सोचते हुए वह अपने नाव को आगे बढ़ता जा रहा था और मन में आगे के योजनाओं के बारे में सोचता चला जा रहा था ।
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सोच रहा था, कल दुसरे किनारे पर जाल डालूँगा । सबसे छिपकर ...उधर कोई नही जाता ....वहां बहुत सारी मछलियाँ पकड़ी जा सकती है ... ।
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मन चंचल था तो फिर हाथ कैसे स्थिर रहता ? वह एक हाथ से उस पोटली के पत्थर को एक -एक करके नदी में फेंकता जा रहा था ।
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पोटली खाली हो गयी। जब एक पत्थर बचा था तो अनायास ही उसकी नजर उस पर गयी तो वह स्तब्ध रह गया ।
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उसे अपने आँखों पर यकीन नही हो रहा था, यह क्या ! ये तो ‘ नीलम ’ था ।
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मछुआरे के पास अब पछताने के अलावा कुछ नही बचा था । नदी के बीचो बीच अपनी नाव में बैठा वह सिर्फ अब अपने को कोस रहा था ।
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प्रकृति और प्रारब्ध ऐसे ही न जाने कितने नीलम हमारी झोली में डालता रहता है जिन्हें पत्थर समझ हम ठुकरा देते हैं।
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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