अब मुझको ये मंजूर नही..........✊


अब मुझको ये मंजूर नही..........

चूडी वाले कर मै
अब तलवार उठानी है
सिंहनाद कर उठे सिंहनी
वो ललकार लगानी है
नारी अब अबला कहलाये
अब मुझको ये मंजूर नही.....
अब तक जुर्म बहुत सह लिया
अब बिना जुर्म के सजा नही
शाश्वत मान उसका भी होगा
सर्व सम्मत ही मान सही
केवल पुरुष प्रधान समाज हो
अब मुझको अब मंजूर नही.....
सिंह से शावक को जन्म देती है
गर्जना वर्जना सिखलाती है
फ़िर भी नारी पूरे समाज मै
दोयम दर्जा ही पाती है
अरिहँता केवल अब नर हो
अब मुझको ये मंजूर नही......
स्वर्णिम भविष्य इतिहास रचू मै
बन्द किवडिय नही रहूँ मै
आधी दुनियाँ कहलाती हूँ
कर्म विमुख क्यों जिये जाऊँ मै
चौके से आँगन तक चलना
चल कर वही फ़िर रुक जाना
घुट घुट कर वही प्राण त्यागना
अब मुझको मंजूर नही......
ज्वालामुखी सी धधक रही हूँ
दावानल चिंगारी हूँ
केवल कोमल भाव नही है
मै तलवार दुधारी हूँ
राख के नीचे दबे सुलगाना
अब मुझको मंजूर नही !!!!!

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