मित्रो आज हम आपको शरीर के तेरह ऐसे वेगों के बारे में बताएंगे जिन्हें रोकने से भारी शारीरिक और मानसिक परेशानी हो सकती है:


मित्रो आज हम आपको शरीर के तेरह ऐसे वेगों के बारे में बताएंगे जिन्हें रोकने से भारी शारीरिक और मानसिक परेशानी हो सकती है:

१। साँस(breath) - साँस बन्द तो प्राण निकले। साँस जितना संभव गहरी उतनी तेज़ लेनी चाहिए जितना शरीर की माँग हो।

२। मूत्र(urine) - इसको रोकने सबसे बड़ा नुक़सान है मुत्र थैली में सक्रंमण होना का ख़तरा। लिंगेन्द्रियो मे दर्द होता है, मूत्र रुक रुक कर और कष्ट से होता है, सिर मे पीड़ा होतीं है, शरीर सीधा नहीं होता है, पेट मे आफरा तथा जांघोँ के जोड़ो मे शूल से चलतें है। आंखें की रोशनी कमजोर होती है।

३। मल (toilet) - मल रूकने से गैस बनती है और गैंस से पेट फूल जाता है। पाखाना य मल क वेग रोक्ने से पेट मे गड़गड़ाहट और दर्द होता है, मल साफ़ नही होती है, डकारे आती है, ये लक्षण मध्वाचार्य ने लिखे है। मष्तिक में दर्द होता है।

४। निन्द्रा(sleep) - इसके वेग को रोकने से जम्भाई, अंग टूटना, नेत्र और मस्तक का जङ हो जाना और तन्द्रा ये रोग होते है। निन्द्रा को रोकने से प्रतिरोधात्मक शक्ति कम होती है और चिड़चिड़ापन आता है।

५। आंसुओ.(crying in tears)- दुख में आँसू न निकले तो व्यक्ति पागल हो सकता है या किसी सदमे से उसकी मृत्यु भी हो सकती है। इस वेग को रोकने से मस्तक का भारीपन, नेत्र दोष, जुकाम, आँखों क रोग, ह्रदय रोग, अरुचि और भरम आदि रोग हो सकते है।

६। शुक्र(Semen ejaculation) - वीर्य के रूकने से प्रोसट्रेट का कैंसर होने का ख़तरा होता हैं। मध्वाचार्य ने लिखा है की शुक्र यानि वीर्य को रोकने से मुत्राशय मे सुज़न, गुदे और फोतो मे पीङा, पेशाब का कष्ट से होना ,शुक्र कि पत्थरी और वीर्य का रिसना, जैसे अनेक रोग होते हैं। चरक सहिंता मे लिखा है है कि मैथुन करते समय छूटते वीर्य को रोकने से लिंग और फोतो मे दर्द होता है। अंगड़ाई आना, हृदय में पीङा और पेशाब का रुक रुक के आना आदि बिमारी हो सकती है।

७। प्यास(thirst) - प्यास को रोकने से शरीर में कफ प्रबल हो जाता है। इसके वेग को रोकने से कंठ और मुँह सूखते है, कानोँ मे कम सुनाइ देता है, क़ब्ज़ होती है, मधुमेह का रोग और हृदय मे पीड़ा होती है।

८। भूख(hunger)- इसके वेग को रोकने से तन्द्रा, शरीर टूटना, अरुचि थकान और नजर कम होना और शरीर मे दुर्लभता आना आदि। भोजन शरीर के लिये महतपूर्ण है। भोजन समय पर ग्रहन करे। भोजन को एक साथ ना खाकर दिन मे थोड़ा थोडा खाय। पौष्टिक आहार ही ले।

९। अधोवायु(flatulence) - अधोवायु यानि गुदा द्वारा निकलने वाली हवा को शर्म और लज्जावश रोकने से अधोवायु,मल और मूत्र दोनो रुक जाते है, गैंस से पेट फूल ज़ाता है, बड़ी आंक मे संक्रमण, मल का आँतों में रूकना और थकान सीं महसुस होने लगती है। पेट मे बादी से दर्द होने लगता है ,तथा वायु विकार होने लगता है।

१०। वमन - इसके वेग को रोकने से यानि आती हुईं क़य को रोकने से खुजली, चकते, अरुचि, मुँह पर झांई सूजन ,पीलिया ,सुखी ओकारी आदि उपद्रव होते है ,इन रोगों को दुर करने के लिये भोजन के बाद वमन कारणि चाहीये। इनके अलावा रूखे पदार्थो का सेवन, कसरत जुलाब ये सभी उत्तम उपाय है।

११। छींक(Sneezing) - इसके वेग को रोकने से गर्दन के पिछे की मन्या नामंक नस जकड़ जातीं है ,सिर मे शूल से चलतें है आधा मूँह टेड़ा हो जाता है ,और अर्धांग वात रोग हो जाता है ,चरक सहिंता मे लिखा है गर्दन का जकड़ना, मस्तक शूल, लकवा, आंधा सीसी इन्द्रियोँ कि दुर्लभता होती है।

१२। डकार(burp) - ढकार हमारी पाचन तन्त्र की ख़तरे की घण्टी दो हमें चेतावनी देता भोजन हम जल्दी जल्दी खा रहे या ज़रूरत और क्षमता से ज्यादा खा रहे। इसके वेग को रोकने से बादी के रोग होते है, कंठ और मुँह का भारी सा मालूम होंना, हिचकी खॉंसी, अरुचि, हृदय तथा छाती का बन्धा स महसुस करना, ढकार को रोकने से गैस से संबधित बीमारी होती है।

१३। जम्भाई(Yawning) - इसके वेग को रोकने से गर्दन के पिछे की नस और गले का जकड़ जाना, मस्तक मे विकार होना, नेत्र रोग, मुख रोग और कान के रोग का होना का ख़तरा होता है

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