बाद में भोलेनाथ ने हिरण्याक्ष नाम के असुर को अपने पुत्र अंधक को वरदान में दे दिया जिसके बाद उसका पालन असुरों के बीच ही हुआ। अंधक बहुत ही शक्तिशाली था। उसे ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि उसका अंत तभी होगा जब वह अपनी ही माता पर कुदृष्टि डालेगा। क्योंकि अंधक अपने बचपन से जुड़ी सभी बातें भूल चुका था इसलिए उसे लगता था कि उसकी कोई माता नहीं है। उसकी बस एक ही इच्छा रह गई थी कि उसे संसार की सबसे सुन्दर स्त्री से विवाह करना है।
जब उसे देवी पार्वती की सुंदरता के बारे में पता चला तो वह फ़ौरन उनके पास विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुँच गया। उसकी यह बात सुनकर माता को अत्यंत क्रोध आ गया और उन्होंने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया। किन्तु वह बलपूर्वक माता को उठाकर ले जाने लगा। तब माता ने शिव जी का आहवान किया जिसके पश्चात महादेव प्रकट हुए और अंधक के साथ भोलेनाथ का युद्ध होने लगा।
कहते हैं जब जब शिव जी अंधक पर अपने त्रिशूल से वार करते उसके रक्त की बूँदें धरती पर गिर जाती और उन एक एक बूंदों में से कई राक्षसी 'अंधका’ उतपन्न हो जाती। महादेव और माता पार्वती समझ गए कि अगर अंधक का वध करना है तो पहले उसके रक्त की बूंदों को धरती पर गिरने से रोकना होगा।माता पार्वती यह बात भली भांति जानती थी कि हर दैवीय शक्ति के दो तत्व होते हैं, एक पुरुष तत्व जो उसे मानसिक रूप से सक्षम बनाता है और दूसरा स्त्री तत्व जो उसे शक्ति प्रदान करता है। इसलिए माता ने सभी देवियों को सहायता हेतु बुलाया।
माता की पुकार सुनकर हर दैवीय ताकत के स्त्री रूप वहां आ गए और वे अंधक के खून को गिरने से पहले ही अपने भीतर समा लेते जिसके फलस्वरूप अंधका का उत्पन्न होना कम हो गया। कहा जाता है कि सभी दैवीय शक्तियों के कारण अंधका की उत्पत्ति कम तो हो गई किन्तु उसका अंत अब भी नहीं पा रहा था। तब श्री गणेश अपने स्त्री रूप 'विनायकी’ में प्रकट हुए और उन्होंने अंधक का सारा रक्त पी लिया। इस प्रकार श्री गणेश ने अंधक और उसके रक्त से उत्पन्न होने वाली राक्षसी अंधका का वध करके अपनी माता के मान और सम्मान की रक्षा की।
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