सत्संग


बहुधा लोग सोचते हैं कि हमने इतने ब्रत कर लिए,इतने दिन भूखे रहे,पंचाग्नि तपे,या ठंड में बर्फ में रहे आदि ,इसलिए हम ईश्वर के बहुत करीब हो गए। कुछ लोग दान का दिखावा करते हैं मैंने इतने लोगो को दान दिया ,और इतने यज्ञ किये भंडारा कराया,मंदिर बनवाया,आदि । इससे वे अपने अहं को ही पोषते हैं,उनका किया धरा सब ब्यर्थ है। जब किसी कार्य को करने से अहं आ गया तो उसका फल भी शून्य हो गया। तप हो आपको आनंद आये,तप हो जाय।लोग समझे कि आप तप कर रहे हैं,पर आप आनंद में होते जा रहे हैं,ये होना चाहिए।पूज्य महावीर ने घर छोड़ा....सहज छूट गया।तपश्चर्या करनी नही है केवल ज्ञान को जगाना है।जो जो ब्यर्थ है छूटता जाएगा,जो आवश्यक है,पकड़ आता जाएगा।
सुनी है एक कहानी।देवराहा बाबा मथुरा में यमुना जी के पास रहते थे।पहले वे एक झोपड़ी में रहते थे,बाद में यमुना के अंदर मचान बना के रहने लगे।एक बार उन्हें एक धनाढ्य ब्यक्ति ने एक बोरे में कुछ कीमती चीज भेंट किया। झोपड़े में ताला लगता नही था। रात को एक चोर आया,बाबा तो जगरहे थे सोचा कष्ट में होगा,रात में ठंड में आया है,पैदल चला होगा जरूर तकलीफ में होगा,...वह चोर बोरा उठाता पर बोरा भारी था गिर पड़ता। बाबा ने सोचा बोलूंगा तो संकोच में पड़ कर ये ले नही जाएगा। जब वह चोर परेशान हो गया तो वे उसे सर पर उठा दिए,बोले तुम कमजोर हो भारी बोझ न उठाया करो। जब चोर आवाज सुनी तब वह उनके चरणों पर गिर गया,भक्त हो गया,सन्त की दृष्टि उसको बदल के रख दिया।
तप का ये महत्व है।सन्तो का अहित करने जाओ पर वे तुम्हारे हित की ही सोचेंगे।
ये तपश्चर्या है।*सत्संग*
बहुधा लोग सोचते हैं कि हमने इतने ब्रत कर लिए,इतने दिन भूखे रहे,पंचाग्नि तपे,या ठंड में बर्फ में रहे आदि ,इसलिए हम ईश्वर के बहुत करीब हो गए। कुछ लोग दान का दिखावा करते हैं मैंने इतने लोगो को दान दिया ,और इतने यज्ञ किये भंडारा कराया,मंदिर बनवाया,आदि । इससे वे अपने अहं को ही पोषते हैं,उनका किया धरा सब ब्यर्थ है। जब किसी कार्य को करने से अहं आ गया तो उसका फल भी शून्य हो गया। तप हो आपको आनंद आये,तप हो जाय।लोग समझे कि आप तप कर रहे हैं,पर आप आनंद में होते जा रहे हैं,ये होना चाहिए।पूज्य महावीर ने घर छोड़ा....सहज छूट गया।तपश्चर्या करनी नही है केवल ज्ञान को जगाना है।जो जो ब्यर्थ है छूटता जाएगा,जो आवश्यक है,पकड़ आता जाएगा।
सुनी है एक कहानी।देवराहा बाबा मथुरा में यमुना जी के पास रहते थे।पहले वे एक झोपड़ी में रहते थे,बाद में यमुना के अंदर मचान बना के रहने लगे।एक बार उन्हें एक धनाढ्य ब्यक्ति ने एक बोरे में कुछ कीमती चीज भेंट किया। झोपड़े में ताला लगता नही था। रात को एक चोर आया,बाबा तो जगरहे थे सोचा कष्ट में होगा,रात में ठंड में आया है,पैदल चला होगा जरूर तकलीफ में होगा,...वह चोर बोरा उठाता पर बोरा भारी था गिर पड़ता। बाबा ने सोचा बोलूंगा तो संकोच में पड़ कर ये ले नही जाएगा। जब वह चोर परेशान हो गया तो वे उसे सर पर उठा दिए,बोले तुम कमजोर हो भारी बोझ न उठाया करो। जब चोर आवाज सुनी तब वह उनके चरणों पर गिर गया,भक्त हो गया,सन्त की दृष्टि उसको बदल के रख दिया।
तप का ये महत्व है।सन्तो का अहित करने जाओ पर वे तुम्हारे हित की ही सोचेंगे।
ये तपश्चर्या है।

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