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एक बार की बात है की किसी स्कूल में एक बालक पढ़ने जाता था । जैसे दूसरे बालक भी जाते थे ।
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यह बालक पढ़ने में थोड़ा कमजोर किस्म का था सो रोज ही गुरु जी,के डंडों से मार खाता था । यह सिलसिला चलता- रहा, चलता- रहा !
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एक दिन की बात है की गुरु जी, ने एक-एक बालक की सीट पर जा कर दिया हुआ कार्य देख रहे थे ।
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इस बालक ने अपने आदतानुसार काम नहीं किया था और अपने आप ही हथेली गुरु जी के आगे कर दी मार खाने के लिए ।
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गुरु जी ने डंडा उठाया और हथेली की तरफ देखते ही डंडा रख दिया और कहा बेटे मै तुझे नाहक रोज ही मारता रहा हूँ, तेरे तो हाथ में तो विद्या की रेखा है ही नहीं।
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बस फिर क्या था बालक को यह बात चुभ गयी और उसने गुरु जी से पूछा- गुरु जी, मुझे बताईये की हाथ में विद्या- रेखा कहा होती है ?
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गुरु जी ,ने उसे विद्या- रेखा का स्थान बता दिया ।
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बालक उसी क्षण गया और तेज धार वाली धातु ले कर उस स्थान पर चीरा लगा कर वापिस कक्षा में आया ।
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गुरु जी, ने उसकी लहू-लुहान हथेली देखकर पूछा की यह कैसे हो गया ?
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बालक ने बताया की गुरु जी मैंने अपने हाथ में खुद ही विद्या की रेखा खींच ली है, अब आप मुझे पढ़ाईये, मै पढूंगा !
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यही बालक बताते है की आगे चलकर संस्कृत का ‘पाणिनि’ बना जिसकी व्याकरण ” अष्टाध्यायी ” आज तक महाग्रन्थ माना जाता है !
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विश्व के विदेशी विद्वान् आज भी इस ग्रन्थ की कद्र करते है !
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तो कहने का मतलब है की आप का संकल्प सही हो तो अपने भाग्य को खुद बना सकते है ! जैसा कक्षा के कमजोर बालक ने अपने ही संकल्प से महानता हासिल कर ली ।
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पाणिनि (500 ई पू) संस्कृत व्याकरण शास्त्र के सबसे बड़े प्रतिष्ठाता और नियामक आचार्य थे।
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इनका जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था जो आधुनिक पेशावर (पाकिस्तान) के क़रीब तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था।
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••••••••••जय जय श्री राधे •••••••••••
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